बच्चन परिवार से माफी
देश की राजनीति में चर्चित नेता अमर सिंह पिछले
काफी समय से खामोशी के बाद अचानक अखबारों की सुर्खियां बने। वैसे भी कहते हैं कि इंसान
की जिंदगी में उतार चढ़ाव एक प्रक्रिया है कि कभी सितारा बुलंदी पर तो कभी जमीं पर..। ऐसा ही
देश के जाने माने अभिनेताओं और अभिनेत्रियों से लेकर उद्योगपतियों तक के करीबी माने
जाने वाले सियासी नेता अमर सिंह के साथ भी हुआ, जो कभी समाजवादी
पार्टी के नेता मुलायम सिंह की पार्टी के रणनीकारों में शामिल रहे है, जिनके कारण कई अभिनेता और अभिनेत्री राजनीति के जरिए संसद तक भी पहुंचे हैं।
अमर सिंह की सपा में रणनीतिकार की भूमिका संसद के भीतर ऐसे कई मौको पर देखी गई,
जिसमें उन्होंने परमाणु करार के मुद्दे पर वामदलों के समर्थन वापसी पर
मनमोहन सरकार को सपा के समर्थन से बचाने का काम किया। ऐसी शख्सियत राजनीति में अन्य
सियासीदानों से कहीं विपरीत थी, जिसके कारण वे हमेशा सुर्खियों
में बने रहते थे, लेकिन समाजवादी पार्टी से नाता खत्म होने के
बाद वे राज्यसभा में निर्दलीय सदस्य के रूप में होते हुए भी खबरों से दूर रहे। इसी
सपा से अलग होने के बाद वे अपने सबसे करीबी दोस्त अमिताभ बच्चन के बारे में पिछले दिनों
बुरा भला कहकर दूर रहे। आजकल जब वे स्वास्थ्य खराब होने के कारण जब बिस्तर पर है तो
उन्हें अपने पुराने और बेहद करीबी अभिनेता अमिताभी बच्चन की याद आई तो उन्होंने एक
वीडियो जारी करके बुरा भला कहने पर पश्चतावा करते हुए अमिताभ बच्चन और परिवार से माफी
मांगी तो वे अचालन अखबारों की सुर्खियां बने। जिस प्रकार अमर सिंह ने सपा से दरकिनार
किये जाने के बावजूद मुलायम सिंह या उनके परिवार के खिलाफ एक शब्द भी मुहं से नहीं
निकाला, उसी प्रकार बच्चन परिवार से माफी मांगकर जिस प्रकार का
व्यवहार प्रकट किया, वो ही है उनका अमर प्रेम...!
सियासी भ्रम
देश की सियासत किस दिशा में जा रही है, लोकतंत्र में इसकी चिंता इसलिए हो सकती
है कि दिल्ली विधानसभा के नतीजों के बाद जिस प्रकार सेकुलर आईडिया की जीत बताकर गलतफहमियां
फैलाई जा रही है। दिल्ली समेत इससे पूर्व कुछ राज्यों के चुनाव परिणामों के बाद कांग्रेस
समेत कुछ क्षत्रप दलों के नेताओं की जुबानों से यही भ्रम पैदा करने का प्रयास हो रहा
है कि पीएम मोदी का ग्राफ गिर रहा है। जबकि पिछले साल लोकसभा चुनाव में भी तमाम विपक्षी
दलों ने एकजुट होकर भाजपा के खिलाफ जिस प्रकार का सियासी चक्रव्यूह रचा था और उसके
बावजूद प्रचंड बहुमत के साथ भाजपा और उसके नेतृत्व में राजग ने केंद्र की सत्ता में
वापसी की तो एक बार तो विपक्ष इस कदर बिखरा कि राज्यसभा में सत्तापक्ष्ज्ञ अल्पमत में
होते हुए भी देश की एकता और अखंडता से जुड़े तमाम बिलों को पारित कराने में सफल रहा।
राजनीतिकार भी मान रहे हैं कि देश और राज्य स्तर के चुनाव में अलग-अलग मुद्दे होते हैं जो सियासी वजूद की दिशा तय करते हैं। सोशल मीडिया पर भी
ऐसे भ्रम पर तीखे सवाल नजर आ रहे है जिसमें कहा जा रहा है कि दिल्ली में केजरीवाल भारत
माता के लाडले हो गये तो इसका यह मतलब नहीं है कि की देश में नरेन्द्र मोदी सियासत
के महानायक नहीं रहे। राजनीतिक विशेषज्ञों की माने तो बेशक केजरीवाल हनुमान भक्त हो
जाए, राहुल गांधी शिवभक्त, ममता कालीभक्त
होकर विपक्षी मोर्चा बनाकर हिंदूओं में ब्रांडिग होने का चोला पहन ले, लेकिन लोकसभा चुनाव के लिए मोदी की नीतियों को तोड़ निकालना ऐसे विपक्ष के
लिए आसान नहीं है, जो केंद्र सरकार की हर योजनाओं और नीतियों
में नुक्ताचीनी करके भ्रम फैलाने का प्रयास करते आ रहे हैं। 23Feb-2020
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