राजधर्म की बात
संसद के दोनों सदनों में संशोधित नागरिकता कानून
पारित होने के बावजूद देश में हुई हिंसा और फिर राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में हिंसा
का तांडव उसी मुहावरे ‘उल्टा चोर कोतवाल को डांटे’ को चरितार्थ
होता दिख रहा है। सीएए के इस विरोध के पृष्ठभूमि में यह मुहावरा कांग्रेस पर सटीक बैठ रहा है। मसलन दिल्ली की हिंसा के बाद संसद में पारित हुए सीएए कानून के बाद दिल्ली के रामलीला मैदान में कांग्रेस की रैली में कांग्रेस प्रमुख सोनिया गांधी का इस कानून के खिलाफ आर-पार की
लड़ाई लड़ने वाला वह बयान छन-छनकर सामने आ रहा
है, जो दिल्ली
हिंसा का ठींकरा केंद्रीय गृहमंत्री और दिल्ली पुलिस के सिर फोडते हुए एक प्रतिनिधिमंडल के साथ इस कानून को वापस कराने के लिए राष्ट्रपति से मिलकर ज्ञापन सौंपा और कहा कि केंद्र सरकार और भाजपा राजधर्म नहीं निभा रही है। हालांकि केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर
ने भी दिल्ली और उससे पहले शाहीनबाग व देशभर में हुई हिंसाओं के लिए सीएए के विरोध
में रैली में लोगों को उकसाने पर सोनिया गांधी पर सीएए विरोध रैली में लोगों को उकसाने
का आरोप लगाते हुए सवाल खड़े किये कि क्या कांग्रेस कौन से राजधर्म की बात कर रही है, जिसमें
सोनिया के शाहबजादे राहुल और शाहबजादी प्रियंका ने सीएए पर हिंसा की निंदा करने के
बजाए लोगों को उकसाने का धर्म निभाया है। सियासी गलियारों और सोशल
मीडिया पर सोनिया के राजधर्म वाले बयान को लेकर जिस प्रकार की टिप्पणियां हो रही है उसमें यही कहा जा रहा है कि पहले देशभर के लोगों को सीएए के विरोध के लिए सड़कों पर उतरकर आरपार की लड़ाई का आव्हान किया और दिल्ली हिंसा के बाद राजधर्म का पाठ पढाने का प्रयास कर रही है? यही है
कांग्रेस की अगुवाई में विपक्षी दलों की चोरी और ऊपर से सीना जोरी..!
माया का पैंतरा
देश की
सियासत में सभी दल अपने नफे-नुकसान का आकलन
करके अपनी नई रणनीति बनाते हैं। उसी के तहत बहुजन समाज पार्टी की प्रमुख मायावती ऐसे पैंतरे बदलने के लिए पहचानी जाती है। मसलन गठबंधन की सियासत के अनुभवों के साथ-साथ बसपा
सबसे ज्यादा राजनीतिक फायदे की पटरी पर चलती देखी गई है। यही कारण है कि अब बसपा नजरे यूपी के साल 2022 के विधानसभा चुनावों पर टिक गई है, जिसके लिए हाल
ही में राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में बसपा के राष्ट्रीय मुख्यालय पर सांसदों, पूर्व सांसदों और पदाधिकारियों
के अनुसार कोर्टिनेटरों की बैठक में भाजपा और कांग्रेस के साथ अन्य दलों को संविधान के साथ खिलवाड़ करने का आरोप लगाकर हिदायद दी है कि वे यूपी चुनाव के लिए अभी से कमर कसके अन्य दलों की रणनीतियों से सावधान रहे और यूपी विधानसभा चुनाव बसपा अकेले दम पर ही लडेगी। उन्होंने पार्टी के जनाधार को जीवित करने के लिए मुस्लिमों, दलितों के साथ
ओबीसी की सियासत पर ध्यान केंद्रित करते हुए पार्टी की सभी ईकाइयों को भंग करके नए सिरे से संगठन को खड़ा करने का भी पैंतरा चला है। राजनीतिकारों की माने तो मायावती यूपी केंद्रित राजनीति करते हुए अपनी रणनीतियां तैयार कर रही है, जिसे उम्मीद ही नहीं
दावा भी कर चुकी है कि यूपी में अगली सरकार बसपा की होगी?
01Mar-2020
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