प्याज की कीमतों को लेकर मचे घमासान
भारत जैसे देश मे सियासत का तख्तापलट करने में प्याज की भूमिका
को नजरअंदाज करना बड़ी भूल हो सकती है? जहां लोकसभा में केंद्रीय वित्त मंत्री और फिर
एक और केंद्रीय मंत्री के प्याज की कीमतों को लेकर मचे घमासान के बीच दिये गये हल्के
बयानों ने केंद्र की सरकार का नेतृत्व कर रही पार्टी को ऐसे सांसत में डाल दिया कि
मीडिया ने संसद परसिर में सत्ताधरी दलों के सांसदों से केवल प्याज खाने या न खाने को
लेकर ही सवाल दागने शुरु कर दिये, लेकिन सांसद वित्तमंत्री के
बयान पर अपने जवाब में नो कमेंट के अलावा कुछ और बोलने को तैयार नहीं थे। वहीं दूसरी
और विपक्षी दलो को सरकार के खिलाफ बड़ा मुद्दा मिल गया है जिससे सरकार सड़क से लेकर
संसद तक चौतरफा इसलिए भी घिरती नजर आ रही है क्योंकि पहले ही प्याज के आंसू रोने वाले
लोग बहुत ही आहत हैं। दूसरी और ऐसे बयानों के बाद संसद से लेकर सड़क तक विपक्ष सरकार
पर हमलावर हो गया है। सरकार को विपक्ष ही नही घेर रहा है, बल्कि
प्याज की कीमतों को लेकर मोदी सरकार की चुप्पी के कारण आहत लोग ऐसे बयानो को जले पर
नमक छिड़कने के समान बताने से भी पीछे नहीं हैं। वहीं सोशल मीडिया पर अपने बयानों के
लिए ट्रोल होने वाली वित्त मंत्री इस कदर निशाने पर आती नजर आ रही है कि यूजर्स ने
कई तरह के मीम के जरिए केद्रीय वित्त मंत्री को खरी खोटी सुनाने में भी कोई कसर बाकी
नही छोड़ रहे है। सोशल मीडिया पर प्याज की तुलना डॉलर करते हुए यहां तक लिखा गया है
कि चलो रुपया कमजोर सही, पर कम से कम भारत का प्याज तो अमेरिकी
डॉलर के मुकाबले मजबूत हुआ है?
08Dec-2019

तू नहीं, तो और सही!
देश की राजनीती किस कदर स्वार्थ की पटरी पर आ गई है, ऐसी ही कहानी झारखंड विधानसभा चुनाव में
साफ नजर आ रही है। मसलन हरजाई तो अपना भी यहीं तौर सही, तू नहीं
और सही और नहीं और यही सही..! वाली कहावत पर सियासी दलों पर सटीक बैठ रही है यानि जो
नेता कल कांग्रेस में था, आज भाजपा, जेएमएम
या आजसू की टिकट पर चुनाव लड़ रहा है, जो जेएमएम में था वह भाजपा
या आजसू के टिकट से चुनावी जंग में है। झारखंड के चुनाव में बागियों के इस मकड़जाल
से ऐसा लगता है कि सियासत करने वालों ने महाराष्ट्र चुनाव से शायद कोई सबक लेने का
प्रयास नहीं किया? जहां दलबदलुओं को मतदाताओं ने ऐसा सबक दिया
है कि बहुमत हासिल करने वाला गठबंधन सरकार तक नहीं बना सका और रातनीतिक स्वार्थ में
विपरीत विचारधराओं वाले दलों ने बेमेल गठजोड़ करके ऐसी सरकार बना ली कि उसकी डोर न
जाने कब टूट जाए। ऐसा ही दलबदलुओं के साथ झारखंड में न हो जाए इससे इंकार नहीं किया
जा सकता। यानि यहां भी बागियों की हार जीत उन्हे मिलने वाले वोट से ही तय मानी जा रही
है। राजनीतिकारों की मानें तो नेता बेचारा चुनाव नहीं लड़ेगा तो क्या करेगा। इसी तर्क
से भाजपा, कांग्रेस, जेएमएम, आजसू आदि के बागी नेता पार्टी बदल कर लड़ रहे हैं। सबसे ज्यादा दुर्दशा तो
कांग्रेस की है, जिसके तीन पूर्व प्रदेश अध्यक्ष तीन दूसरी पार्टियों
से चुनाव मैदान में हैं, लेकिन वोटो का पारंपरिक हिसाब ऐसा बिगड़ा
हुआ है कि झारखंड की कई सीटों का चुनावी समीकरण समझ से परे है। 08Dec-2019
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