गडकरी की दो टूक
देश में जब लोकसभा चुनाव के खुमार का पारा आसमान
की तरफ हो, तो लोकतंत्र के
इस महाकुंभ में डुबकी लगाने में नेतागिरी का खुमार चढ़ना लाजिमी है। मसलन भारत जैसे
लोकतांत्रिक देश में सियासत करना कितना आसान है। तभी तो शायद फाल्गुन की इस होली के
रंग भी नेतागिरी के चौतरफा बिखरे सियासी रंगों के सामने फीके नजर आए। देश में सबसे
इस आसान सियासत बरसाती मेंढकों की तरह अपनी संख्या बढाते राजनैतिक दलों ने इसे इतनी
सस्ती सियासत के खांचे में धकेल दिया कि मतदाताओं को लुभाने की सियासत करने और एक—दूसरे दल व उनके नेताओं
पर बेबुनियाद आरोप मंढकर झूठ की बुनियाद तैयार करने में किसी नेता या दल को कोई गुरेज
नहीं रहा। इस आसान सियासत को लेकर केंद्र सरकार में मंत्री नितिन गडकरी की दो टूक टिप्पणी
सियासी गलियारों की सुर्खियों मे है, जिसमें उन्होंने यहां तक कहा कि सच ये है कि जो मेरिट में आता
है वो आईएएस—आईपीएस,जो सेकेंड क्लास पास होता
है, वो चीफ इंजीनियर
बनता है। गडकरी ने यह कहने में भी कोई पर्दा नहीं रखा कि जो 3 बार फेल होता है, वो मिनिस्टर बन जाता है
यानि सियासत में आने के लिए कोई योग्यता और गुणदोष परखने की कोई जरूरत नहीं होती!दरअसल
भाजपा के खिलाफ मौजूदा लोकसभा चुनाव में रणनीति का तानाबाना बुनते कुछ सियासी दलों
ने स्वार्थ की खातिर लोकतंत्र की सीमाएं तक लांघी जा रही हैं। गडकरी की टिप्पणी का
राजनीतिक निहितार्थ तो लोगों ने निकाल लिया लेकिन उसमें जो व्यवहारिक और सामयिक चेतावनी
है उस पर किसी का ध्यान नहीं जा रहा और यही देश में सबसे बड़ी विडंबना है। तभी तो ऐसी
कहावत चरितार्थ है कि खुद को कर बुलंद इतना, कि हर तकदीर से पहले-खुदा बंदे से खुद पूछे..बता
तेरी रजा क्या है..!
गंगा पर नौटंकी...
एक कहावत है कि गंदा है..पर धंधा है!कुछ ऐसा
ही लोकसभा चुनाव में अपनी डूबी हुई नैयाा को पार करने के मकसद से प्रियंका को सियासी
प्रचार में लाने वाली कांग्रेस की रणनीति में देखने को मिल रहा है। लोकसभा चुनाव के
महासंग्राम की में अनिश्चतता की सियासत में जीत सुनिश्चित करने के मकसद से खासकर कांग्रेस
मोदी सरकार की योजनाओं की आलोचना करने में भी पीछे नही है। दरअसल कांग्रेस के चश्में
में मोदी सरकार का काम कहीं नजर नही आता तो, इस चश्में को पहनकर ही प्रियंका ने अपने चुनावी
प्रचार को पीएम मोदी के चुनाव क्षेत्र बनारस से शुरु किया और गंगा तट पर पहुंचकर आरोप
लगाया कि नमामि गंगे मिशन के बाद भी गंगा मैली की मैली यानि गंदी है। प्रियंका के मोदी
सरकार की गंगा सफाई की आलोचना पर सियासी गलियारों में ऐसी चर्चा शुरु होना स्वाभाविक
है कि जब गंगा मैली है तो उसका पानी पीकर प्रियंका ने जनता के सामने नौटंकी क्यों की? पर इसमे भला प्रियंका का
क्या दोष है, उसने तो कांग्रेस
की चुनावी रणनीतियों को आगे बढ़ाकर सियासी जमीन दिलाने की जिम्म्दारी संभाली है, जिसमे वोट की खातिर उसने
मोदी सरकार की जलमार्ग परियोजना के तहत गंगा में चलाई जा रही बोट की सवारी तक कर डाली।
ये ही तो राजनीतिक धंधा है!24Mar-2019
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