शनिवार, 11 नवंबर 2017

इस्पात के इस्तेमाल से रोकी जाएगी जल की बर्बादी!



जल वितरण प्रणालियों को सुरक्षित बनाने में जुटी सरकार
हरिभूमि ब्यूरो. नई दिल्ली।
केंद्र सरकार की देशभर में जल संकट और सुरक्षित पेयजल की चुनौतियों से निपटने के लिए जारी कवायद में जल वितरण प्रणालियों को सुरक्षत बनाने पर जोर दिया जा रहा है, ताकि रिसाव के कारण बर्बाद होने वाले जल के नुकसान में ज्यादा से ज्यादा कमी लाई जा सके।
केंद्रीय जल एवं स्वच्छ पेयजल, आवासीय एवं शहरी विकास तथा इस्पात मंत्रालयों तथा इंडियन स्टेनलेस स्टील डेवलपमेंट एसोसिएशन के संयुक्त रूप से आयोजित एक राष्ट्रीय सम्मेलन का उद्घाटन केंद्रीय इस्पात राज्यमंत्री विष्णुदेव साई ने किया। देश में जल वितरण प्रणालियों में लगभग 40 प्रतिशत पानी के हो रहे नुकसान को दूर करने और इसके समाधान को लेकर विचार विमर्श करने के उद्देश्य से ‘स्टेनलेस स्टील फॉर वाटर सर्विस पाइपलाइंस, ट्रीटमेंट एंड स्टोरेज’ शीर्षक पर आयोजित इस सम्मेलन में विष्णुदेव साई ने कहा कि सुरक्षित पेयजल की व्यवस्था करना पूरे देश के लिए एक बड़ी समस्या बन गया है। उन्होंने कहा कि पेयजल और इस्तेमाल योग्य पानी के अभाव की वजह से स्वच्छता और स्वास्थ्य से संबंधित समस्याएं लंबे समय से बनी हुई हैं। इसका मुख्य कारण उन्होंने जल वितरण प्रणाली के तहत खराब पाइपलाइनों को बताया, जिसके कारण पेयजल में प्रदूषण भी बढ़ रहा है। उन्होंने कहा कि इसके लिए प्लास्टिक वाटर पाइप लाइनों के जरिये भी पानी के लीकेज की समस्या दूर होने के बजाए नुकसान बढ़ा है। इसलिए जल वितरण प्रणालियों में स्टेनलेस स्टील के इस्तेमाल पर विचार किया जा रहा है। उन्होंने उम्मीद जताई कि जल पाइपलाइनों के लिए इस्पात के इस्तेमाल से पानी के रिसाव की समस्या से निपटा जा सकता है। साई ने कहा कि अनेक देशों में स्टेनलेस स्टील का इस्तेमाल जल प्रबंधन के लिए किया जा रहा है, जहां पानी के रिसाव से मुक्त पाइपलाइन, मजबूत, टिकाऊ और रीसाइकल गतिविधियों को सुरक्षित तरीके से किया जा रहा है। साई ने कहा कि वलर्ड बैंक के अनुमानों के अनुसार दुनियाभर में गैर-राजस्व जल की कुल लागत 14 अरब डॉलर सालाना है।
पेयजल संरक्षण में सुधार पर बल
सम्मेलन में इस्पात मंत्रालय में सचिव डॉ. अरुणा शर्मा ने खराब और टूटी-फूटी और क्षतिग्रस्त पाइपलाइनों की वजह से पानी के प्रदूषित होने की समस्या पर चिंता को जाहिर करते हुए कहा कि पानी की गुणवत्ता के नुकसान और इसके दूषित होने की वजह से स्वास्थ्य समस्याएं पैदा होती हैं। पाइपलाइन के लिए मैटेरियल का चयन करते वक्त इन समस्याओं का ध्यान रखे जाने की जरूरत है। सम्मेलन में आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय में सचिव दुर्गा शंकर मिश्रा और भारत सरकार में पेयजल एवं स्वच्छता मंत्रालय के संयुक्त सचिव सत्यब्रत साहू ने भी टोक्यो, सिओल और ताइपेई जैसे शहरों के अंतर्राष्ट्रीय उदाहरणों का जिक्र करते हुए जानकारी दी कि इन देशों ने करीब 20 साल पहले ही स्टेनलेस स्टील पाइपलाइनों को अपनाया और पानी के नुकसान को 27 प्रतिशत से घटकर 2 प्रतिशत पर सीमित करने में सफलता हासिल की, जो भारत में भी संभव है।

इस्पात को प्रोत्साहन देने पर बल
आईएसएसडीए के अध्यक्ष केके पहूजा ने मंत्रालयों को भरोसा दिया कि उनकी संस्था विभिन्न उद्योगों में स्टेनलेस स्टील को सरकार की नीतियों के तहत गुणवत्ता के साथ उत्पादन क्षमता बढ़ाने के लिए प्रयास कर रही है। उन्होंने सरकार की प्रायोजित योजनाओं में इस्पात की मांग को पूरा करने के लिए कहा कि जल और स्टेनलेस स्टील एक-दूसरे के लिए ही बने हैं इसलिए उद्योग जगत स्टेनलेस स्टील की इंजीनियरिंग प्रॉपर्टीज की दक्षता का लाभ उठाने का इच्छुक है। इस्पात उद्योग जल प्रबंधन के लिए आर्थिक और सामाजिक तौर पर पानी के नुकसान को ध्यान में रखकर लागत किफायती समाधान मुहैया कराने को तैयार है।
11छवअ92017

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें