रविवार, 20 अक्तूबर 2019

राग दरबार: वीर सावरकर के सम्मान पर सियासत




इतिहास पर सियासत
देश की आजादी के इतिहास के पन्नों से नेहरू, राजीव, गोडसे और जिन्ना के बाद अब विनायक दामोदर सावरकर का नाम भी निकलकर बाहर आया है, जिसे देश की सत्ताधारी दल ने एक राष्ट्रनायक के रूप में पेश करते हुए उनके लिए देश के सर्वोच्च सम्मानभारत रत्नका वादा किया है।
इतिहास के खुले इस नाम के पन्ने को लेकर ऐसी सियासत गरमा गई कि वही कांग्रेस वीर सावरकर को स्वतंत्रता सेनानी मानने को तैयार नहीं और उसका विरोध करने के लिए मुखर होती नजर आ रही है, जबकि हिंदू महासभा के संस्थापक विनायक दामोदर सावरकर को देश की आजादी में योगदान के लिए कांग्रेस की ही पूर्व प्रधानमंत्री स्व. इंदिरा गांधी ने उनके लिए डाक टिकट भी जारी किया था। इसके बावजूद जब मोदी सरकार स्वतंत्रता सेनानी वीर सावरकर को भारत रत्न देने की बात कर रही है तो कांग्रेस सावरकर को महात्मा गांधी की हत्या का दोषी करार देते हुए बवाल  कर रही है, जबकि कांग्रेस के इस विरोधी स्वर पर यह भी सवाल खड़े हो रहे हैं कि भारत रत्न से नवाजे गये राजीव गांधी का देश के लिए क्या विशेष योगदान था? इस मुद्दे पर गरमाई राजनीति पर विशेषज्ञ मान रहे हैं कि कांग्रेस भी जानती है कि यदि वीर सावरकर नहीं होते तो आज 1857 का संग्राम आजाद भारत के इतिहास में दर्ज नहीं हो पाता। इस कांग्रेस की सियासत पर यहां तक टिप्पणियां हो रही है कि सावरकर के योगदान को वह जानती तो है, लेकिन मानती नहीं है। इस मुद्दे पर गरमाई सियासत के बीच सोशल मीडिया पर पोस्ट किये गये उस पत्र की प्रतियां भी सुर्खियां बनी है, जिसे वीर सावरकर की देश के लिए योगदान हेतु प्रशंसा करते हुए इंदिरा गांधी ने लिखा था। इसलिए महापुरुषों को लेकर कांग्रेस के इस दोहरे चरित्र की सियासत समझ से परे है, जिसमें सवाल उठ रहे हैं कि सावरकर के सम्मान में टाक टिकट जारी करने वाली इंदिरा कांग्रेस सही थी या फिर सोनिया कांग्रेस?
कांग्रेस नेतृत्व का टोटा
लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद कांग्रेस का सियासी ग्राफ जिस प्रकार से गिरता नजर आया उसमें वह संगठनात्मक रूप से भी आगे बढ़ने का साहस नहीं जुटा पा रही है। मसलन चुनाव के तुरंत बाद हार की जिम्मेदारी लेते हुए जहां पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी ने इस्तीफा दिया तो कई राज्यों की इकाई के अध्यक्षों और अन्य पदाधिकारियों के साथ सांसदों ने भी इस्तीफे दिये। कई माह बाद तो राष्ट्रीय अध्यक्ष के स्थान पर सोनिया को अंतरिम अध्यक्ष चुना गया गया, लेकिन अभी तक पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष का नाम तय करने में विफल है, जबकि कई राज्यों में भी प्रदेशाध्यक्षों की नियुक्ति होनी है, लेकिन कदावर नेताओं के इस्तीफो के बाद कांग्रेस में ऐसे नेताओं का टोटा बना हुआ है जिनकी अध्यक्ष के रूप में नियुक्तियां की जा सके। दरअसल यूपी व हरियाणा में नेतृत्व परिवर्तन करना कांग्रेस को भारी पड़ा, तो इस अनुभव के कारण दिल्ली प्रदेशाध्यक्ष दिवंगत शीला दीक्षित के स्थान पर कोई निर्विरोध नाम सामने नहीं आ सका। हालांकि कांग्रेस दो राज्यों के चुनाव को इस देरी का कारण बता रही है, लेकिन जानकार यह मान रहे हैं कि कांग्रेस को अभी कई राज्यों के प्रभारी महासचिवों को भी बदलना है लेकिन कांग्रेस में जारी इस्तीफो के सिलसिले के कारण कांग्रेस को राज्यों के प्रभारियों व अध्यक्षों के लिए कोई ऐसा कदावर नेता का नाम सामने नहीं दिख रहा है जो कांग्रेस संगठन को मजबूत करने में सक्षम हो? राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि कदावर नेताओं के कांग्रेस का दामन छोड़ने के कारण आज कांग्रेस कांग्रेस नेतृत्व के टोटे से जूझ रही है? तो विभिन्न पदों की नियुक्तियां अटकना स्वाभाविक है!
ऑपरेशन राज्यसभा
मोदी-2 सरकार के पहले संसद सत्र के दौरान जिस प्रकार से दोनों सदनों में कई ऐसे असंभव नजर आने  वाले महत्वपूर्ण विधेयकों को पारित कराया है उसमें विपक्ष इतना बेबस रहा कि उसकी बेबसी कम होने का नाम नहीं ले रही है। प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस समेत कई विपक्षी दलों के अनेक सांसदों ने जम्मू-कश्मीर से धारा 370 और तीन तलाक बिलों पर समर्थन देकर सरकार की राह आसान की, भले ही उन्हें अपने दलों के दामन को छोड़ना पड़ा। जबकि राज्यसभा में सत्तापक्ष अल्पमत में रही। खासकर अनुच्देद 370 के मुद्दे पर विपक्षी दलों की फूट के बाद राज्यसभा सांसदों के इस्तीफे देने का सिलसिला जारी है उससे राज्यसभा में भाजपा सबसे बड़ी पार्टी के साथ ताकत में आ गई है। हालांकि इसके बावजूद भाजपा राज्यसभा में बहुमत की बड़ी चिंता को दूर करके अगले संसद सत्र में मोदी सरकार को नागरिकता कानून पास कराने की दरकार है। सियासी गलियारों में चर्चा है कि ऑपरेशन राज्यसभा के तहत भाजपा अभी भी कांग्रेस, सपा, टीडीपी जैसी विपक्षी पार्टियों में सेंध लगा रही है और उनके राज्यसभा सांसदों के इस्तीफे करा रही है या सीधे अपनी पार्टी में शामिल कर रही है। राजनीतिकारों की माने तो अगले संसद सत्र से पहले इस अभियान के तहत आने वाले दिनों में कुछ और विपक्षी राज्यसभा सांसद पार्टी छोड़ कर भाजपा में शामिल होने की तैयारी में हैं? इसमें कर्नाटक से इस्तीफा दे चुके कांग्रेस के सांसद के अलावा पूर्वोत्तर के भी एक सांसद के भी भाजपा में शामिल होने की चर्चाएं हैं। भाजपा के इस अभियान से विपक्षी दलों को यही चिंता सता रही है कि पता नहीं कब उनकी पार्टी का कौन सांसद इस्तीफा देकर भाजपा के पाले में चला जाए, लेकिन बेबस और पस्त होते विपक्षी दलों को कोई राह नजर नहीं आ रही है। (20Oct-2019)
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मझधार में कांग्रेस  


पीएम मोदी के राज में देश बदल रहा है, लेकिन इसके साथ ही देश की राजनीति भी करवट लेती नजर आ रही है, खासकर लोकसभा चुनाव में करारी मात खाने के बाद कांग्रेस के घर में ऐसी आग लगी है कि शायद कांग्रेसियों को नेतृत्व परिवर्तन रास नहीं आ रहा है, तभी तो महाराष्ट्र और हरियाणा के विधानसभा चुनाव से पहले ही महाराष्ट्र, हरियाणा, त्रिपुराझारखंड में दर्जनों कांग्रसियों ने यह आरोप लगाते हुए पार्टी से किनारा कर लिया कि राहुल गांधी के समर्थकों का दरकिनार किया जा रहा है। हाल ही में कांग्रेस प्रमुख सोनिया गांधी द्वारा यूपी कांग्रेस में बड़ा बदलाव करने से खफा ऐसे ही आरोपों से परिपूर्ण पूर्व प्रदेशाध्यक्ष राज बब्बर का दर्द छलक कर बाहर आया। इससे पहले हरियाणा ईकाई के नेतृत्व परिवर्तन से नाराज पूर्व अध्यक्ष ने कांग्रेस के नेताओं पर इसी तरह के आरोप लगाते हुए पार्टी से किनारा कर लिया। मसलन कांग्रेस पार्टी को लगतातार लगते सियासी झटकों का बहाव इतना तेज है कि शायद कांग्रेस पार्टी का अस्तित्व मझधार में जाता नजर आ रहा है। क्योंकि कांग्रेस पार्टी के भीतर नेताओं के आरोप-प्रत्यारोप और नाराजगी दिखाने का दौर थमने का नाम नहीं ले रहा है। महाराष्ट्र व हरियाणा चुनाव के बीच ही कांग्रेस के प्रमुख स्टार प्रचारक के विदेश जाने के बाद तो कांग्रेस नेताओं के आत्मचिंतन करने के लिए बयान सार्वजनिक होने के बाद जिस प्रकार कांग्रेस की चिरप्रतिद्वंद्वी भाजपा की     टिप्पणियां और तंज सामने आए, उसमें भाजपा के एक वरिष्ठ नेता के तंज ‘कांग्रेस के घर में जो आग लगी है, वो उनके ही चश्म-ओ-चिराग ने लगाई’ कसते हुए कांग्रेस की आग में घी डालने जैसी कहावत को चरितार्थ कर दिया। सियासी गलियारों में यहां तक चर्चाए शुरू हो गई कि बेहतर होगा कि पूरी कांग्रेस मिलकर आत्मचिंतन का महायज्ञ कर ले, शायद उसकी नकारात्मक राजनीति सकारात्मक रूप धारण कर ले।
थरुर का गरुर
लोकसभा अध्यक्ष द्वारा संसदीय समितियों का गठन किया जा रहा है, जिसमें विदेश मामलों की समिति में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता शशि थरूर को सदस्य के रूप में शामिल किया गया है, लेकिन इस समिति में सदस्य के तौर पर रहना शशि थरूर को कतई बर्दाश्त नहीं हुआ, लिहाजा उन्होंने लोकसभा अध्यक्ष को संसद की स्थायी समिति का सदस्य बनने से इनकार कर दिया है। दरअसल थरुर इससे पहले विदेश मामलों की स्थायी समिति के अध्यक्ष रह चुके हैं, इसलिए उन्हें इस समिति में सदस्य के रूप में रहना पसंद नहीं है। थरुर को विदेश मामलों की समिति का अध्यक्ष न बनाने पर हाल ही में कांग्रेस के एक नेता ने आरोप लगाया कि मोदी सरकार ने विपक्षी दल के सांसदों को संसदीय समिति का अध्यक्ष बनाने की परंपरा खत्म कर दी है। हालांकि लोकसभा अध्यक्ष ने इसके अलावा शशि थरुर को सूचना एवं प्रौद्योगिकी पर संसद की स्थायी समिति का अध्यक्ष बनाया हुआ है और इसी समिति के अध्यक्ष की जिम्मेदारी का हवाला देते हुए उन्होंने विदेश मामलों की समिति से अपना नाम वापस लेने का अनुरोध किया है। इस विदेश मामलों की स्थायी समिति के सदस्य बनने से इंकार करने पर शशि थरूर के बारे में कुछ सदस्यों ने इस अस्वीकृति को कांग्रेस नेता का गरुर करार देते हुए टिप्पणी करने से भी चूक नहीं की है, कि विपक्षी दलों को समिति में शामिल नहीं किया जाता तो विपक्ष सवाल खड़े करते हैं कि विपक्षी दलों को समितियों में उचित स्थान नहीं दिया जा रहा है। जो विपक्षी नेताओं की नकारात्मक सोच और गरुर से कम नहीं!
पिछले महीने विदेश मामलों की समिति का अध्यक्ष नहीं बनाए जाने पर कांग्रेस नेता ने दावा किया था कि सरकार ने विपक्षी दल के सदस्य को संसदीय समिति का अध्यक्ष बनाने की परंपरा खत्म कर दी है। 
केजरीवाल की चुप्पी
आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल की लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद पीएम मोदी की सरकार को लेकर चुप्पी आजकल चर्चाओं में हैं जो लोकसभा चुनाव से पहले ही पीएम मोदी और भाजपा के खिलाफ हरेक दिन नकारात्मक टिप्पणियां करने में ऐसे विपक्षी दलों के साथ शुमार थे जिन्हें भाजपा व पीएम मोदी के खिलाफ बयानबाजी किये बिना शायद नींद नहीं आती थी। जबकि लोकसभा चुनाव के दौरान अप्रैल और मई में अपने ट्वीटर में कम से कम 20 बार नकारात्मक राजनिति का परिचय देते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नाम ले चुके दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने चुनाव परिणाम के बाद अचानक मोदी-विरोधी ट्वीट करना बंद कर दिया है। यही नहीं केजरीवाल उसकी पार्टी ने मोदी और पाकिस्तान के बीच रिश्ते को लेकर सवाल तक खड़े किये और केजरीवाल ने न सिर्फ मोदी, बल्कि कई बार भाजपा और नई दिल्ली में उसके लोकसभा प्रत्याशियों पर हमले किए। सियासी गलियारों में चर्चा है कि लोकसभा नतीजे देख केजरीवाल ने अपनी रणनीति बदली है ताकि उनकी टिप्पणियां का आगामी दिल्ली विधानसभा चुनाव पर नकारात्मक असर न पड़े और शायद उन्होंने चुप्पी में ही अपना सियासी भला देख लिया?(13Oct-2019)
 


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