शनिवार, 7 जनवरी 2017

यूपी चुनाव: माया का दलित-मुस्लिमों पर दावं !

सपा के मुस्लिम वोटबैंक में सेंधमारी तेज
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों के मद्देनजर सपा कुनबे की बरकरार जंग पर भाजपा, बसपा, कांग्रेस और अन्य दलों की नजरें लगी हुई हैं। बसपा ने तो दलित-मुस्लिम समीकरण के दावं पर सूबे की सत्ता हासिल करने की दिशा में सपा के मुस्लिम वोटबैंक में सेंधमारी को तेज कर दिया है। इस सियासी रणनीति की पुष्टि बसपा की जारी दूसरी 100 प्रत्याशियों की सूची में मुस्लिमों को दी गई तरजीह भी करती नजर आ रही है।
देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश में सत्ताधारी समाजवादी पार्टी अपनी अंतर्कलह से जूझ रही है, जिसके अस्तितव और उसके चुनाव चिन्ह का विवाद केंद्रीय चुनाव आयोग के फैसले पर टिका हुआ है। ऐसे में जहां भाजपा को अपनी रणनीति बदलनी पड़ रही है, वहीं 2007 के विधानसभा की तर्ज पर बसपा सुप्रीमो मायावती ने दलित-मुस्लिम समीकरण पर दावं को अजमाना शुरू किया है। बसपा को उम्मीद है कि सपा की जारी आपसी जंग में मुस्लिम वोटबैंक उसके हिस्से में आ सकता है, जिसके भाजपा के पाले में जानपे की कोई उम्मीद नहीं है। यही कारण है कि बहुजन समाज पार्टी ने उत्तर प्रदेश राज्य विधानसभा की 403 सीटों में से 100 और प्रत्याशियों की शुक्रवार को जारी अपनी दूसरी सूची में 100 प्रत्याशियों में से 22 मुस्लिम मुस्लिम प्रत्याशी बनाए हैं। जबकि इसमें 27 दलित और 13 ब्राह्मण उम्मीदवारो तथा बाकी पिछड़े वर्ग से संबन्धित हैं। मसलन दो दिनों में बसपा ने यूपी में 11 फरवरी को पहले और 15 फरवरी को दूसरे चरण में होने वाले चुनाव वाली सीटों के प्रत्याशियों की सूची जारी कर दी है।
दलित-मुस्लिम बड़ी ताकत
बहुजन समाज पार्टी की रणनीति उत्तर प्रदेश में ठीक उसी तरह सत्ता हासिल करना है, जिस प्रकार से वर्ष 2007 के विधानसभा चुनाव में बसपा सत्ता में आई थी। राजनीतिकारों के अनुसार प्रदेश की कुल आबादी में मुसलमानों की हिस्सेदारी करीब 20 प्रतिशत है और मुस्लिम मतदाता प्रदेश की करीब 125 सीटों पर जीत-हार तय कर सकते हैं। दलित-मुस्लिम-ब्राह्मण के समीकरण को लेकर चुनाव जीतने की जुगत लगा रही बसपा ने मुसलमानों के एकजुट वोट की ताकत को सत्ता की चाबी माना जाता है। इसी रणनीति के तहत मायावती लगातार खुद को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भाजपा के एकमात्र मजबूत विरोधी के तौर पर पेश करने का प्रयास करती आ रही है। इसका सियासी कारण है कि वह मुसलमानों से साम्प्रदायिक शक्तियों को रोकने के लिये मुस्लिम कौम का हित बसपा में बताते हुए एकजुट करने की रणनीति कर रही हैं। भाजपा, सपा व कांग्रेस को जातिवादी करार देते हुए मायावती अपने आपको सर्वसमाज की हितैषी बताने में भी कोई परहेज नहीं कर रही हैं, जिसे वह प्रदेश में सभी वर्गो को उम्मीदवार बनाकर साबित करने का भी प्रयास कर रही हैं, जबकि मायावती का फार्मूला दलित-मुस्लिम समीकरण पर ही टिका हुआ है। माना जा रहा है कि यदि यही फार्मूला मुस्लिम-दलित को एकजुट करता है तो किसी भी दल को बना भी सकता है और उसका समीकरण बिगाड़ भी सकता है। पिछले 2012 के चुनाव में मुस्लिमों की एकजुटता ने सपा को प्रचंड बहुमत देकर सत्ता तक पहुंचाया था।
जातियों के आधार टिकट
यूपी चुनाव को लेकर बसपा सुप्रीमो मायावती पहले ही कह चुकी हैं कि सूबे की 403 सीटों में बसपा 87 दलितों, 97 मुसलमानों, 106 पिछड़ों और 113 अगड़ी जातियों को टिकट दे रही है। बसपा ने अगड़ी जातियों में 66 ब्राह्मण, 36 क्षत्रिय और 11 कायस्थ, वैश्य तथा पंजाबी को टिकट देने का निर्णय लिया है। बहुजन समाज पार्टी उत्तर प्रदेश में विधानसभा की कुल 403 में से अब तक 200 सीटों पर उम्मीदवार घोषित कर चुकी है और इनमें से 58 सीटों पर मुसलमानों को टिकट दिये गये हैं। बसपा की गुरुवार को घोषित 100 प्रत्याशियों की पहली सूची में जहां 36 मुसलमान थे, वहीं दूसरी सूची में इस कौम के 22 लोगों को टिकट दिये गये हैं।
07Jan-2017

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