शनिवार, 14 दिसंबर 2019

लोकसभा व विधानसभाओं में एससी/एसटी आरक्षण दस साल बढ़ाने का रास्ता साफ

संसद के दोनों सदनों ने दी संबन्धित संविधान (संशोधन) विधेयक को मंजूरी

राज्यसभा और विधान परिषदों में भी आरक्षण का सुझाव
हरिभूमि ब्यूरो. नई दिल्ली।
लोकसभा के बाद राज्यसभा ने भी लोकसभा और राज्यों की विधानसभा में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति समुदायों को दिए गए आरक्षण को दस साल बढ़ाकर 2030 तक करने के प्रावधान वाले संविधान (126वां संशोधन) विधेयक को ध्वनिमत के साथ मंजूरी दे दी गई है।
राज्यसभा में गुरुवार को केंद्रीय विधि एवं न्याय मंत्री रविशंकर प्रसाद द्वारा पेश किये गये संविधान (126वां संशोधन) विधेयक-2019 को चर्चा के बाद ध्वनिमत के साथ पारित कर दिया गया। इस विधेयक के संशोधन के जरिए 25 जनवरी 2020 को लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं में जारी अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लोगों का आरक्षण समाप्त होने जा रहा है। इसलिए इस विधेयक में संविधान के अनुच्छेद 334 के तहत लोकसभा एवं राज्य विधानसभाओं में मिलने वाले आरक्षण के प्रावधान को दस साल आगे बढ़ाने का प्रस्ताव शामिल किया गया है। इस विधेयक को लोकसभा पहले ही मंजूरी दे चुका है। राज्यसभा में पारित इस विधेयक से पहले हुई चर्चा के दौरान विभिन्न दलों ने सरकार का ध्यान उस और आकर्षित किया कि इस विधेयक में किये जा रहे संशोधन में एंग्लो इंडियन के लोकसभा में दो और 13 विधानसभाओं में एक-एक प्रतिनिधि के मनोयन के बारे में कोई जिक्र नहीं किया गया है। उच्च सदन में इस विधेयक पर हुई चर्चा का जवाब देते हुए केंद्रीय मंत्री रविशंकर ने कहा कि मोदी सरकार देश में विभिन्न क्षेत्रों में जारी एससी/एसटी आरक्षण को को समाप्त करने के कतई पक्ष में नहीं है, इसीलिए लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में अगले माह समाप्त होने जा रहे आरक्षण को बरकरार रखने के लिए इस विधेयक को संसद की मंजूरी बेहद जरूरी है। उच्च सदन में केंद्रीय मंत्री के एंग्लो इंडियन के आरक्षण पर की गई टिप्पणी पर कांग्रेस के सदस्य सदन से वाकआउट करके बाहर जाने लगे तो सभापति वेंकैया नायडू ने एसवसी/एसटी के आरक्षण पर जिस प्रकार की सीख के साथ अपील की तो उसे सुनकर वे वापस अपनी सीटों पर आ गये और विधेयक के पक्ष में नजर आए। गौरतलब है कि लोकसभा में एससी की 84 सीटें और एसटी की 47 सीटें आरक्षित हैं। जबकि राज्यों की विधानसभाओं में एससी की 614 सीटें और एसटी की 554 सीटें आरक्षित हैं।
एंग्लो इंडियन पर क्या बोली सरकार
लोकसभा और विधानसभाओं में एंग्लो इंडियन के मनोयन पर विधेयक को लेकर केंद्रीय मंत्री ने स्पष्ट किया कि एंग्लो इंडियन समुदाय पर सरकार ने विचार करना बंद नहीं कया है, जिनका सेना, शिक्षा और विभिन्न क्षेत्रों में एंग्लो इंडियन समुदाय का योगदान बेहतर रहा। एंग्लो इंडियन समुदाय पर सरकार का कथन था कि इनके दो प्रतिनिधि लोकसभा एवं एक प्रतिनिधि विधानसभा में होने की बात संविधान में स्पष्ट है, लेकिन संविधान में यह भी प्रावधान है कि राष्ट्रपति ही इन्हें मनोनीत कर सकते हैं। जबकि लोकसभा में ये दो मनोनीत सदस्य और विधानसभा में एक मनोनीत सदस्य सदन के आम सदस्यों के अलावा होंगे। जहां तक एंग्लो इंडियन समुदाय के लोगों की 296 की आबादी का सवाल है उस पर शंका करना ठीक नहीं है। देश में आज अनुसूचित जाति समुदाय की संख्या 20.13 करोड़ है जो 1947 में एससी समुदाय की संख्या 5.13 थी। इसी प्रकार 2011 की जनगणना के अनुसार अनुसूचित जनजाति समुदाय की संख्या बढ़कर 10.45 करोड़ हो गई है। इस संख्या को सही माना जाए तो उनके आरक्षण को प्राथमिकता देना जरूरी है। उन्होंने कहा कि जहां देश में एससी/एसटी एवं ईसाइयों की आबादी बढ़ी है, वहीं दुर्भाग्यवश एंग्लो इंडियन समुदाय की संख्या कम होती गयी और आज केवल 296 रह गई है
राज्यसभा व विधान परिषद में आरक्षण का सुझाव
राज्यसभा में इस विधेयक पर चर्चा के दौरान कांग्रेस के सदस्यों ने केंद्र सरकार को सुझाव दिया है कि लोकसभा और राज्यों की विधानसभा की तर्ज पर ही राज्यसभा और राज्यों की विधान परिषदों में एससी/एसटी आरक्षण को लागू करने पर विचार होना चाहिए। कांग्रेस के अलावा अन्य दलों के सदस्यों ने भी राज्यसभा और विधान परिषद में इस प्रकार के आरक्षण लागू करने की वकालत की है।
13Dec-2019

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