रविवार, 24 मार्च 2019

रेड कॉरीडोर पर बिछा लोकतंत्र का रेड कारपेट!

नक्सल प्रभावित इलाकों में कड़ी सुरक्षा में होगा चुनाव
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।  
केंद्रीय चुनाव आयोग द्वारा सात चरणों में लोकसभा चुनाव कराने के ऐलान में वामपंथ उग्रवाद व नक्सलवाद ग्रस्त राज्यों में अलग-अलग कई चरणों में चुनाव कराने का फैसला इसलिए किया है कि पश्चिम बंगाल से छत्तीसगढ़, ओडिशा, झारखंड, बिहार, महाराष्ट तक फैले रेड कॉरिडोर पर लोकतंत्र का रेड कारपेट बिछाकर कड़ी सुरक्षा के बंदोबस्त के साथ चुनाव कराए जा सके। नक्सली चुनौती से निपटने की दिशा में विशेषज्ञों ने भी चुनाव आयोग की इस व्यवस्था को बेहतर करार दिया है।                                       
लोकसभा चुनाव कराने के लिए चुनाव आयोग ने कुछ इसी तरह की व्यवस्था को पूर्वोत्तर के राज्यों में अंजाम दिया है। विशेषज्ञों का मानना है कि इस व्यवस्था से अति नक्सलवाद क्षेत्र में नक्सलवादियों की चेतावनी की स्थिति में ज्यादा से ज्यादा सुरक्षा बलों की तैनाती करना आसान होगा। 11 लोकसभा सीट वाले राज्य छत्तीसगढ़ में पहले चरण में केवल एक संसदीय सीट बस्तर पर चुनाव कराने का फैसला भी इसी व्यवस्था का अंग है, जिसे अत्यंत नक्सलवादग्रस्त माना गया है। जबकि दूसरे चरण में तीन और तीसरे चरण में इस राज्य में बाकी सात सीटों पर चुनाव होगा। इसी प्रकार पश्चिम बंगाल, बिहार, ओडिशा और महाराष्ट्र के पहले तीन चरणों में उन्हीं सीटों पर चुनाव कराए जा रहे हैं, जहां नक्सलवाद का प्रभाव देखा जा रहा है, जबकि इनके अलावा झारखंड में नकसलवाद ग्रस्त क्षेत्रों में अंतिम चरणों में चुनाव कराने की व्यवस्था की गई है।
क्या मानते हैं विशेषज्ञ
चुनाव आयोग के इस प्रकार की व्यवस्था के बीच चुनाव कराने के निर्णय को सुरक्षा विशेषज्ञ प्रशांत दीक्षित ने राजनीतिक और आम वोटर की सुरक्षा के दृष्टिकोण से बेहतर बताते हुए कहा कि चुनाव आयोग का नक्सली इलाकों में चुनाव कराने का मकसद यही है कि अधिक सतर्कता बरतने के लिए सुरक्षाकर्मी ताजातरीन रहेंगे। वहीं खासकर बस्तर जैसे इलाके में पहले भी घटनाओं के बावजूद शांतिपूर्ण चुनाव कराकर अपनी रणनीति को सफल साबित किया है, जहां इस बार भी ऐसी ही रणठोस रणनीति की दरकार है। छत्तीसगढ़ में तैनात रह चुके केंद्रीय बल के अधिकारी एसके त्यागी का कहना है कि छत्तीसगढ़ जैसे नक्सलवाद ग्रस्त राज्य में नक्सलियों की चुनौती से निपटना आसान नहीं है, लेकिन चुनाव आयोग ने नक्सलवाद पर लोकतंत्र को हावी करने के लिए इसी प्रकार की रणनीति के साथ चुनाव कराने की जरूरत है। हालांकि ऐसे क्षेत्रों में राजनीतिक माहौल को देखते हुए चुनाव आयोग और केंद्र सरकार की जिम्मेदारी भी है कि वह राजनीतिक गतिविधियों और चुनाव प्रक्रिया में सुरक्षा के खतरे को आड़े न आने दे। विशेषज्ञ यह भी मानते हैं कि चुनाव आयोग और केंद्र सरकार नक्सल प्रभावित इलाकों में पहले से ही लोकतंत्र को नक्सलवाद की छाया से दूर रखने के लिए लगातार राज्य सरकार और संबन्धित प्रशासनिक व सुरक्षा अधिकारियों के साथ विचार विमर्श करने के बाद ही रणनीति तय करते रहे हैं।
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तेजी घटा नक्सलवाद का असर
गृह मंत्रालय के दावों पर गौर करें तो पिछले पांच साल के दौरान केंद्र सरकार की नक्सलवाद के खिलाफ अपनाई गई विभिन्न ठोस रणनीतियों के कारण देश के नक्सलवाद प्रभावित 126 जिलों में से 44 जिलों को नक्सल मुक्त क्षेत्र घोषित कर दिया गया है। यानि इन 44 जिलों में नक्सली या तो है ही नहीं या फिर उसकी मौजूदगी न के बराबर है। हालांकि आठ नए जिले नक्सल प्रभावित इलाके यानि रेड कॉरिडोर में शामिल भी पाए गए हैं। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान अत्यंत नक्सलवाद प्रभावित 35 जिलों की संख्या अब घटकर 30 रह रह गई है। मंत्रालय के अनुसार झारखंड के दुमका, पूर्वी सिंहभूम तथा रामगढ़ और बिहार के नवादा और मुज्जफरपुर  जैसे पांच जिले अति नक्सलवाद के असर से मुक्त हुए हैं। गृह मंत्रालय ने फिलहाल 11 राज्यों में नक्सल प्रभावित क्षेत्रों की संख्या 126 से घटकर 90 रह गई है, जबकि 30 जिले अत्यधिक नक्सलवाद प्रभावित जिलों के दायरे में रखे गये हैं। गृह मंत्रालय ने फिलहाल 10 राज्यों में 106 जिलों को नक्सल प्रभावित की श्रेणी में रखा है। ये जिले सुरक्षा संबंधी खर्च (एसआरई ) योजना के तहत आते हैं। 
19Mar-2019

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