सोमवार, 13 जनवरी 2020

राग दरबार: राज को बेहतर मौका

हिंदुत्व की जगह भरेगी?
देश की सियासत में शायद सबकुछ जायज है भले ही विचाराधाराओं से समझौता क्यों न करना पड़े। खासकर पिछले दिनों हिंदुतव की विचाराधारा के लिए पहचानी जाने वाली शिवसेना ने विपरीत विचारधाराओं से गठजोड़ करके सत्ता हासिल कर ली है, तो इसके बाद शिवसेना से करीब डेढ़ दशक पूर्व पारिवारिक विवाद के कारण शिवसेना से अलग हुए उद्धव ठाकरे के चचेरे भाई ने महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के रूप में अपनी अलग सियासत शुरू कर दी थी। भाजपा से अलग होकर शिवसेना प्रमुख कांग्रेस-एनसीपी के साथ मिलकर मुख्यमंत्री बन चुके हैं, तो महाराष्ट्र की राजनीति में बदलाव की बयार शुरू होती दिख रही है, जिसमें आजकल महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना प्रमुख राज ठाकरे की भाजपा नेताओं खासकर देवेंद्र फड़नवीस के साथ नजदीकी बढ़ाने की चहलकदमी नजर आ रही है। राजनीतिकारों की माने तो पिछले 15 सालों के दौरान एमएनएस की सियासत सिरे नहीं चढ़ी और न ही वह अलग राजनीति में कुछ हासिल कर पाए, तो लाजिमी है कि महाराष्ट्र की राजनीति में वह भाजपा के साथ मिलकर शिवसेना के अलग होने से हिंदुत्व का हुआ खाली स्थान भरने में कोई परहेज नहीं करेंगे? सियासी गलियारों में यहां तक चर्चा है कि भाजपा के भगवाकरण में रमकर वह अपनी पार्टी के लिए ज्यादा संभावनाएं तलाश रहे हैं। हालांकि जब उन्होंने अपनी एमएनएस पार्टी बनाई थी तो तभी से उनका मराठी बनाम बाहरी मुद्दा रहा है, लेकिन इस मुद्दे से उनकी सियासत का रास्ता आगे नहीं बढ़ा। यही कारण है कि पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस से मुलाकात के दौरान हुई उनकी एकसाथ हाने पर चर्चा पटरी पर है और राज ठाकरे के लिए इससे बेहतर हो भी नहीं सकता कोई मौका..!
मुफ्तखोरी की बाजीगिरी
राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली विधानसभा के चुनाव का ऐलान होते ही भाजपा व कांग्रेस भी वापसी करने की रणीनीतियों का तानाबाना बुनने में जुट गई है, लेकिन पिछले छह माह से चुनाव की तैयारी में जुटी सत्ताधारी आम आदमी पार्टी ने जिस प्रकार ताबड़तोड़ फैसले लेकर दिल्ली की जनता के सामने लोकलुभावन फैसले लेकर रेवडी बांटने का काम किया है, उसमें मुख्यमंत्री एवं पार्टी संयोजक अरविंद केजरीवाल ने मुफ्तखोरी की बाजीगिरी का सहारा लिया, जो भाजपा व कांग्रेस के सामने बड़ी चुनौती मानी जा रही है। सियासी गलियारों में हो रही चर्चा की बात करें या फिर भाजपा या कांग्रेस के उन आरोपों की बात करें जिसमें केजरीवाल सरकार पर साढ़े चार साल तक कुछ काम न करने का अरोप शामिल है और आखिरी पांच-छह माह में दिल्लीवासियों को मुफ्तखोरी की आदत डाली जा रही है। मसलन लोगों के घरों में बिजली व पानी की पहुंच बिल्कुल फ्री हो रही है, तो वहीं डीटीसी बसों में सफर कर रही महिलाएं आप के केजरीवाल का ही गुणगान करेंगी। ऐसे में केजरीवाल की इस राजनीतिक चाल के सामने भाजपा और कांग्रेस को अपनी रणनिति तैयार करने में मुश्किलें आना तो स्वाभाविक होगा। हालांकि भाजपा के लिए केंद्र सरकार की अनियमित कालोनियों के नियमतिकरण और अन्य केंद्रीय योजनाओं को आम घरो में पहुंचे लाभों जैसी उपलब्धियों का सहारा है, लेकिन कांग्रेस के पास फिलहाल न तो कुछ खोने को है और न ही पाने को। दिल्ली चुनाव के लिए सभी सियासी दलों ने अपने चुनावी घोषणापत्रों में बड़े-बड़े वादे करके मुफ्त जैसी लगने वाली सौगातों को शामिल करने की तैयारी में है, लेकिन चुनावी ऊंट किस करवट बैठेगा यह तो चुनावी नतीजे ही बताएंगे कि किसकी बाजीगिरी कहां ठहरी!        
12Jan-2020                 

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