बुधवार, 27 मार्च 2019

मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट पर आसान नहीं अजित की राह


दो जाट क्षत्रपों के बीच अस्तित्व का सियासी दंगल!   
सात साल पहले हुए दंगों के जख्मों का दर्द नहीं हुआ कम
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।  
पश्चिमी उत्तर प्रदेश की जाट लैंड के दायरे में आने वाली मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट पर सभी की नजरें जमी हुई है, जहां भाजपा प्रत्याशी डा. संजीव बालियान(सांसद) अपने तमाम कामों के बल पर फिर से जनादेश लेने के प्रयास में हैं, वहीं भाजपा के खिलाफ यूपी में बने सपा-बसपा-रालोद गठबंधन के प्रत्याशी के रूप में रालोद प्रमुख चौधरी अजित सिंह पिछले लोकसभा चुनाव में पूरी तरह ढ़हे अपने सियासी किले को पुनर्जीवित करने की फिराक में हैं। जबकि 2013 के जाट-मुस्लिम दंगे के जख्म अभी तक भरे नहीं हैं, इसलिए गठबंधन के प्रत्याशी को लेकर मुस्लिमों में ऊहापोह की स्थिति बनी हुई है।
लोकसभा क्षेत्र मेरठ, बागपत, मुजफ्फरनगर, कैराना, सहारनपुर और बिजनौर में प्रमुख राजनीतिक दालों के प्रत्याशियों की स्थिति साफ हो गई है। हरिभूमि संवाददाता ने विभिन्न वर्गो के मतदाताओं के बीच जाकर जायजा लिया, जिससे लगता है कि इस बार मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट पर बेहद दिलचस्प मुकाबला देखने को मिलेगा। इस सीट पर भाजपा ने एक फिर से केंद्र में मंत्री रहे डा. संजीव कुमार बालियान पर भरोसा जताया है, वहीं भाजपा के खिलाफ गठबंधन की सियासत में रालोद के हिस्से में आई तीन सीटों में खुद रालोद प्रमुख चौधरी अजित सिंह अपनी परंपरागत सीट बागपत को छोड़कर मुजफ्फरनगर सीट पर जाट-मुस्लिम-दलित समीकरण साधकर लोकसभा में पहुंचना चाहते हैं। मसलन करीब सात साल पहले हुए जाट-मुस्लिम दंगों के घाव अभी तक हरे होने के कारण गठबंधन का जाट प्रत्याशी खासकर मुस्लिम मतदाताओं के गले उतरने को तैयार नहीं हैं, वहीं बाकी दलगत समीकरण में भी विभाजन होने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता। हालांकि इस सीट पर संजीव बालियान व अजित सिंह में सीधा मुकाबला माना जा रहा है, लेकिन इस मुकाबले में भाजपा के सियासी व्यूह रचना के सामने गठबंधन प्रत्याशी चौधरी अजित सिंह की राहों में कांटे ज्यादा नजर आ रहे हैं। दिलचस्प यह भी है कि इस चुनाव में भाजपा और गठबंधन प्रत्याशियों के बीच जाट नेता के अस्तित्व का भी फैसला करेगा।
रिकार्ड भी रहे दिलचस्प
मुजफ्फरनगर सीट पर 7,72,733 महिलाओं समेत 16,85,594 मतदाताओं के चक्रव्यूह में इन दोनों जाट क्षत्रपों के बीच कितना-कितना हिस्सा आएगा यह तो चुनाव परिणाम के बाद ही पता चलेगा, लेकिन पांच विधानसभा सीटों वाली इस लोकसभा सीट पर यदि पिछले सियासी रिकार्ड पर नजर डालें तो राम लहर के बाद लगातार तीन बार 1991, 1996 और 1998 में में भाजपा को जीत मिली, जिसके बाद तीन बार ही लगातार इस सीट पर भाजपा को हार के बाद 2014 में भाजपा के संजीव बालियान रिकार्ड मतों से जीतकर लोकसभा पहुंचे। दिलचस्प बात यह है कि अभी तक 16 लोकसभा चुनाव में भाजपा की चारों जीतों में जाट प्रत्याशी ही लोकसभा तक पहुंचे, संजीव बालियान से पहले एक बार नरेश बालियान और दो बार सोहनवीर सिंह भाजपा के टिकट से जीत चुकें हैं। गौरतलब है कि चौधरी अजित सिंह के पिता चौधरी चरण सिंह भी 1971 के लोकसभा चुनाव में इस सीट पर कम्युनिस्ट के ठाकुर विजयपाल से शिकस्त खा चुके हैं।                        
क्या रही भाजपा की व्यूह रचना
दरअसल करीब सात साल पहले हुए जाट-मुस्लिम दंगों में एक सौ से ज्यादा मुकदमें दर्ज किये गये थे, जिनमें से पिछले दिनों यूपी की योगी सरकार ने 111 मुकदमों को वापस कराने के लिए रिपोर्ट मांगी थी, जिनमें 37 मुकदमों को वापस करने की शासन से अनुमति मिल चुकी है। वहीं अभी तक एक मुकदमें में अदालत का फैसला आ चुका है, जिसमें करीब पांच दर्जन से ज्यादा को बरी कर दिया गया है और कवाल कांड में सात मुस्लिम आरोपियों को आजीवन करावास का सजा सुनाई गई है। मसलन दंगों की आंच अभी ठंडी नहीं हुई, जिसको लेकर मुस्लिम मतदाताओं में जाट प्रत्याशियों को लेकर खासी तल्खी नजर आई। हालांकि मुस्लिमों में संजीव बालियान को लेकर इतनी नाराजगी देखने को नहीं मिली, जितनी नाराजगी अजित को लेकर देखी गई, जिसके कारण इस सीट पर अजित सिंह की राह इतनी आसान नहीं है जितनी गठबंधन के समीकरण को लेकर माना जा रहा है।
साल 2014 में इस तरह मिले थे वोट
संजीव बालियान (भाजपा)               653391
वीरेंद्र सिंह (सपा)                        160810
पंकज अग्रवाल (रालोद+कांग्रेस)        12937
कादिर राणा (बसपा)                    252241
सपा+रालोद+बसपा                     425988
23Mar-2019

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