सोमवार, 2 जनवरी 2017

राग दरबार: सियासी दंगल में सवा शेर अखिलेश....

सपा कुनबे के सियासी दंगल में मुलायम चित्त
देश की सियासत में अभी तक ऐसी कहावत चरितार्थ होती देखी गई है कि राजनीति में कोई दोस्त या दुश्मन नहीं होता। खासकर उत्तर प्रदेश की सियासत में सत्तारूढ दल समाजवादी पार्टी के लिए अब यह कहावत सामने आई है कि जब गीदड़ पर मौत मंडराती है तो वह शहर की तरफ भागता है। सपा कुनबे में चल रहे सियासी दंगल में मुलायम के सभी दावों कों शक्ति प्रदर्शन करके अपने दावं सें ऐसा चित्त किया, कि 90 प्रतिशत से ज्यादा सपा विधायकों को अखिलेश के साथ देख मुलायम को महज 19 घंटे बाद ही अखिलेश यादव और प्रो रामगोपाल के निष्कासन को वापस लेने के लिए मजबूर होना पड़ा। इससे पहले ऐसा लग रहा था कि ब्सपा प्रमुख शायद सिर पर खड़े विधानसभा चुनाव की तैयारियों के बावजूद पार्टी को एक चश्में से देखकर मुख्यमंत्री और अपने पुत्र अखिलेश को चाटुकारों से घिरकर कमजोर करने में तुले हैं। हालांकि सपा प्रमुख मुलायम सिंह दंगल में दावं के माहिर माने जाते हैं, जिन्हें उन्होंने राजनीतिक दंगल में भी आजमाकर अच्छे-अच्छों को पटखनी दी है, लेकिन सूबे में सत्तारूढ़ होते हुए भी उन्होंने सियासी शतरंज में अपने पुत्र के दांव को नजरअंदाज करने के साथ अखिलेश व रामगोपाल के निष्कासन करने का दावं उलटा ही पड़ गया है। सियासी गलियारों के साथ सोशल मीडिया में चल रही चर्चाओं पर गौर की जाए तो वृद्ध हुए पहलवान मुलायम को यह नहीं भूलना चाहिए कि सियासी शतरंज में मुख्यमंत्री अखिलेश ने मुख्यमंत्री के रुप में सियासी दांव सीखकर अपनी साफ छवि और साख बनाई है, जिसके सामने नेताजी के दावं भला कहां टिकने वाले थे और हुआ भी वही। इसकस अंदाजा तो पुत्र अखिलेश पर कठोर हुए मुलायम को शायद बेटे व भाई को पार्टी से निष्कासित करने के कुछ देर बाद ही उनिष्कासन के विरोध में सड़कों पर उतरे समर्थकों के सैलाब से ही लग गया होगा? आखिर सपा के इस सियासी दंगल में चले गये दावं में यही कहा जाएगा कि सवा शेर साबित हुए अखिलेश...!
कांग्रेस की मायूसी
यूपी चुनाव को लेकर शीला दीक्षित को पार्टी की तरफ से मुख्यमंत्री उम्मीदवार घोषित करके और राहुल गांधी की धुआंधार रैलियों के दम पर कांग्रेस ने शुरूआत में माहौल बनाने की कोशिश तो ख्ल ही रही है, लेकिन कांग्रेस को एक मजबूत सहारे की जरूरत सपा से गठजोड़ करने का प्रयास करती रही,जिसकी उम्मीद सपा प्रमुख मुलायम द्वारा अखिलेश को निष्कासित करते ही नजर आने लगी थी। अखिलेश के समर्थन में उनके समर्थकों के सड़कों पर देख तो कांग्रेस की बांछे खिल गई, लकिन सपा में फिर एकजुटता के माहौल ने कांग्रेस के मंसूबो पर पानी फिरता नजर आया। यह इसलिए कहा जा सकता है कि पिछले दिनों सपा के साथ उनकी बातचीत भी चली और कांग्रेस के रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने इस सिलसिले में मुलायम सिंह और अखिलेश से मुलाकात भी की थी। अखिलेश की सेक्युलर, साफ-छवि और विकासमूलक एजेंडा भी कांग्रेस के लिए मुफीद है। फिर ऐसे में सपा में चल रही घमासान पर कांग्रेस की पैनी नजर अभी तक बनी हुई है।
जब गलत कॉल से कनेक्ट हुए पर्रिकर-स्मृति
आम जनजीवन में लोग एक-दूसरे से गलत कॉल पर कनेक्ट हो जाते हैं और फिर से माफी नामे के साथ आगे बढ़ जाते हैं। लेकिन जब बात वीआईपी लोगों की बातचीत में गलत कॉल के जरिए कनेक्ट होने की आए तो मामला कुछ रूचिकर हो जाता है। बीते दिनों यह किस्सा राजधानी दिल्ली स्थित सरकार के पावरफुल मंत्रालयों में से एक माने जाने वाले रक्षा मंत्रालय में घटा, जब रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर केंद्रीय मानव संसाधन विकास (एचआरडी)मंत्री प्रकाश जावड़ेकर से बात करना चाहते थे। लेकिन उनके टेलिफोन आॅपरेटर ने गलती से पूर्व मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी को ही एचआरडी मंत्री मानकर उनसे कॉल कनेक्ट कर दी। फिर क्या था आॅपरेटर की इस गलती पर बड़प्पन दिखाते हुए पर्रिकर और स्मृति ने फोन पर एक दूसरे से हालचाल पूछा और बातचीत को आगे बढ़ा दिया। बाद में रक्षा मंत्रालय ने कहा कि टेलिफोन आॅपरेटर विभागीय मंत्रियों के प्रोफाइल के बारे में अपटूडेट नहीं था। जिसकी वजह से गलत कॉल कनेक्ट हो गई।

कौन है बडा भक्त
मध्यप्रदेश में इन दिनों मुख्यमंत्री शिवराज सिंह नर्मदा यात्रा पर निकले हुए है। इस यात्रा को एक ओर चुनाव से जोडकर देखा जा रहा है वहीं दूसरी और इस यात्रा की सियासी गलियारों में तुलना भी शुरू हो गई है। इस चर्चा हो रही है कि मां नर्मदा का सबसे बडा भक्त कौन है। मुख्यमंत्री के साथ रहे केंद्रीय मंत्री व राज्यसभा सांसद से इसकी तुलना की जा रही है। विशेष बात तो यह है कि भारत सरकार में मौजूदा मंत्री के नेतृत्व में काम कर रही सरकारी संस्था ही अब नर्मदा सेवा यात्रा की आयोजक है। ऐसे में अब यह सवाल उठने लगे है कि केंद्रीय मंत्री की इस संस्था पर पकड कमजोर हो गई है।
-ओ. पी. पाल, कविता जोशी व राहुल
01Jan-2017

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