सोमवार, 25 नवंबर 2019

राग दरबार:

सियासत की माया                             
भारतीय राजनीति में एक-दूसरे दलों में कब दोस्ती की डोर बंध जाए और कब दुश्मनी की दीवार खींच जाए इसके कोई भी मायने नहीं हैं, लेकिन बसपा सुप्रीमो की ‘चित्त भी अपनी और पट भी अपनी’ किसी चाणक्य नीति से कम नहीं है। लोकसभा चुनाव में अपने चिरप्रतिद्वंद्वी सपा से गठबंधन करके जिस तरह से दलित-मुस्लिम गठजोड़ के साथ अपने इंजीनिरिंग फार्मूले में फायदे में रही और फिर इस फायदे का नुकसान करार देकर इसका दोष गठबंधन करके पछताते नजर आए सपा प्रमुख अखिलेश यादव के सिर फोड़ दिया। लिहाजा हाल ही में उप चुनाव में गठबंधन बरकरार रखने के कश्मेवादे करने के बावजूद दोनों दलों के बीच दीवार खींच गई और 11 में से सपा तीन सीटें जीतने में सफल रही, जिसे सपा अपनी सियासत को आगे बढ़ाने की दिशा में बड़ा सबक मान रही है। जबकि बसपा का खाता तक नहीं खुल सका तो भला मायावती के तेवरे सातवें आसमान पर होना लाजिमी था। शायद यही कारण रहा होगा कि संसद के पिछले सत्र में तीन तलाक और धारा 370 पर सरकार का समर्थन करते हुए लोकसभा में मुस्लिम सांसद दानिश अली को संसदीय दल के नेता का पद छीन कर फिर से उसकी वापसी कर मुस्लिम कार्ड खेलने की रणनीति को आगे बढ़ा दिया। सियासी गलियारों में मुस्लिमों को ज्यादा अहमियत देने का ऐलान करके बसपा सुप्रीमों मायावती की इस सियासत को यूपी में आगामी यूपी विधानसभा चुनाव की तैयारियों के रूप में देखा जा रहा है और यही  है माया की सियासत!   
अनारकली बनाम कांग्रेस
देश में अपने सियासी जनाधार के कमजोर होने के बावजूद कांग्रेस में सोचने का मतलब शायद सोनिया गांधी-अहमद पटेल और राहुल गांधी की  सोच की डोर बंधी है, जिनके सोचने का भगवान मालिक है। मसलन अपने निजी एजेंडे, निजी आग्रह-पूर्वाग्रह में बंधे होने के कारण इन तीनों अपने को बदलेंगे नहीं और कांग्रेस चुनौती बनेगी नहीं। सियासी गलियारों में ऐसी चर्चाओं का दौर तेजी से नजर आ रहा है कि सोनिया गांधी पहले दिन से मन ही मन राहुल गांधी को राजनैतिक विरासत सुपुर्द करने के विचार में बंधी है, तो राहुल गांधी अपनी फितरत में अराजनीति का मिजाज पाले हैं, जिनकी यह अरिपक्व फितरत सोशल मीडिया पर एक मजाक के तौर पर सुर्खियां बनती रही है। दरअससल राहुल गांधी के चुनावी अभियान में भाजपा या मोदी सरकार के खिलाफ आरोपों और आलोचनाओं वाले भाषणों पर कभी यकीन ही नहीं किया। कांग्रेस के लिए यह सबसे बड़ी दिक्कत है कि सोनिया-राहुल-अहमद पटेल जैसे है वैसे चलाएं रखेंगे तो कांग्रेस के प्रादेशिक नेता भी अपनी लाचारी पर ऐसे ही आंसू बहाते रहेंगे और कांग्रेस सियासत में फिर किसी दल को चुनौती देने के बजाए ऐसे ही मजाक के बीच कांग्रेस की स्थिति अनारकली वाली बनती रहेगी, क्योंकि भाजपा के चाणक्य के रूप में पहचाने जा रहे अमित शाह उसे यानि कांग्रेस को जीने नहीं देंगे और जनता उसे मरने नहीं देगी, जिसका नतीजा कांग्रेसरूपी यह अनारकली खुद ही रोती रहेगी। 
17Nov-2019

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें