विधानसभा निलंबित: सरकार बनाने का विकल्प खुला
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
उत्तराखंड
में पिछले सप्ताह से जारी सियासी घमासान के कारण पल पल बदल रहे सियासी
समीकरणों के बीच रविवार को राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया गया है,
वहीं उत्तराखंड विधानसभा को भंग नहीं, बल्कि निलंबित किया गया है। मसलन
मसलन यदि कोई पार्टी सरकार बनाने के लिए बहुमत जुटाती है तो राज्यपाल राज्य
में दोबारा सरकार बनाने के प्रस्ताव पर विचार कर सकते हैं।
उत्तराखंड
में पिछले सप्ताह से जारी सियासी घमासान खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है,
जिसमें रविवार को उस समय नया मोड़ आ गया, जब केंद्र सरकार की राष्ट्रपति
शासन के लिए की गई सिफारिश को राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने संविधान के
अनुच्छेद 356 के तहत हस्ताक्षर करके मंजूर कर लिया। वहीं उत्तराखंड
विधानसभा को भंग करने के बजाए निलंबित कर दिया है। दरअसल उत्तराखंड में
राजनीतिक संकट के बीच ही विधानसभा स्पीकर द्वारा कांग्रेस के नौ बागी
विधायकों को अयोग्य करार देने के बाद केंद्र सरकार ने शनिवार देर रात
कैबिनेट की बैठक बुलाकर राज्य में राष्ट्रपति शासन के प्रस्ताव पारित कर
उसे मंजूरी देकर राष्ट्रपति को भेज दिया था, जिसे रविवार को राष्ट्रपति ने
मंजूर कर लिया, लेकिन राष्ट्रपति ने विधानसभा भंग नहीं की, लेकिन निलंबित
कर दिया है। जबकि सोमवार विधानसभा में कांग्रेस के मुख्यमंत्री हरीश रावत
के विश्वास मत परीक्षण करना था, कि उससे पहले ही राज्य में राष्ट्रपति शासन
लागू करने का फैसला सामने आ गया।
राज्यपाल के पाले में गेंद
उत्तराखंड
में राष्ट्रपति शासन लागू होने के बाद बने संवैधानिक हालातों पर आगे का
फैसला अब राज्यपाल केके पॉल को करना है। ऐसे मौजूदा हालात में राज्य में
तीन विकल्पों की संभावनाएं नजर आ रही हैं, जिन्हें राज्यपाल अपने संवैधानिक
अधिकारों का इस्तेमाल करके अमलीजामा पहना सकते हैं।
पहली संभावना-चूंकि
विधानसभा निलंबित की गई है, इसलिए राज्यपाल केके पॉल दूसरी बड़ी पार्टी
यानी भाजपा को बहुमत साबित करने के लिए सरकार बनाने का न्यौता देकर मौका दे
सकते हैं।
दूसरी संभावना-विधानसभा को भंग करके अगले चुनाव का रास्ता भी साफ किया जा सकता है।
तीसरी संभावना-उत्तराखंड
विधानसभा का कार्यकाल पूरा होने तक यानी अगले साल भर तक उत्तराखंड में
राष्ट्रपति शासन रखा जाए और उसके बाद अगले चुनाव पर फैसला लिया जाए।
बागियों पर फैसले से बिगड़ा गणित
उत्तराखंड
विधानसभा अध्यक्ष गोविंद सिंह कुंजवाल ने कांग्रेस के नौ बागी विधायकों को
दल-बदल विरोधी कानून के तहत अयोग्य करार घोषित कर दिया। कांग्रेस के इन नौ
विधायकों को अयोग्य ठहराने के फैसले से 70 सदस्यीय विधानसभा में सदस्यों
की प्रभावी संख्या 61 रह जाती है। ऐसे में सत्तापक्ष यानि हरीश रावत के पास
विधानसभाध्यक्ष समेत 27 कांग्रेस विधायक होंगे, जबकि भाजपा के पास में भी
27 विधायक हैं, ऐसे में भाजपा या कांग्रेस को दो-दो बसपा और निर्दलीय तथा
उक्रांद के एक विधायक का समर्थन मिलता है तो उनकी संख्या 32 तक पहुंच सकती
है। भाजपा और कांग्रेस दोनों ही इन पांचों विधायकों के समर्थन का दावा कर
रहे हैं,लेकिन इसके लिए राज्यपाल के समक्ष सूची पेश करके परेड कराने की
प्रक्रिया ही तय कर सकेगी कि किसके पास बहुमत है या नहीं।
सुप्रीम कोर्ट जा सकते हैं बागी विधायक
उत्तराखंड
में विधानसभा स्पीकर के बागी हुए कांग्रेस के नौ विधायकों को अयोग्य करार
दिये जाने पर भले ही उनके वकील ने रविवार को स्पीकर के समझ अपना पक्ष रखा
हो, लेकिन इस फैसले पर बागी विधायकों ने कहा कि वे अपने निलंबन के खिलाफ
सु्प्रीम कोर्ट में याचिका दायर करेंगे। विधायकों का कहना है कि उन्होंने
अपनी पार्टी के खिलाफ कभी कोई काम नहीं किया है। वे सिर्फ मुख्यमंत्री हरीश
रावत का विरोध कर रहे हैं।