सोमवार, 23 जनवरी 2017

यूपी: सपा-कांग्रेस गठबंधन से सियासत में नया मोड़!

भाजपा व बसपा बदल सकती है चुनावी रणनीति
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी और कांग्रेस पार्टी के चुनावी गठबंधन की गांठ बंधने से सूबे के चुनावी समीकरण बदलने से इंकार नहीं किया जा सकता। राजनीतिकारों का मानना है कि इस गठजोड़ से अकेले दम पर चुनाव मैदान में आई भाजपा व बसपा को अपने कुछ प्रत्याशियों में बदलाव करने के साथ चुनावी रणनीतियों में करना पड़ सकता है। इस चुनावी तालमेल से यह तो तय हो गया है कि कांग्रेस को यूपी में कुछ ऊर्जा जरूरी मिल जाएगी।
उत्तर प्रदेश की 403 विधानसभा सीटों पर सात चरणों में होने वाले चुनावों में भाजपा की व्यापक स्तर पर बनाई गई चुनावी रणनीति के कारण सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी की अकेले दम पर चुनाव जीतने पर शायद भरोसा नहीं था, जिसके लिए आरंभ से ही सपा महागठबंधन का अलाप करती रही है। हालांकि सपा कुनबे के आपसी दंगल ने सपा को ज्यादा प्रभावित किया है। इस दंगल के बाद सपा की बागडौर संभालने वाले सूबे मुख्यमंत्री अखिलेश यादव पार्टी में हुए सियासी नुकसान की भरपाई करने के प्रयास में रहे, लेकिन चुनाव एकदम सिर पर हैं और पहले चरण के नामांकन दाखिल करने की समय सीमा भी केवल दो दिन ही रह गई है। ऐसे में पिछले कई दिनों से कांग्रेस व रालोद के साथ महागठबंधन तैयार करने के लिए बनाए गये फार्मूले से रालोद तो पहले ही अलग हो चुकी थी, लेकिन कांग्रेस के साथ लगातार सीटों के बंटवारे को लेकर उठापठक चलती रही, जो रविवार को पटरी पर आ सकी है। अब सपा 298 तथा कांग्रेस 105 सीटों पर जोर आजमाइश करेगी।
पश्चिमी यूपी राम भरोसे
राजनीतिकारों की माने तो सपा यदि कांग्रेस के साथ रालोद से भी इसी प्रकार चुनावी गठबंधन करती तो भाजपा और बसपा को परेशान करने के लिए ताकत मिलती। पश्चिमी उत्तर प्रदेश जाट-मुस्लिम-दलित-ओबीसी बाहुल क्षेत्र के रूप में जाना जाता है और इस क्षेत्र को राष्टÑीय लोकदल का गढ़ भी माना जाता है। जबकि बसपा की तरह ही सपा भी पश्चिमी उत्तर प्रदेश में दलित-मुस्लिम वोटबैंक के सहारे चुनावी जंग में हैं। जबकि जाट समुदाय भाजपा के खिलाफ हुंकार भर रहा है तो ऐसे में रालोद को ज्यादा फायदा होने की संभावना जताई जा रही है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का अस्तित्व कमजोर है और सपा के लिए यादव भी बदायूं,आगरा, फिरोजाबाद, कासगंज के अलावा थोड़े बहुत मुरादाबाद व रामपुर में हैं। ऐसे में कहा जा सकता है कि सपा-कांग्रेस का यह चुनावी गठजोड़ पश्चिमी उत्तर प्रदेश में राम-भरोसे ही चुनाव लड़ेगा।
गठबंधन से बदलेगी रणनीति
उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य में अभी तक भाजपा, बसपा व रालोद ही ऐसे दल हैं जो अकेले दम पर चुनावी दावं खेल रहे हैं। इन सभी दलों ने विकास के अलावा राज्य की कानून व्यवस्था जैसे बुनियादी मुद्दों को अलग-अलग तरह से वर्गीकरण करके अपनी चुनावी रणनीतियां बनाई है। भाजपा ने केंद्र की मोदी सरकार की अब तक उलब्धियों और उत्तर प्रदेश के लिए बुनियादी ढांचों को मजबूत करने जैसी योजनाओं को चुनावी पटल पर मतदाताओं तक पहुंचाने की मजबूत रणनीति बनाई है। भाजपा की रणनीति से अपने आपको कमजोर मानकर चल रही सत्तारूढ़ सपा ने महागठबंधन की मजबूरी को समझा, जिसमें कांग्रेस की भी पिछले 27 साल के सूखे करने के इरादे से सपा के साथ गठबंधन करने की मजबूरी माना जा रहा है। फिर भी भाजपा, बसपा व रालोद को इस गठबंधन के बाद अपनी रणनीतियों में बदलाव करना पड़ सकता है, जिसमें कुछ प्रत्याशियों के चेहरे भी बदलना भी शामिल हो सकता है।
प्रियंका ने दी ताकत
कांग्रेस पार्टी में प्रियंका गांधी शामिल न हो लेकिन पिछले दरवाजे से यूपी की राजनीति में समर्थकों की बढ़ती मांग पर प्रियंका ने भी यूपी की सियासत में सक्रिय भूमिका निभाने के संकेत दिये है, जिसने सपा के साथ कांग्रेस के हुए गठबंधन की गांठ बांधने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। माना जा रहा है पिछले 27 साल से बदहाल कांग्रेस को ऊर्जा देने के लिए चुनाव प्रचार में भी प्रियंका बिगुल फूंकने जा रही है। इसका फायदा कांग्रेस के साथ सपा को भी मिलना तय है। सूत्रों का तो यहां तक कहना है कि प्रियंका गांधी और सपा प्रमुख अखिलेश की पत्नी डिंपल यादव ने सपा और कांग्रेस को एक मंच पर लाने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंकी है।
23Jan-2017

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