पुनर्वास
के लिए प्रोत्साहन योजना से आई कमी
हरिभूमि ब्यूरो. नई दिल्ली।
केंद्र
सरकार ने दावा किया है कि मोदी सरकार देश में श्रमिकों के हितों में कानूनों को
समाहित करके बेहतर प्रावधान के साथ योजनाएं बना रही है। वहीं सरकार देश में बंधुआ
मजदूरी उन्मूलन की प्रतिबद्धता के साथ शुरू की गई पुनर्वास और प्रोत्साहन योजनाओं
के तहत बंधुआ मजदूरी के मामलों में कमी करने में सफल हुई है।
यह
बात शुक्रवार को यहां नई दिल्ली में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग द्वारा आयोजित नेशनल सेमिनार ऑन
एलिमिनेशन ऑफ बांडेड लेबर में श्रम एवं रोजगार राज्यमंत्री संतोष गंगवार ने कही है। गंगवार ने
इस समारोह में बंधुआ मजदूरी के उन्मूलन के विषय पर चर्चा के के
दौरान कहा कि देश में जब सती प्रथा जैसी कुप्रथा
समाप्त हो सकती है तो बंधुआ मजदूरी का उन्मूलन क्यों नहीं? उन्होंने
कहा कि केंद्र सरकार द्वारा कठोर कानूनों के माध्यम और जागरुक जनता के सहयोग के साथ सशक्त
न्याय व्यवस्था के गठजोड़ की मजबूती और सकारात्मक सोच के साथ बंधुआ मजदूरी की कुप्रथा को भी जड़ से समाप्त करने के लिए कटिबद्ध
है। उन्होंने कहा कि मोदी सरकार ने इस दिशा में ठोस कदम उठाते हुए बंधुआ
मजदूरों के सर्वेक्षण करवाने के लिए हर राज्य को 2 लाख से बढ़ाकर अब 4.50 लाख रुपये प्रति जिला दिये
जाते हैं। मूल्यांकन
अध्ययन के लिए एक लाख रुपये प्रति
जिला तथा जागरुकता अभियान के लिए भी प्रत्येक राज्य को 10 लाख रुपये प्रतिवर्ष दिया जाता है। जहां तक
पुनर्वास किये गये व्यक्तियों के कौशल का सवाल है,
इसके लिए प्रधानमंत्री
कौशल विकास योजना के अंतर्गत राज्यों को इन लोगों को वांछित कौशल प्रशिक्षण प्रदान करने के लिये आवश्यक
निर्देश दिये गये हैं। एक पायलट प्रोजेक्ट के लिए बिहार के 5 जिले इस काम के लिए चिन्हित भी किये गये जिनके
परिणाम ठीक आ रहे हैं।
संशोधन के बाद बेहतर नतीजे
गंगवार ने कहा कि इस दिशा में केंद्र की सरकार पहले से एक
केंद्रीय प्रोत्साहन स्कीम चला रही थी, जिसमें मुक्त कराये जाने वाले प्रत्येक बंधुआ मजदूर के पुनर्वास के लिए 20 हजार रुपये दिये जाते थे, जिनमें केंद्र व
राज्य सरकार का 50-50 फीसदी हिस्सा वहन किया जाता था, लेकिन मोदी सरकार ने वर्ष
2016 में इस स्कीम में शतप्रतिशत खर्च केंद्र सरकार द्वारा वहन करने का प्रावधान
लागू किया। उन्होंने मोदी सरकार की बंधुआ मजदूर उन्मूलन पर गंभीरता से विचार करते
हुए जहां पुरुष व्यस्क के मामले में एक लाख रुपये के प्रावधान के अलावा विशेष
श्रेणियों में अनाथ और भीख मांगने वालों के मामले
में 2 लाख रुपये तक का प्रावधान किया
है। वहीं वैश्यालयों व प्लेसमेंट एजेंसियों से विशेष परिस्थितयों में
मुक्त कराए गये महिलाओं व बच्चों के मामलों में यह
आर्थिक सहायता की राशि तीन लाख रुपये तक देने की योजना बनाई। उन्होंने कहा कि मोदी
सरकार की बंधुआ मजदूरी प्रथा समाप्त करने की दिशा
में बनाई गई संशोधित स्कीम ‘बंधुआ मजदूरों की पुनर्वास संबंधी
केन्द्रीय योजना-2016’ के बाद देश में बंधुआ मजदूरी
के मामलों में कमी आई है। एक
रिपोर्ट का हवाला देते हुए केंद्रीय मंत्री गंगवार ने कहा कि ऐसे मामलो के दर्ज
करने के मामले बढ़े, जिसमें 2016 में करीब 2600 मामले दर्ज हुए तो 2017-18 में वह बढ़कर 6,413 मामले तक पहुंचे यानि अधिक संख्या में बंधुआ
मजदूरों को मुक्त कराया गया। जबकि वर्ष 2018-19 में करीब ऐसे ढाई हजार
मामले मंत्रालय के संज्ञान में आए हैं।
09Nov-2019
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