बेवजह की रार
देश में संशोधित नागरिकता कानून को संसद में
विपक्षी एकता का दम भरने वाली कांग्रेस जिस प्रकार से औंधे मुहं गिरती नजर आई, शायद उसकी भड़ास निकालने के मकसद से मोदी सरकार को
घेरने के लिए अब सड़कों पर लोगों को भड़काने की रणनीति अपनाकर देश में अस्थिरता का
माहौल पैदा कर रही है, उसमें उसका दोहरा
चरित्र साफतौर से उजागर होने लगा है। देश के अलग अलग हिस्सों में हो रहे प्रदर्शन और
छात्रों के आंदोलन के लिए तमाम भाजपा नेता तो कांग्रेस को ही जिम्मेदार ठहरा रहे हैं।
पीएम मोदी व केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह से लेकर असम के हिमंता बिस्वा सरमा तक सभी
आरोप लगा रहे हैं कि कांग्रेस ही लोगों को उकसा रही है और लोगों को नागरिकता कानून
पर गुमराह कर छात्रों से आंदोलन करा रही है। यदि यूं कहा जाए तो इस कानून को लेकर जो
भ्रम फैलाने में कांग्रेस के नेतृत्व में विपक्ष जानबूझकर अनभिज्ञ होकर जनता को अज्ञानता
का पाठ पढ़ा रहा है सच्चाई तो उसके एकदम विपरीत है। जबकि कांग्रेस अटल सरकार में राजीव
गांधी सरकार की इस मुहिम को आगे बढ़ाने की वकालत करती नजर आई थी। क्योंकि वह भी जानती
है कि इस कानून में कहीं भी ऐसा प्रावधान नही है, जिससे ये कहा जाए कि मुस्लिम समेत किसी भी भारतीय की नागरिकता
छीनने जा रही है, बल्कि कानून में
तीन देशों के छह अल्पसंख्यक समुदायों के शरणार्थियों को नागरिकता देने का काम होगा, इस बात को सभी सियासी दल और देश के प्रबुद्ध
लोग भी जानते हैं। इस कानून को लेकर मचे हिंसात्मक बवाल के बीच मुस्लिमों की सियासत
में मशगूल कांग्रेस और उसके पिछलगू बने अन्य राजनीतिक विपक्षी दलों से तो बेहतर एक
बयान देकर दिल्ली की जामा मस्जिद के इमाम अहमद बुखारी ने ही सकारात्मक संकेत देकर प्रदर्शन
करने वालों खासकर मुसलमानों को सचेत करने का प्रयास किया है कि इस कानून से किसी भी
भारतीय मुसलमानों का कोई लेना देना नहीं है। फिर भी कांग्रेस विपक्षी दलों का गैंग
बनाकर अपना सियासी खेल करना चाह रही है। सियासी गलियारों में हो रही चर्चा में तो यहां
तक कहा जा रहा है कि इस मुद्दे पर कहीं गेंहू के साथ घुन न पिस जाए। मसलन मोदी सरकार
के खिलाफ मोर्चा खोलने वाले विपक्षी दलों के लिए वो कहावत चरितार्थ होती नजर आ रही
है कि हम तो डूबेंगे सनम...तुम्हे भी ले डूबेंगे.!
बिगाड़ा सियासी स्वाद
भाजपा के खिलाफ महाराष्ट्र में शिवसेना के साथ
कांग्रेस व राकांपा गठबंधन की सरकार में क्या सबकुछ ठीक नहीं है? यही सवाल
राहुल गांधी के कुछ बयानों और विपक्षी एकता की राजनीति के प्रति गंभीरता के अभाव से
नाराज शिवसेना और राकांपा की और से कुछ ऐसे ही संकेत मिले हैं, जिसकी वजह से विपक्षी एकता का स्वाद बिगड़ता दिख रहा है। जब देश में नागरिकता
कानून और नागरिक रजिस्टर को लेकर आंदोलन चल रहा है और झारखंड में चुनाव हो रहे हैं
तो भी कांग्रेस नेता राहुल गांधी विदेश में हैं, तो ऐसे में राकांपा
प्रमुख शरद पवार जो आमतौर पर किसी पर व्यक्तिगत टिप्पणी नहीं करते, लेकिन ऐसा लग रहा है कि कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी को लेकर उनके
भी मन के भाव उजागर हो गये हों और पवार ने पिछले दिनों राहुल गांधी के विदेश दौरे को
लेकर निशाना साधने में कोई हिचकिचहाट नहीं की। दरअसल हाल ही में पवार ने राहुल के बारे
में व्यंग्य के लहजे में यहां तक कह दिया कि नेता ऐसा होना चाहिए जो देश में रहे और
राहुल गांधी ऐसे माहौल में देश से बाहर हैं। सियासी गलियारों में चर्चा है कि महाराष्ट्र
में गठबंधन की डोर में कुछ लोचा है। यह इसलिए भी कहा जा सकता है क्योंकि नागरिकता कानून
जैसे मुद्दे पर संसद में जिस प्रकार से राज्यसभा में शिवसेना ने कांग्रेस से किनारा
करके वाकआउट कर इस बिल पर अप्रत्यक्ष रूप से समर्थन दिया तो कांग्रेस की नाराजगी नजर
आई और इसके बाद राहुल गांधी के सावरकर को लेकर की गई टिप्पणी से नाराज शिवसेना नेता
कांग्रेस से खफा नजर आए, जिसके लिए उन्होंने तीखी टिप्पणी भी
की, जो इन विपरीत विचारधाराओं वाले दलों के संतुलन राहुल गांधी
एक पहेली बने हुए हैं, जिनकी सियासी गंभीरता को लेकर शिवसेना
और राकांपा की चिंता करना जगजाहिर है।
22Dec-2019
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