शनिवार, 21 जनवरी 2017

असम की तर्ज पर यूपी फतेह की तैयारी में भाजपा!

आरएसएस ने बनाई घर से बूथ तक की रणनीति
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
उत्तर प्रदेश में सत्ता पर काबिज होने के लिए जहां भाजपा ने विधानसभा चुनावों की ठोस और मजबूत रणनीति तैयार की है, वहीं भाजपा को सत्ता तक पहुंचाने के लिए राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने असम की तर्ज पर यूपी में मतदाताओं के घर से बूथ तक ऐसा तानाबाना बुना है कि सत्तारूढ़ सपा या बसपा, कांग्रेस या अन्य दल कहीं टिक नहीं पाएंगे। ऐसा इसलिए भी कहा जा सकता है कि भाजपा के विजयी रथ को रोकने के लिए सपा की अन्य दलों के महागठबंधन की तैयारियों में चौतरफा झोल बढ़ने लगे हैं।
उत्तर प्रदेश की 403 विधानसभा सीटों पर सात चरणों में अगले महीने से शुरू हो रहे चुनाव में राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ यानि आरएसएस ने भाजपा को सत्ता तक पहुंचाने के लिए अपनी रणनीतियों का ऐसा तानाबाना बुन दिया है कि भाजपा के साथ-साथ आरएसएस के स्वयं सेवक भी घर-घर पहुंचकर भाजपा के चुनाव प्रचार का हिस्सा होंगे। हालांकि असम में भाजपा के लिए बनाई गई आरएसएस की रणनीति ने जो सियासी पटकथा लिखी है, उसकी तर्ज पर उत्तर प्रदेश में भी भाजपा के लिए आरएसएस ने अपनी ताकत पिछले साल से झोंकनी शुरू कर दी थी। यूपी में सत्तारूढ़ के अभी तक चले महासंग्राम पर भाजपा और आरएसएस की बारीकी से नजरे रहीं और जैसे-जैसे हालात बने उसी तरह भाजपा और आरएसएस की रणनीतियों ने भी मजबूती के लिए करवट बदलने में देर नहीं की। अब सपा की बागडौर मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के हाथ में आई तो भाजपा को रोकने के इरादे से सपा ने कांग्रेस, रालोद और अन्य दलों के साथ जदयू व राजद जैसे कई दलों को मिलाकर महागठबंधन की सियासत का खेल शुरू किया, लेकिन हर बार की तरह वह पटरी पर नहीं आ पा रहा है।
यूपी भाजपा की जरूरत
उत्तर प्रदेश में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव भाजपा के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं, जिसके लिए पार्टी ने यूपी की राजनीतिक फोकस करके प्रदेश संगठन की बागडौर मौर्य को सौंप दी है और सत्ता तक पहुंचने की रणनीति के तहत संगठन और बूथ स्तर तक संगठन को मजबूत करने की मुहिम को तेज कर दिया है। असम की तरह भाजपा को आरएसएस का सहारा लेना भी जरूरी हो गया था। भाजपा और आरएसएस की रणनीति को लेकर राजनीतिकार मानते हैं कि असम में सत्ता हासिल करते ही भाजपा की नजरे यूपी चुनाव पर टिकना स्वाभाविक हैं। इसलिए आरएसएस के बिना भाजपा की चुनावी वैतरणी पार होना ऐसे समय में संभव भी नहीं है, जब केंद्र में भाजपानीत सरकार नोटबंदी जैसे मुद्दो पर विपक्षी दलों से चौतरफा घिरी हो। हालांकि नोटबंदी पर जनता विपक्ष के बजाए मोदी सरकार के समर्थन में है यह तथ्य साबित भी हो चुका है। मसलन यूपी में भाजपा-आरएसएस की इस सियासी रणनीति का असम की तरह ही सकारात्मक नतीजा मिलने की संभावनाओं से इंकार भी नहीं किया जा सकता, लेकिन यह चुनाव के आने वाले नतीजे ही तय कर पाएंगे। सूत्रों के अनुसार आरएसएस ने यूपी में एक लाख से भी ज्यादा स्वयंसेवकों की फौज उतार कर रणनतियों को अंजाम देना शुरू कर दिया है।
ये है आरएसएस का अभियान
आरएसएस ने अपने स्वयं सेवकों को चुनाव प्रक्रिया शुरू होते ही उत्तर प्रदेश की सभी 403 सीटों पर अपने कार्यकर्ताओं को भेजना शुरू कर दिया है, जो घर-घर जाकर तर्को के साथ भाजपा और केंद्र सरकार की उपलब्यिां बताकर भाजपा के वोट मांग रहे हैं। ऐसा भी नहीं है संघ कार्यकर्ता हर घर में राष्ट्रहित में काम करने वाले लोगों के पक्ष में मतदान करने की अपील वाले इश्तहार भी बांट रहे हैं। यूपी में आरएसएस ने ऐसा ही चुनाव अभियान वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में भी चलाया था, जिसमें भाजपा को 80 में से 73 सीटें मिली थी। सूत्रों के अनुसार उत्तर प्रदेश में आरएसएस की 35 शाखाएं है, जिनके कार्यकर्ता इस चुनावी अभियान में पूरी ताकत के साथ जुटे हुए हैं। आरएसएस की व्यवस्था भी संतुलित है, जिसने हर विधानसभा में एक संयोजक और दो सह संयोजक बनाए हैं जिनके नेतृत्व में कार्यकर्ता रणनीति को अंजाम दे रहे हैं। सूत्रों के अनुसार आरएसएस के इस अभियान में विधानसभा स्तर पर बैठकें करने की मुहिम भी चलाई जा रही है। सबसे दिलचस्प बात है कि इस प्रचार अभियान में आरएसएस भाजपा के नाम का उपयोग नहीं कर रहा है।
भाजपा के खिलाफ रणनीति
यूपी मिशन पर चरम पर जाते सियासी प्रचार में राज्य की सत्तारूढ सपा और बसपा के साथ कांग्रेस की रणनीतियां भी सियासी पटरी पर दौड रही है, लेकिन सपा के आपसी विवाद के कारण इसका फायदा बसपा लेने की जुगत में हैं। सपा में अखिलेश यादव पार्टी के डमेज कंट्रोल के प्रयास में महागठबंधन की रणनीति पर चले और ऐसा ही कांग्रेस भी भाजपा को हर हालत में रोकने के लिए सपा के साथ चुनावी तालमेल चाहती हैं, जिसमें अन्य दलों को भी शामिल करने का प्रयास है, लेकिन पिछले इतिहास की तरह महागठबंधन की डोर बेहद कमजोर नजर आ रही है, जो बंधने को तैयार नहीं है। ऐसे में भाजपा-आरएसएस की रणनीति बिना किसी विश्राम के रμतार पकड़ने लगी है। राजनीतिकारों के अनुसार बिहार में नीतीश कुमार को सत्ता तक पहुंचाने वाले उनके रणनीतिकार प्रशांत किशोर का सहारा इस बार यूपी मिशन फतेह करने के इरादे से कांग्रेस ने लिया है, लेकिन कांग्रेस को पीके के सहारे अपनी डूबी नैया धरातल आने की उम्मीद नहीं है, शायद यही कारण है कि कांग्रेस सपा से गठबंधन करने के लिए बेचैन है।
21Jan-2017

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