बुधवार, 18 जनवरी 2017

इसलिए गठबंधन करना सपा की मजबूरी!

यूपी में भारी पड़ती भाजपा को रोकने की लामबंदी
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
उत्तर प्रदेश में सत्तारूढ़ सपा के प्रमुख साबित हुए मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को शायद अपने पांच साल के कार्यकाल की उपलब्धियों पर इतना ऐतबार नहीं है, जितना भरोसा यूपी चुनाव फतेह करने के लिए भारतीय जनता पार्टी की तैयार की गई भारी-भरकम चुनावी रणनीतियों पर है। यूपी में नजर आ रही भाजपा की लहर को रोकने के लिए समाजवादी पार्टी ने कांग्रेस और रालोद जैसे दलों के साथ गठबंधन करके चुनाव मैदान में आने की तैयारी को तेज कर दिया है।
देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के पहले चरण की अधिसूचना मंगलवार को जारी हो चुकी है। एक दिन पहले ही सोमवार को चुनाव आयोग ने राज्य की सत्ताधारी समाजवादी पार्टी और उसके चुनाव चिन्ह ‘साइकिल’ का मालिकाना हक मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को दे दिया है, जो अकेले दम पर चुनाव मैदान में जाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं। इसलिए सपा के दंगल के दौरान गठबंधन की शुरू हुई सुगबुगाहट को पार्टी की बागडौर अपने हाथों में आते ही अखिलेश यादव ने सार्वजनिक करते हुए ऐलान कर दिया है कि सपा चुनाव मैदान में कांग्रेस और रालोद के साथ गठबंधन करके फिर से सत्ता पर काबिज होगी। हालांकि सपा के इस दंगल के बीच ही कांग्रेस के रणनीकार प्रशांत किशोर ने सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव को गठबंधन का फार्मूला दिया था, लेकिन महागठबंधन की दुहाई देने वाले मुलायम ने अकेले दम पर चुनाव लड़ने का ऐलान किया, लेकिन यह फार्मूला मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को जरूर भा गया होगा। तभी से वे खासकर कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ने पर जोर देते आ रहे थे। अब तो सपा में सर्वेसर्वा अखिलेश ही हैं तो सपा के साथ कांग्रेस और रालोद जैसे दलों का खेवनहार बनने का फैसला कर ही दिया है। राजनीतिकारों का मानना है कि अखिलेश यादव को शायद अपनी सपा के दम पर चुनावी वैतरणी पार लगाने का भरोसा नहीं है और न ही उन्हें अपने पांच साल के कार्यकाल की उलब्धियों से फायदा मिलने की उम्मीद है? दूसरी और असम की तर्ज पर यूपी चुनाव जीतकर सत्ता कब्जाने के लिए भाजपा की मजबूत होती चुनावी रणनीति से भी सत्तारूढ़ सपा को डर सता रहा है, यह भय स्वाभाविक भी है क्योंकि सपा कुनबे के विवाद ने उसकी पार्टी को सियासी तौर पर कहीं न कहीं कमजोर तो किया ही है।
कांग्रेस व रालोद की अपनी गरज
उत्तर प्रदेश जैसे राज्य में अपना जनाधार बनाने में कामयाबी की राह न पकड़ने की वजह से कांग्रेस की अपनी भी मजबूरी है कि वह सपा जैसे दल के साथ चुनावी जनाधार हासिल कर सके। पिछले 2012 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी गांव ओर खेत खलियानों के रास्ते चलने के बावजूद कांग्रेस को ऊर्जा नहीं दे पाए थे। इसी अनुभव ने उसके गठबंधन के लिए मजबूर किया हुआ है। जहां तक सपा के साथ राष्टÑीय लोकदल के चुनावी गठजोड़ करने का सवाल है उसे पश्चिमी उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव के दौरान पूरा सियासी किला ध्वस्त कराने के बाद उसके पुनर्निर्माण में उम्मीदों की किरण नजर आ रही है। माना जा रहा है कि सपा प्रमुख अखिलेश यादव, कांग्रेस युवराज राहुल गांधी और रालोद के जयंत चौधरी जैसे नौजवान और इन दलों के अन्य दिग्गज चुनावी रैलियों में एक मंच पर होंगे तो तीनों दलों को सियासी फायदा मिलने की उम्मीद है। खासतौर से यह गठबंधन यूपी में भाजपा के चुनावी रथ को रोकने के इरादे से करने की सबसे बड़ी मजबूरी मानी जा रही है।
गठबंधन का फार्मूला तैयार
सूत्रों के अनुसार सपा प्रमुख के तौर पर अखिलेश यादव ने चुनावी मैदान में जाने के लिए अपने पिता मुलायम सिंह यादव का आर्शीवाद लेने के साथ ही चुनावी रणनीति पर भी चर्चा की जिसमें कांग्रेस व रालोद गठबंधन के फार्मूले की भी जानकरी दी। ऐसे में मुलायम सिंह यादव ने भी अपने तीन दर्जन से ज्यादा प्रत्याशियों की सूची अखिलेश को सौंपी है। सपा के सूत्रों की माने तो अखिलेश यादव ने प्रो. रामगोपाल यादव के साथ मिलकर कांग्रेस व रालोद के साथ गठबंधन का फार्मूला भी तैयार कर लिया है, जिसमें सपा 89 सीटें कांग्रेस तथा 20 सीटें रालोद के लिए छोड़ रही है। जबकि सपा 280 सीटों पर अपने उम्मीदवारों को चुनाव मैदान में उतारेगी। सूत्रों के अनुसार बाकी 14 सीटों पर अन्य दलों को देने का विचार है अन्यथा इन पर सपा अपने उम्मीदवारों को उतारेगी, लेकिन वह कांग्रेस के चुनाव चिन्ह पर चुनाव लड़ेंगे।
यह भी बड़ा कारण
सपा परिवार की कलह चरम पर पहुंचने से पहले ही अखिलेश यादव ने रालोद-कांग्रेस संग गठबंधन के संकेत दे दिए थे। लेकिन बाद के हालातों को देखते हुए ये भी गठबंधन उनकी मजबूरी बन गया। इस मजबूरी के पीछे कई कारण बताए जा रहे हैं। बड़ा कारण बसपा की रणनीति है तो दूसरी ओर वोटों का जातीय समीकरण भी परेशान कर रहा है। रही-सही कसर पार्टी की रार ने भी पूरी कर दी। इसी के चलते अखिलेश यादव ने मुलायम की न के बाद भी आखिरी वक्त तक गठबंधन के लिए रास्ते खुले रखे। राजनीतिकारों के अनुसार जिस तरह से बसपा ने बहुत पहले ही मुस्लिम कार्ड खेलते हुए करीब 97 मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट दिया था, तभी से सपा के लिए ये कार्ड परेशानी बन गया था। उसके बाद से कई और ऐसी घटनाएं हुईं कि सपा इसकी काट खोजने में लग गई। गठबंधन के अलावा सपा के पास कोई रास्ता भी नहीं बचा था। क्योंकि सपा की आपसी रार से सबसे ज्यादा प्रभावित मुस्लिम वोटर ही हो रहा था। इसीलिए आखिरी वक्त तक मुस्लिम वोटर स्थिर बना रहा। लेकिन किसी भी वक्त उसके करवट लेने की आशंका सपा को डरा रही थी।
18Jan-2017

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