
राज्यसभा
और विधान परिषदों में भी आरक्षण का सुझाव
हरिभूमि ब्यूरो. नई दिल्ली।
लोकसभा
के बाद राज्यसभा ने भी लोकसभा और राज्यों की विधानसभा में अनुसूचित जाति और अनुसूचित
जनजाति समुदायों को दिए गए आरक्षण को दस साल बढ़ाकर 2030 तक करने के प्रावधान वाले संविधान (126वां संशोधन) विधेयक को ध्वनिमत के साथ
मंजूरी दे दी गई है।

एंग्लो इंडियन पर क्या बोली सरकार
लोकसभा और विधानसभाओं में एंग्लो इंडियन के मनोयन पर विधेयक
को लेकर केंद्रीय मंत्री ने स्पष्ट किया कि एंग्लो इंडियन समुदाय पर
सरकार ने विचार करना बंद नहीं कया है, जिनका सेना,
शिक्षा और विभिन्न क्षेत्रों में एंग्लो इंडियन
समुदाय का योगदान बेहतर रहा। एंग्लो इंडियन समुदाय पर
सरकार का कथन था कि इनके दो प्रतिनिधि लोकसभा एवं एक प्रतिनिधि विधानसभा
में होने की बात संविधान में स्पष्ट है, लेकिन संविधान में यह भी प्रावधान है कि राष्ट्रपति ही इन्हें
मनोनीत कर सकते हैं। जबकि लोकसभा में ये दो मनोनीत सदस्य और विधानसभा
में एक मनोनीत सदस्य सदन के आम सदस्यों के अलावा होंगे। जहां तक एंग्लो इंडियन समुदाय के लोगों की 296 की आबादी का
सवाल है उस पर शंका करना ठीक नहीं है। देश में आज अनुसूचित जाति समुदाय की संख्या 20.13 करोड़ है जो 1947 में एससी समुदाय की संख्या 5.13
थी। इसी प्रकार 2011 की जनगणना के अनुसार अनुसूचित
जनजाति समुदाय की संख्या बढ़कर 10.45 करोड़ हो गई है। इस संख्या को
सही माना जाए तो उनके आरक्षण को प्राथमिकता देना जरूरी है। उन्होंने
कहा कि जहां देश में एससी/एसटी एवं ईसाइयों
की आबादी बढ़ी है, वहीं दुर्भाग्यवश
एंग्लो इंडियन समुदाय की संख्या कम होती गयी और आज केवल 296 रह गई है।
राज्यसभा व विधान परिषद में आरक्षण का सुझाव
राज्यसभा में इस विधेयक पर चर्चा के दौरान कांग्रेस
के सदस्यों ने केंद्र सरकार को सुझाव दिया है कि लोकसभा और राज्यों की
विधानसभा की तर्ज पर ही राज्यसभा और राज्यों की विधान परिषदों में एससी/एसटी
आरक्षण को लागू करने पर विचार होना चाहिए। कांग्रेस के अलावा अन्य दलों के सदस्यों
ने भी राज्यसभा और विधान परिषद में इस प्रकार के आरक्षण लागू करने की वकालत की है।
13Dec-2019
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