शुक्रवार, 20 जनवरी 2017

लोस व विस चुनाव एकसाथ कराने की तैयारी!

पांच राज्यों में चुनावों के बाद शुरू होगा मैराथन मंथन
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
देश में चुनाव सुधार की दिशा में चुनाव आयोग ने धनबल और समय की बचत के लिए देश में लोकसभा और राज्यों के विधानसभा चुनाव एक साथ कराने की दिशा में विधि आयोग के साथ मिलकर आगे बढ़ना शुरू कर दिया है। इस चुनाव व्यवस्था की कई बार प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी जोरदार तरीके से वकालत की है। चुनाव आयोग और विधि आयोग देश के पांच राज्यों में चुनाव प्रक्रिया समाप्त होने के बाद इस प्रस्ताव पर सरकार के अलावा सभी राजनीतिक दलों के साथ विचार-विमर्श कर मंथन करने की तैयारी में है।
चुनाव आयोग के सूत्रों ने संकेत दिये हैं कि आगामी मार्च माह में यूपी समेत पांच राज्यों में चुनाव प्रक्रिया समाप्त होने के बाद देश में अगले वर्ष 2019 के लोकसभा चुनावों के साथ ही सभी नहीं तो कम से कम आधे राज्यों के चुनाव कराने के लिए विधि आयोग के साथ मिलकर एक बड़ी पहल करने की तैयारी है। ऐसा सुझाव संसद की स्थायी समिति भी सरकार को दे चुकी है। ऐसे ही सुझाव पर चुनाव और विधि आयोग केंद्र सरकार के अलावा सभी राजनीतिक दलों के साथ विस्तृत मंथन करने की योजना बना रहे हैं। इस दिशा में कदम उठाने की कवायद में चुनाव आयोग और विधि आयोग का प्रयास है कि अगले लोकसभा चुनाव और कम से कम आधे राज्यों में विधानसभा चुनाव एक साथ कराने पर औपचारिक सहमति बनाई जाएगी, जिसे वर्ष 2024 तक एक साथ चुनाव कराने का रास्ता प्रशस्त हो सकेगा।
संसदीय समिति की सिफारिश
देश में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराने के बारे में संसद की स्थाई समिति भी चर्चा कर चुकी है, जिसके लिए समिति ने दिसंबर 2015 में संसद में अपनी सिफारिशों और सुझावों के साथ अपनी रिपोर्ट पेश की थी। समिति की सिफारिशों में एक साथ चुनाव कराने के मुद्दे पर कुछ महत्वपूर्ण सुझाव दिए थे, जिनमें पहले चरण में आधे राज्यों के विधानसभा चुनाव लोकसभा के साथ कराने की सिफारिश भी शामिल है। समिति की सिफारिशों में बाकी आधे राज्यों के चुनाव उनका कार्यकाल पूरा होने के समय कराने की सिफारिश की है। हालांकि सरकार ने विधि आयोग से भी इसके लिए अध्ययन कराया, जो इस चुनाव व्यवस्था के पक्ष में अपनी रिपोर्ट सरकार को दे चुका है। वहीं नीति आयोग की अध्ययन रिपोर्ट भी संसदीय समिति की सिफारिशों से मेल खा रही है।
नीति आयोग रिपोर्ट
केंद्र सरकार के थिंक टैंक नीति आयोग की ओर से कराए गये एक अध्ययन के मुताबिक दो चरणों में चुनाव कराने का सुझाव दिया गया है। आयोग के इस सुझाव के तहत दो चुनावों के बीच 30 महीने या ढाई साल का अंतर होना चाहिए। पहले चरण में अप्रैल-मई 2019 में लोकसभा के साथ ही 14 राज्यों के चुनाव कराए जा सकते हैं, तो वहीं दूसरे चरण में अक्टूबर-नवंबर 2021 में बाकी के राज्यों में मतदान कराना संभव है। नीति आयोग का मानना है कि हर छह महीने पर दो से पांच विधानसभाओं के लिए चुनाव हो रहे हैं। इस प्रकार से लगातार होने वाले चुनाव सरकार के कामकाज में बाधा डालते हैं। इससे विकास कार्य भी बाधित होते हैं, क्योंकि आदर्श आचार संहिता लागू होने के बाद सरकार के भी हाथ बंध जाते हैं। वहीं चुनाव आयोजित कराने में होने वाला भारी भरकम खर्च भी सभी चुनाव साथ कराए जाने की दिशा में सोचे जाने की एक बड़ी वजह है।
विधि आयोग भी सक्रिय
विधि आयोग के अध्यक्ष जस्टिस बीएस चौहान ने भी लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराने की व्यवस्था को संभव करार दिया है और कहा कि इसके लिए सभी राजनीतिक दलों के बीच सहमति के अलावा संबन्धित तंत्रों की रजामंदी होती है तो वर्ष 2019 में ही लोकसभा और सभी राज्यों के विधानसभा चुनाव एक साथ कराए जा सकते हैं। चुनाव आयोग के साथ किये गये विचार विमर्श के आधार पर चौहान ने कहा कि इन पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव खत्म होने के बाद इस मुद्दे पर कोई न कोई कदम निर्णायक मोड़ पर लाने का प्रयास है।रिपोर्ट में सरकार को सुझाव दिए
गौरतलब है कि इस मुद्दे पर संसद की स्थाई समिति में भी चर्चा कर चुकी है। समिति ने दिसंबर 2015 में संसद में दाखिल अपनी रिपोर्ट में साथ चुनाव कराने को लेकर कुछ सुझाव दिए थे। इन सुझावों में पहले चरण में लोकसभा चुनाव के साथ कम से कम आधे राज्यों में विधानसभा चुनाव कराने की सिफारिश भी शामिल थी। समिति की सिफारिशों में बाकी आधे राज्यों के चुनाव उनका कार्यकाल पूरा होने के समय कराने की सिफारिश की है। हालांकि सरकार ने विधि आयोग से भी इसके लिए अध्ययन कराया, जो इस चुनाव व्यवस्था के पक्ष में अपनी रिपोर्ट सरकार को दे चुका है। गौरतलब है कि देश में आजादी के बाद शुरूआत के तीन आम चुनाव (1952, 1957, 1962) में लोकसभा चुनाव के साथ ही विधानसभा के चुनाव कराए जा चुके हैं।
20Jan-2017

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