शुक्रवार, 24 नवंबर 2017

पिछड़ा वर्ग आयोग को संवैधानिक दर्जा देने की तैयारी

केंद्र सरकार संसद में फिर पेश करेगी विधेयक
हरिभूमि ब्यूरो
. नई दिल्ली।
संसद के अटके राष्ट्रीय पिछड़ा आयोग को संवैधानिक दर्जा दिलाने वाले विधेयक को लेकर सरकार गंभीर नजर आ रही है। यही कारण है कि सरकार एक बार फिर से इस विधेयक को नए सिरे से लोकसभा में पेश करने की तैयारी कर रही है।
सूत्रों के अनुसार संसद के अगले महीने शुरू होने वाले शीतकालीन सत्र के दौरान राष्ट्रीय पिछड़ा आयोग को संवैधानिक दर्जा दिलाने वाले विधेयक को नए सिरे से पेश करने की तैयारी कर रही है। संसद के मानसून सत्र के दौरान इस संबन्धी विधेयक को लोकसभा ने पारित कर दिया था, लेकिन राज्यसभा में विपक्ष की कुछ प्रावधानों पर की गई आपत्तियों और विरोध के कारण कई संशोधनों के साथ पारित हुआ। इसलिए केंद्र सरकार अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए समानता और सामाजिक न्याय सुनिश्चित करने को प्रतिबद्धता के तहत संसद के शीतकालीन सत्र में इस विधेयक को नए सिरे से लाने की तैयारी कर रही है। इसका कारण है कि पिछले सत्र में संसद से यह विधेयक दो प्रारूपों में पारित हुआ और सरकार इसे आगे नहीं बढ़ा सकी। सरकार अनुसूचित जाति और जनजाति आयोग की तर्ज पर राष्ट्रीय पिछड़ा आयोग को संवैधानिक दर्जा दिलाने के पक्ष में है।
आयोग की शक्तियां बढ़ेगी
अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के शासनकाल के दौरान वर्ष 1993 में गठित राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग में अधिकार काफी सीमित हैं, जिसके प्रावधान जम्मू-कश्मीर को छोड़कर पूरे भारत में लागू है। आयोग को संवैधानिक दर्जा देने के लिए पिछले सत्र के दौरान सरकार यह विधेयक लेकर आई थी, लेकिन इसके पारित होने के बावजूद अटक गई थी। सूत्रों के अनुसार अब इस विधेयक में ऐसे प्रावधान किये जा रहे है, जिसके तहत आयोग के पास पिछड़ी जातियों को केंद्र सरकार की ओबीसी सूची में शामिल करने या बाहर निकालने की ही सिफारिश करने के अधिकार होंगे। वहीं ओबीसी समुदाय की शिकायतों और उनके निपटारों के लिए अनुसूचित जाति आयोग की तर्ज पर समस्याएं सुनकर उनका निपटान कर सकेगा। यह तभी संभव हो सकेगा जब आयोग को संवैधानिक दर्जा मिले। सरकार का मानना है कि संवैधानिक दर्जा मिलने के बाद आयोग को अन्य पिछड़ा वर्ग के हितों की रक्षा के लिये पूर्ण अधिकार प्रदान करने में मदद मिल सकेगी।
24Nov-2017

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