शनिवार, 16 मार्च 2019

आरसीईपी मुक्त व्यापार समझौते का बहिष्कार करेंगे किसान

किसान संगठनों ने सरकार व राजनैतिक दलों को दी चेतावनी
हरिभूमि ब्यूरो. नई दिल्ली।
देश के 40 से अधिक किसान संगठनों ने केंद्र सरकार के प्रस्तावित आरसीईपी (क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी) मुक्त व्यापार समझौते का बहिष्कार करने का ऐलान किया है। वहीं लोकसभा चुनाव के बाद केंद्र में आने वाली सरकार को चेतावनी दी है कि वह किसान विरोधी इस समझौते से परहेज करें, अन्यथा किसानों को आंदोलन करने की राह पकड़नी पड़ेगी।
नई दिल्ली में गुरुवार को किसान संगठनों की अखिल भारतीय समन्वय समिति में शामिल किसान संगठनों ने दो टूक शब्दों में कहा कि पिछले 28 सालों से विश्वव्यापार संगठन के समझौतों के खिलाफ आंदोलन कर रहे किसान सरकार के इस प्रस्तावित आरसीईपी (क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी) मुक्त व्यापार समझौते को कतई बर्दाश्त नहीं करेंगे, जो किसानों को बर्बाद करने वाला प्रस्ताव है। भाकियू नेता युद्धवीर सिंह ने संवाददाताओं से कहा कि  इस प्रस्तावित आरसीईपी समझौता व्यापार के तहत किसानों के उत्पादों व चीजों में 92 प्रतिशत पर टैरिफ खत्म हो जाएगी और सस्ते आयात के लिए दरवाजे खोले जाने हैं, जिससे पहले से ही संकट से जूझ रहे कृषि क्षेत्र को सबसे ज्यादा नुकसान होगा। उन्होंने कहा कि यह विश्व व्यापार संगठन से दो कदम आगे का भयंकर करार होगा, जिससे भारत की संप्रभता में अपने किसानों के हितों और उनकी आजीविका पर कई तरह से प्रतिबंधित कर देगा। हालांकि भारत व्यापार की जाने वाली वस्तुओं पर केवल 80 प्रतिशत तक टैरिफ घटाने के लिए जोर दे रहा है, पर यह समझौता भारत को बाद में अपनी ड्यूटी बढ़ाने का मौका नहीं देगा। उन्होंने कहा कि यह समझौता भारतीय दुग्ध उत्पादन पर भी नकारात्मक प्रभाव डालेगा। अमूल जैसे सहकारी और सफल प्रयोगों जोकि लाखों लोगों को रोजगार देते हैं, वे भी इसका शिकार बनेंगे। यह जानकारी देते हुए उन्होंने कहा कि भारतीय सहकारिता कंपनियां जैसे कि अमूल और कर्नाटक मिल्क फेडरेशन भारत के किसानों के साथ मिलकर इस समझौते का विरोध कर रही हैं। किसान संगठनों ने सरकार को चेताते हुए कहा कि वे इस भारतीय खाद्य  संप्रभुता पर हमले को कतई स्वीकार नहीं करेंगे।

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चुनावी घोषणा पत्र में हो किसानों की मांग पूरी करने की समय सीमा
हरिभूमि ब्यूरो. नई दिल्ली।
लोकसभा चुनाव के इस महासमर में किसानों के मुद्दों पर देश के किसान संगठनों ने तमाम प्रमुख सियासी दलों से मांग की है कि वे अपने चुनावी घोषणा पत्र में किसानों की लंबित सभी मांगों को पूरा करने के लिए समय सीमा के साथ समायोजित करे। यह भी चेतावनी दी कि चुनावों के बाद किस दल की सरकार बनेगी उससे कोई सरोकार नहीं है, लेकिन मांगे पूरी न होने पर किसानों का आंदोलन जारी रहेगा। 
किसान आंदोलन की अखिल भारतीय समन्वय समिति में शामिल भारतीय किसान यूनियन राकेश टिकैत व युद्धबीर सिंह, शेतकारी संघ के विजय जावंदिया, कर्नाटक राज्य रायत संघ के माली पाटिल, तमिलगा विवासैयागल संघ के सेलामट्टू, आदिवासी गोत्र महासभा की सीके जानू और दक्षिण भारत के कई किसान संगठनों ने यहां नई दिल्ली में दो दिन तक किसानों के मुद्दों पर चर्चा की। इसके बाद संगठनों ने गुरुवार को एक संयुक्त संवाददाता में कहा कि किसानों को इस बात से कोई सरोकार नहीं है, केंद्र में किस दल की सरकार बने, लेकिन मौजूदा लोकसभा चुनाव में किसान संगठनों की राजनैतिक दलों से पुरजोर मांग है कि वे किसान संगठनों के 18 सूत्रीय मांगों अपने चुनावी घोषणापत्र में शामिल करने के साथ उनके कार्यान्वयन सुनिश्चित करने के लिए समयसीमा तय करने का ऐलान करें। इस दौरान भाकियू पंजाब के अजमेर लाखोवाल, भाकियू हरियाणा के रतन सिंह मान, भाकिसू मध्य प्रदेश के जगदीश सिंह, राजस्थान के विद्याधर ओल्खा आदि भी मौजूद रहे।
क्या है मांग पत्र
किसान समन्वय समिति के मांग पत्र में भारत द्वारा अब तक हस्ताक्षरित सभी मुक्त व्यापार समझौतों पर एक श्वेत पत्र जारी करने, डॉ स्वामीनाथन समिति द्वारा सुझाए गए सी-2 फार्मूला के तहत सभी कृषि उत्पादों की लागत में 50 प्रतिशत मुनाफा जोड़कर न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित करने, सत्ता में आने के छह माह के भीतर सभी कर्ज माफ करने, प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना का लाभ बीमा कंपनियो के बजाए सीधे किसानों को देने, किसानों के लिए तेलंगाना फार्मले पर प्रति वर्ष प्रति एकड़ 10 हजार रूपए न्यूनतम आय सुनिश्चित करने, छोटे और मझौले किसानों को 60 वर्ष की आयु के बाद कम से कम 5 हजार की प्रति माह पेंशन देने की मांग शामिल है। वहीं गन्ना किसानों के सभी लम्बित भुगतान ब्याज सहित तत्काल बिना किसी बिलंब के करने और गन्ने का मूल्य 40 रूपए प्रति किलो तय करने, सिंचाई हेतु मुफ्त बिजली देने, कृषि यंत्रों को जीएसटी से मुक्त करने, विशिष्ट सामाजिक सुरक्षा योजना लागू करने, मनरेगा को कृषि के साथ जोड़ने, भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास कानून 2013 में उचित मुआवजा और पारदर्शिता के अधिकार को सभी राज्यों में लागू करने, कृषि मुद्दों पर संसद का विशेष सत्र आयोजित कर कृषि संकट पर चर्चा करने के अलावा  ट्रैक्टर, पंपिंग सेट और कृषि इस्तेमाल में आने वाले डीजल इंजन को इस प्रतिबंध से मुक्त करने की मांग पूरा करने पर बल दिया गया है।
15Mar-2016





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