रविवार, 24 मार्च 2019

दल बढ़ने से संसद में कम हुए निर्दलीय सांसद


पिछले तीन दशकों में दहाई का आंकड़ा भी नहीं छुआ
हरिभूमि ब्यूरो. नई दिल्ली।
देश में जैसे-जैसे चुनावी समर में सियासी दलों की संख्या बढ़ रही है, वैसे ही संसद में निर्दलीय सांसदों की संख्या कम होती जा रही है। मसलन पिछले तीन दशक में लोकसभा में निर्दलीय सांसदों का आंकड़ा दहाई का अंक तक भी नहीं पहुंच पा रहा है।
सोलहवीं लोकसभा के लिए पिछले आम चुनाव में अपनी किस्मत आजमाने चुनावी मैदान में उतरे निर्दलीय उम्मीदवारों में से केवल तीन सांसद सदन में दाखिल हो सके हैं। पिछले करीब तीन दशकों के दौरान अभी तक हुए सात लोकसभा चुनाव में निर्दलीय सांसदों की संख्या दहाई का अंक पार नहीं कर सकी है। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में 3234 निर्दलीय प्रत्याशियों ने चुनाव लड़ा, लेकिन 99.9 फीसदी को अपनी जमानत जब्द कराने के लिए मजबूर होना पड़ा और केवल तीन निर्दलीय सांसदों को जीत मिली। इनमें केरल की चलकुडी से इन्नोकेंट तथा इडुक्की सीट से अधिवक्ता जॉयस जार्ज के अलावा असम की कोकराझार से नबा कुमार सारनिया शामिल हैं। जबकि पंद्रहवीं लोकसभा में 3831 निर्दलियों में से केवल सात को लोकसभा पहुंचने का मौका मिला। यदि इससे पहले लोकसभा चुनाव की बात करें तो नौवीं लोकसभा में 12 निर्दलीय सांसद थे, जिसके बाद करीब तीन दशक होने वाले हैं लेकिन लोकसभा में निर्दलीयों सांसदों का आंकड़ा दहाई का अंक छूने में नाकाम रहा है।
दूसरी लोकसभा में थे सर्वाधिक निर्दलीय सांसद
लोकसभा के इतिहास के अतीत पर नजर डाली जाए तो देश में वर्ष 1952 में हुए पहले लोकसभा चुनाव में 533 में से 37 निर्दलीय सांसद लोकसभा में दाखिल हुए थे, जिसके बाद वर्ष 1957 में दूसरी लोकसभा के लिए हुए चुनाव में 42 निर्दलीय सांसद निर्वाचित हुए, जो निर्दलीय सांसदों का अभी तक का रिकार्ड है। इसके बाद हुए चुनावों पर गौर करें तो तीसरी लोकसभा में यह संख्या घटकर 20 रह गई, लेकिन 1967 में चौथी लोकसभा में निर्दलीय सांसदों की संख्या एक बार फिर बढ़कर 35 तक जा पहुंची। वर्ष 1971 में लोकसभा में यह संख्या एक ही झटके में घटकर 14 रह गई। इसके बाद 1991 में हुए चुनाव के बाद गठित नौवीं लोकसभा में 12 निर्दलीय सांसद जीतकर आए, लेकिन उसके बाद चुनाव लड़ने वाले निर्दलीयों की संख्या तो बढ़ रही है, लेकिन जीतने वालों की संख्या में तेजी के साथ गिरावट देखी गई है। राजनीतिकारों का मानना है है कि इसका कारण देश के चुनावी समर में कूदने वाले सियासी दलों की संख्या में हो रहे लगातार इजाफे के कारण निर्दलीयों को ज्यादा तरजीह नहीं दी जाती। आज की सियासत में जो निर्दलीय प्रत्याशी किसी तरह लोकसभा में दाखिल हो रहे हैं, उनकी जीत का कारण अपना रसूख और अपने क्षेत्र में छवि का आधार माना जा रहा है।
50 फीसदी से ज्यादा आजमाते हैं किस्मत
देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था में चुनाव चाहे लोकसभा हो या विधानसभा सभी में चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशियों में 50 फीसदी से ज्यादा प्रत्याशियों की संख्या निर्दलीयों की ही देखी गई है। आठवीं लोकसभा के चुनाव में तो चुनाव मैदान में उतरे कुल प्रत्याशियों में 71 प्रतिशत चुनाव में किस्मत आजमाने वाले प्रत्याशी निर्दलीय थे। 
17Mar-2019

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