सोमवार, 9 जनवरी 2017

राग दरबार: अपनों ने लूटा, गैरो में कहाँ दम था....

खतरे में सपा का चुनाव चिन्ह ‘साइकिल’ 
देश में परचलित एक कहावत- ‘अपनों ने लूटा गैरो में कहाँ दम था,अपनी कस्ती भी वहां डूबी जहाँ पानी कम था’..। आजकल सबसे बडेÞ सूबे उत्तर प्रदेश में सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी में वर्चस्व को लेकर छिड़े परिवारिक महासंग्राम में ये कहावत चरितार्थ होती दिख रही है। ऐसे में नेताजी मुलायम नेता अकेले में शायद इसी कहावत को याद करते होंगे? सपा प्रमुख मुलायम और मुख्यमंत्री अखिलेश यादव यानि पिता-पुत्र के बीच चल रहा दंगल सूबे मे विधानसभा चुनाव के ऐलान के बावजूद थमने का नाम ही नही ले रहा है। दरअसल सपा का अस्तित्व पार्टी और उसके चुनाव चिन्ह ‘साइकिल’ इस कदर खतरे में है कि उसका फैसला अब चुनाव आयोग को करने के लिए माथापच्ची करनी पड़ रही है। क्यों कि पिता मुलायम और पुत्र अखिलेश सपा व उसके चुनाव चिन्ह ‘साइकिल’ पर अपना अपना हक जताने के लिए चुनाव आयोग की अदालत में निर्यायक मोड़ का इंतजार कर रहे हैं। लखनऊ से दिल्ली तक दौड़धूप कर मुलायम सिंह यादव ने भारत निर्वाचन आयोग के समक्ष अपना पक्ष रख कर अखिलेश के साइकिल पर सवार होने के मंसूबे पर पानी फेरने के इरादे के साथ ही उस वोट बैंक संभालने की कोशिश में जुटे है, जिस पर बसपा जैसे दल लपकने का प्रयास करने में लगे हैं। यही कारण माना जा रहा है कि मुलायम ने मुस्लिम चेहरे आजम खां को मध्यस्ता करने में लगा दिया। कुल मिला कर डैमेज कंट्रोल की कमान अब स्वयं मुलायम सिंह यादव ने संभाल ली है, लेकिन सुलह होने का नाम ही नहीं ले रही है। हालांकि देश की राजनीति में अक्सर ऐसा ही होता है, लकिन सियासी चर्चाओं में खासकर विरोधी दल तो ये भी दलील दी जा रही है कि जो मुलायम जी के साथ अखिलेश यादव ने किया है वो अच्छा नहीं लगा। राजनीति अपनी जगह बड़ों का सम्मान अपनी जगह और फिर जहन में एक बात आती है कि स्वार्थ के लिए जो पुत्र अपने पिता का न हो पाया और बागी हो गया वो जनता का क्या होगा?अखिलेश ने उत्तरप्रदेश के लिए कितना ही बेहतर विकास क्यों न किया हो, पर उनके इस कदम ने उनकी छवि पर एक दाग जरूर लगा दिया है। अब उत्तर प्रदेश में चुनावी प्रक्रिया शुरू हो चुकी है तो समाजपादी पार्टी का सियासी भविष्य क्या होगा, इसका फैसला पहले 9 जनवरी सोमवार को चुनाव आयोग और 11 मार्च को चुनावी नतीजे ही उजागर करेंगें?
विश्वास पर अब उतना ‘विश्वास’ नहीं
आम आदमी पार्टी के नेता और कवि कुमार विश्वास इन दिनों अरविंद केजरीवाल की टीम में थोड़े साइड लाइन चल रहे हैं। चुनाव के दौरान विश्वास को प्रचार में खूब अहमियत दी जाती थी लेकिन अब उनका वैसा जलवा दिखाई नहीं पड़ा है। 2014 के लोकसभा चुनाव में अमेठी जाकर राहुल गांधी के सामने ताल ठोंकने वाले कुमार विश्वास आप पार्टी की बजाय इन दिनों कवि सम्मेलनों में खूब हिस्सा ले रहे हैं। पंजाब चुनाव प्रचार में पिछले कई महीने से आप ने ताकत झोंकी हुई है पर वहां विश्वास नजर ही नहीं आ रहे हैं। चर्चा है कि विश्वास को लेकर अरविंद केजरीवाल के मन में शंका है। उनको लग रहा है कि कुमार भाजपा नेताओं के लगातार संपर्क में रहते हैं। यही वजह है कि अब दिल्ली के मुख्यमंत्री विश्वास पर विश्वास कम करते हैं। आम आदमी पार्टी द्वारा पंजाब में प्रचार के लिये चुनाव आयोग को अपने स्टार प्रचारकों की जो लिस्ट सौंपी गई है उसमें कुमार विश्वास का नाम नहीं है। हालांकि आप के लिये कम महत्वपूर्ण गोवा में कुमार विश्वास का नाम पार्टी ने तय किया है। देखना ये है कि कुमार विश्वास गोवा जाकर प्रचार में हिस्सा लेते हैं या नहीं।
कैलेंडर भी हुआ डिजिटल
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के डिजिटलाइजेशन पर जोर का असर देखिए..आम तो आम खास भी जी जान से जुट गए। शहरी क्षेत्रों में तो पहले से ही उपभोक्ताओं का एक वर्ग प्लास्टिक-मनी का इस्तेमाल करता रहा है, लेकिन नोटबंदी के बाद यह बदलाव दूरदराज के छोटे-मंझोले शहरों में भी दिखने लगी है। सब्जी वाले, रेहड़ी पटरी वाले से लेकर छोटे-बड़े दुकानदारों के पास ‘पे-टीएम’ ने बेहद तेजी से दस्तक दी है। मोदी सरकार में केंद्रीय पर्यटन मंत्रालय ने डिजिटल की बाजीगरी में बाजी मारी है। नए साल का अद्भुत कैलेंडर मंत्रालय ने चुनिंदा लोगों के लिए बनवाकर बंटवाना शुरू किया है। कैलेंडर में छपे फोटो का लाइव आनंद आप साथ में लिखे ऐप को अपने मोबाइल पर डाउनलोड कर ले सकते हैं। कैलेंडर की आकृति अगर मोबाइल पर लाइव हो जाए तो इससे डिजिटलाइजेशन कार इलेक्ट्रॉनिक इस्तेमाल और क्या हो सकता है भला?
-ओ.पी. पाल, आनंद राणा व शिशिर सोनी
08Jan-2017

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