शनिवार, 14 दिसंबर 2019

नागरिकता (संशोधन) विधेयक पर लगी संसद की मुहर

राज्यसभा में विपक्ष के 105 मतों के मुकाबले 125 मतों से बिल पास
वोटिंग के दौरान शिवसेना का सदन से वाकआउट
विपक्ष के प्रवर समिति को भेजने और 14 संशोधन प्रस्ताव भी गिरे
भारतीय मुसलमानों को डरने की जरूरत नहीं: शाह
हरिभूमि ब्यूरो. नई दिल्ली।
मोदी सरकार ने विपक्षी दलों के चौतरफा घिरे हाने के बावजूद भारी विरोध के बीच संसद में एक ओर इतिहास रचते हुए नागरिकता (संशोधन) विधेयक पर संसद की मुहर लगवा ली है। लोकसभा से पारित होने के बाद राज्यसभा में सभी चुनौतियों को मात देते हुए इस विधेयक को मंजूरी मिल गई है, जिसमें विपक्ष द्वारा लाए गये 14 संशोधनों और इस विधेयक को प्रवर समिति को भेजने का प्रस्ताव भी औंधे मुहं गिरता नजर आया।
राज्यसभा में मोदी सरकार के लिए नागरिकता (संशोधन) विधेयक को पारित कराना एक बड़ी चुनौती था, जिसे सरकार की अग्नि परीक्षा बताया जा रहा था। लेकिन सरकार ने विपक्षी दलों की एकजुटता को कड़ी चुनौती देते हुए इस विधेयक के लिए संसद की मंजूरी लेकर एक बार फिर ऐतिहासिक बाजी मारने में महारथ हासिल कर ली है। इस विधेयक में पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के अल्पसंख्यक छह समुदाय के शरणार्थियों को भारत की नागरिकता देने का प्रावधान है, जिससे उन्हें भारतीय संविधान में सभी अधिकार मिल जाएंगे। इससे पहले लोकसभा से पारित नागरिकता (संशोधन) विधेयक बुधवार दोपहर राज्यसभा में पेश किया गया, जिसके लिए छह घंटे से ज्यादा हुई चर्चा के दौरान सत्तापक्ष और विपक्ष के करीब 44 सांसदों ने हिस्सा लिया। चर्चा के दौरान विपक्षी दलों ने इस विधेयक को समीक्षा के लिए सदन की प्रवर समिति को सौंपने का प्रस्ताव पेश करने के साथ 14 संशोधन भी पेश किये। उच्च सदन में चर्चा के जवाब में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह द्वारा देश को आश्वस्त करने के बाद सबसे पहले विपक्ष द्वारा विधेयक को प्रवर समिति के समक्ष भेजने के प्रस्ताव पर वोटिंग कराई गई, जहां विपक्ष का यह प्रस्ताव 124 के मुकाबले 99 मतो से गिर गया। इसके बाद विपक्ष द्वारा विधेयक में लाए गये 14 संशोधन प्रस्ताव भी इसी प्रकार गिरते चले गये। आखिरकार केंद्र सरकार का महत्वाकांक्षी नागरिकता (संशोधन) विधेयक पर जब मत विभाजन कराया गया तो इसे विपक्ष के 105 मतों के मुकाबले 125 मतों से राज्यसभा की मंजूरी मिल गई। इस विधेयक पर वोटिंग के समय शिवसेना ने सदन से वाकआउट किया, जिसके सदन में तीन सदस्य हैं।             
चर्चा के जवाब में भारी पड़े शाह
अमित शाह ने राज्यसभा में कहा कि विधेयक पर हुई चर्चा का जवाब देते हुए कांग्रेस के कपिल सिब्बल के उस सवाल का करारा जवाब दिया जिसमें सिब्बल ने कहा था कि सरकार को कैसे पता कि जो लोग आ रहे हैं वे धार्मिक आधार पर पीड़ित हैं। इस पर शाह ने कहा कि वह कहना चाहते हैं कि हमें इसलिए पता हैं क्योंकि हमारे आंख कान खुले हैं, हमने वोटबैंक के लिए अपने आंख कान बंद नहीं कर रखे हैं। अमित शाह ने आगे कहा कि सिब्बल ने कहा कि देश का मुसलमान आपसे नहीं डरता है। वह कहते हैं कि डरना भी नहीं चाहिए, बस आप जैसे लोग उन्हें डराने की कोशिश मत कीजिए। वे कहते हैं कि इस बिल से मुसलमानों का अधिकार छिन जाएगा, मगर वह सबको भरोसा दिलाना चाहते हैं कि इस विधेयक से किसी का भी अधिकार नहीं छिनेगा।
अदालत जाने के लिए हर कोई स्वतंत्र: शाह
कपिल सिब्बल और चिदंबरम की ओर निशाना साधते हुए अमित शाह ने कहा कि दोनों संसद को डरा रहे हैं कि संसद के दायरे में कोर्ट घुस जाएगा भला। अदालत ओपन है। कोई भी अदालत जा सकता है। हमें इससे डरना नहीं चाहिए। हमारा काम अपनी विवेक, बुद्धि से कानून बनाना है और जो हमने किया है और मुझे विश्वास है कि यह कानून अदालत में भी सही पाया जाएगा।
मुसलमानों को कोई नुकसान नहीं
शाह कहा कि वह कभी नहीं कहते कि मुझसे डरो. वह तो यह भी नहीं चाहते कि कोई देश का नागरिक किसी से डरे। उन्होंने अल्पसंख्यकों से अपील की हे कि उन्हें किसी से डरने की जरूरत नहीं है। यह बिल किसी तरह से मुस्लिम भाइयों को नुकसान नहीं करता है। इससे किसी की नागरिकता खतरे में नहीं पड़ने वाली है। यह सिर्फ तीन देशों से आए शरणार्थियों को नागरिकता देना का सवाल है, यहां के मुसलमानों को इससे कोई लेना देना नहीं है। कांग्रेस नेता सबको डरा रहे हैं। बिल को लेकर हमारे भीतर कोई भ्रम नहीं है।
देश में मुस्लिमों को संरक्षण मिला
अमित शाह ने कहा कि नेहरू-लियाकत समझौते के तहत दोनों पक्षों ने इस बात की स्वीकृति दी कि अल्पसंख्यक समाज के लोगों को बहुसंख्यकों की तरह समानता दी जाएगी। उनके व्यवसाय, अभिव्यक्ति और पूजा करने की आजादी भी सुनिश्चित की जाएगी। मगर वहां लोगों को चुनाव लड़ने से भी रोका गया, उनकी संख्या लगातार कम होती रही। मगर यहां राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, चीफ जस्टिस जैसे कई उच्च पदों पर अल्पसंख्यक रहे।
विधेयक को राजनीतिक दृष्टिकोण से देखना गलत
अमित शाह ने राज्यसभा में कहा कि पिछली सरकारों ने युगांडा से आए लोगों को नागरिकता दी, मगर हमने किसी के इरादों पर शंका नहीं की। इसे राजनीतिक दृष्टिकोण से नहीं देखना चाहिए। हम ध्यान भटकाने के लिए नहीं आए हैं। ये बिल 2015 में लेकर आए थे। पहले की सरकारों ने समाधान करने की कोशिश नहीं की। हम चुनावी राजनीति अपने दम पर लड़ते हैं। देश की समस्याओं का समाधान करना हमारा काम है।
मोदी सरकार ने 566 मुस्लिमों को दी नागरिकता
मोदी सरकार के पांच साल के शासन में इन तीन देशों से आए 566 से ज्यादा मुस्लिम नागरिकों को हमने नागरिकता दी है। उन्होंने कहा कि हम 6 धर्मों के लोग इस बिल में ला रहे हैं, तो कोई प्रशंसा नहीं है। मगर हमने मुस्लिमों को शामिल नहीं किया तो सवाल उठाए जा रहे हैं, यह वोटबैक की सियासत है।
ममता के नाम पर हंगामा
अमित शाह ने राज्यसभा में जवाब देने के दौरान ममता बनर्जी का नाम लिया, जिस पर टीएमसी सांसदों ने हंगामा कर दिया। दरअसल, अमित शाह घुसपैठ पर ममता बनर्जी के एक बयान को कोट कर रहे थे। अमित शाह ने पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी का जिक्र करते हुए कहा कि बांग्लादेशी घुसपैठ का जिक्र ममता बनर्जी ने 2005 में किया था।
श्रीलंका के हिंदुओं को शामिल न करने पर सवाल
राज्यसभा में नागरिकता संशोधन विधेयक पर सवाल उठाते हुए नेता विपक्ष गुलाम नबी आजाद ने कहा कि इस बिल में श्रीलंका के हिन्दुओं को क्यों नहीं शामिल किया गया। भूटान से आने वाले ईसाईयों को शामिल क्यों नहीं किया गया। गृह मंत्री का कहना है कि पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश में हिन्दुओं का उत्पीड़न हुआ है, मगर अफगानिस्तान में जितना मुस्लिम महिलाओं का उत्पीड़न हुआ है उतना किसी का नहीं हुआ है। 
14Dec-2019

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