मंगलवार, 28 जनवरी 2020

असहमति एक लोकतांत्रिक अभिव्यक्ति है, पर निश्चित मानदंड हो: बिरला

राष्ट्र के आदर्शों,आशाओं और विश्वास का अभिरक्षक होता है जनप्रतिनिधि
हरिभूमि ब्यूरो. नई दिल्ली।
रतीय लोकतंत्र में असहमति एक लोकतांत्रिक अभिव्यक्ति है, लेकिन इसे निश्चित मानदंडों के भीतर रहते हुए अभिव्यक्त किया जाना चाहिए और संसदीय वाद विवाद निर्धारित नियमों के आधीन होना चाहिए।  
लोकसभा सचिवालय के अनुसार गुरुवार को लखनऊ में उत्तर प्रदेश विधानसभा में शुरू हुए राष्ट्रमंडल संसदीय संघ भारत क्षेत्र का सातवां सम्मेलन का उद्घाटन करते हुए लोकसभा अध्यक्ष बिरला ने यह बात कही है। उन्होंने कहा कि पिछले सात दशकों में सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक क्षेत्र में भारतीय संसद की उपलब्धियां महत्वपूर्ण रही है, जहां निर्वाचन प्रक्रिया में लोगों की बढती भागीदारी एक सशक्त प्रमाण है कि लोगों की लोकतंत्र के प्रति आस्था और विश्वास बढ़ा है और जितना लोकतंत्र के प्रति लोगों का विश्वास बढ़ा है, उतनी ही जनप्रतिनिधियों की जिम्मेदारी भी बढ़ी है। बिरला ने कहा कि प्रत्येक सांसद और विधायक राष्ट्र के आदर्शों, आशाओं और विश्वास का अभिरक्षक है  और गरीब तबकों की आवाज़ उठाने में उनकी अहम भूमिका होती है। उन्होंने कहा कि संसदीय वाद-विवाद में जीवंतता और सक्रियता का संचार होता है और इसीलिए ज्ञानपूर्ण वाद-विवाद के लिए बोलने की स्वतंत्रता आवश्यकता है।  यह विचार व्यक्त करते हुए कि असहमति एक लोकतांत्रिक अभिव्यक्ति है,उन्होंने कहा कि  इसे निश्चित मानदंडों के भीतर रहते हुए अभिव्यक्त किया जाना चाहिए और संसदीय वाद विवाद निर्धारित नियमों के आधीन होना चाहिए। इसी के साथ उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि किसी लोकतंत्र में निर्वाचित प्रतिनिधि सरकार और जनता के बीच सेतु का काम करता है, क्योंकि जनप्रतिनिधि निरंतर जनता के साथ अंतर-संवाद करता रहता है। इसलिए विधायकों का यह कर्त्तव्य बनता है कि किसी भी नीति के निर्माण के समय उनका पक्ष मजबूती से सदन में  रखे और आम नागरिकों के सरोकारों के अनुरूप सरकार की नीतियों को प्रभावित करे।  
इस सम्मेलन के उद्घाटन समारोह में मध्यप्रदेश के राज्यपाल लालजी टंडन ने कहा कि उत्तर प्रदेश विधान सभा कई ऐतिहासिक चर्चाओं की गवाह रही है और यहाँ से उभरे कई सम्मानित सांसदों ने महत्वपूर्ण संवैधानिक पदों को ग्रहण किया है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि भारत ने हमेशा राष्ट्रमंडल के लोकतांत्रिक मूल्यों आदर्शों और सिद्धांतों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता जताई है क्योंकि भारतीय लोकतंत्र की मूल भावना भी राष्ट्रमंडल संसदीय संघ की भावना के अनुरूप है  जिसमें देश की एकता और अखण्डता, स्वतंत्रता, पंथनिरपेक्षता, भाईचारा, समानता और न्याय समाहित है। उन्होंने कहा कि भारत पूरे राष्ट्रमंडल में लोकतंत्र और विकास का समर्थन करने और उसे बनाये रखने के लिए राष्ट्रमंडल संसदीय संघ के सभी प्रयासों की सराहना करता है। सम्मेलन में उत्तर प्रदेश विधानसभा के अध्यक्ष हृदय नारायण दीक्षित, विधान परिषद के सभापति रमेश यादव, उत्तर प्रदेश विधान सभा में नेता प्रतिपक्ष राम गोविन्द चौधरी, उत्तर प्रदेश विधान परिषद के सभापति रमेश यादव ने भी अपने विचार प्रकट किये।
17Jan-2020


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