रविवार, 15 दिसंबर 2019

राग दरबार: आजादी के मास्टर स्ट्रोक!

सरकार का मास्टर स्ट्रोक!
देश की सियासत में कोई दोस्ती और दुश्मनी कोई मायने नहीं रखती, वाली प्रचलित परंपरा में यह भी कहना मुश्किल है कि मोदी सरकार के देश की व्यवस्था में बदलाव वाले फैसलों में में नागरिकता (संशोधन) विधेयक को संसद के दोनों सदनों में रात के समय पारित कराने में कहीं अप्रत्यक्ष रूप से विरोध करने का दिखावा कर विपक्ष अप्रत्यक्ष रूप से समर्थन तो नहीं दे रहा है? इससे पहले मोदी सरकार नोटबंदी और जीएसटी जैसे दो फैसले भी रात्रि के समय ही उसी तरह लिये थे, जिस प्रकार रात के समय देश को मिली आजादी के समय ही पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने देश को संबोधित किया था, तो मोदी सरकार के रात के समय आजादी के माहौल बनाने पर किसी को भला क्या ऐतरात क्यों? मोदी-2 सरकार में तो संसद के उच्च सदन में मजबूत विपक्षी एकता के बावजूद जिस प्रकार से विवादो से घिरे विधेयकों को भी आसानी से मंजूरी मिल रही है तो उसमें विपक्ष के प्रति ऐसी शंकाओं का जोर पकड़ना लाजिमी है। भले ही मोदी सरकार के नागरिकता कानून के खिलाफ विरोध प्रदर्शनों के अलावा सियासत भी गरमाई हुई हो, लेकिन सियासी गलियारों और सोशल मीडिया पर हो रही चर्चा में विपक्ष अप्रत्यक्ष समर्थन जैसी रणनीति पर सवाल उठना लाजिमी है जिसमें यहां तक कहा जा रहा है सदन से विपक्षी दलों द्वारा वाकआउट करके भी समर्थन देने से कम नहीं है। ये सवाल इसलिए भी उठ रहे हैं कि लोकसभा में इस विधेयक पर 311 के मुकाबले विपक्ष के विरोध में केवल 80 मत पड़े यानि इस विधेयक के खिलाफ मुखर दलों के बाकी सांसद सदन से क्यों नदारद थे और यही हालत राज्यसभा में नजर आई। तभी तो मोदी सरकार के फैसलों के लिए यही कहा जा रहा है कि आधी रात के मास्टर स्ट्रोक!
विपक्ष को उपाध्यक्ष की दरकार?
सत्रहवीं लोकसभा का दूसरा सत्र भी संपन्न होने के बावजूद अभी तक लोकसभा में उपाध्यक्ष पद की नियुक्त नहीं हो सकी है, ऐसे में विपक्ष सवाल उठाते नजर आ रहा है, जो विपक्षी दल के सांसद को उपाध्यक्ष बनाने के लिए कायदे-नियमों का जिक्र करते भी नहीं थक रहे। लोकसभा में उपाध्यक्ष की नियुक्ति को लेकर भाजपा नेता एवं संबन्धित विभाग के मंत्री का कहना है कि उपाध्यक्ष की नियुक्ति करने की प्रक्रिया पूरी की जाएगी।  दरअसल 16वीं लोकसभा में सत्ताधारी दल ने अन्नाद्रमुक के थंबी दुरैई को उपाध्यक्ष बनाया था, जो इस बार चुनाव नहीं जीत पाए। सियासी गलियारों में यह चर्चा भी जोर पकड़ रही है कि सत्ताधारी भाजपा यह पद विपक्ष को देने के पक्ष में नहीं है, लेकिन वह दक्षिण भारत को ही इस पद पर नियुक्त करना चाहती है,लेकिन इस बार उनकी सहयोगी पार्टी का कोई सांसद लोकसभा नहीं पहुंचा पाया है। ऐसे में विपक्षी दलों में अभी तक लोकसभा में उपाध्यक्ष की नियुक्ति न होने पर सवाल उठाए जा रहे हैं, जो पिछली परंपरा का जिक्र कर दावा करने से पीछे नहीं है कि उनकी यूपीए सरकार के शासनकाल में लोकसभा के उपाध्यक्ष के रूप में भाजपा के करिया मुंडा को उपाध्यक्ष बनाया था और राजग को इस परंपरा का सम्मान करना चाहिए। शायद विपक्ष अपने खेमे से लोकसभा में उपाध्यक्ष बनने का इंतजार कर रहा है?
15Dec-2019

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