गुरुवार, 31 अक्तूबर 2019

कानूनविद् पारासरन को ‘सर्वाधिक प्रतिष्ठित वरिष्ठ नागरिक पुरस्कार’

इंडियन बार' के 'पितामह' की उपयुक्त मान्यता है पुरस्कार: नायडू
हरिभूमि ब्यूरो. नई दिल्ली।
भारत के पूर्व अटॉर्नी जनरल के. पारासरन को देश के सर्वाधिक प्रतिष्ठित वरिष्ठ नागरिक पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। यह पुरस्कार प्रदान करते हुए उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू ने कहा कि यह पुरस्कार इंडियन बार' के 'पितामह' की उपयुक्त मान्यता के रूप में उल्लेखनी माना जाएगा।
नई दिल्ली के इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में रविवार को सामाजिक संस्थाएज केयर इंडिया द्वारा बुजुर्ग दिवस के रुप में आयोजित समारोह के दौरान सबसे प्रतिष्ठित वरिष्ठ नागरिक पुरस्कारके लिए चयनित भारत के कानूनी क्षेत्र के नक्षत्र, विद्वान और पूर्व अटॉर्नी जनरल के. पारासरन को यह पुरस्कार प्रदान करते हुए उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू ने बुजुर्गों के कल्याण के लिए कार्य कर रहे इस संगठन के प्रयास को सराहा। वहीं उन्होंने पुरस्कार विजेता के. पारासरन की सराहना करते हुए कहा कि आज पारासरन का 92 वर्ष की उम्र में भी कानून, शास्त्रों के ज्ञान, नैतिकता और विद्वता के रूप में काफी ऊंचा स्थान है और उनका इंडियन बार के 'पितामह' के रूप में ठीक ही उल्लेख किया गया है। उन्होंने कहा कि यह पुरस्कार कानून और न्याय के क्षेत्र में उनके असाधारण योगदान  के साथ-साथ उनके विशिष्ट व्यक्तित्व की सबसे उचित पहचान के रूप में प्रदान किया गया है। उन्होंने कहा कि आज का यह आयोजन एक गहन आध्यात्मिक कानूनी पेशेवर की अतुल्य सकारात्मक ऊर्जा का समारोह था। उन्होंने धर्म और न्याय दोनों को मिलाने की कोशिश की। नायडू ने पारासरन को कानूनी क्षेत्र में अनुशासन, कड़ी मेहनत, ईमानदारी और नैतिकता के लिए पहचाने जाने का जिक्र करते हुए कहा कि उन्होंने अपने विशिष्ट कैरियर के दौरान उन्होंने गंभीर संवैधानिक मामलों या अंतर्राज्यीय जल विवादों सहित सभी प्रकार के मामलों को समान रूप से कुशलापूर्वक संभाला है। उपराष्ट्रपति ने कहा पारासरन ने कवि कालिदास द्वारा व्यक्त किए गए आदर्श को मूर्त रूप प्रदान किया है। नायडू ने कहा कि वकीलों की वर्तमान पीढ़ी को पारासरन से प्रेरणा लेने और पेशेवर उत्कृष्टता एवं नैतिक गुणों को आत्मसात करने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि भारत एक ऐसी सभ्यता रहा है जिसमें हमें अपने बुजुर्गों के साथ उचित व्यवहार करने पर हमेशा गर्व रहा है। अतीत में बुजुर्गों की आज्ञा के पालन का उल्लेख करते हुए नायडू ने कहा कि वे धार्मिकता, परंपराओं, पारिवारिक सम्मान, संस्कार और ज्ञान के संरक्षक थे। इसलिए हमें एक बार फिर इस अंतर-पीढ़ी लगाव का निर्माण करना चाहिए। इस मौके पर संस्था के अध्यक्ष आर कार्तिकेयन व महासचिव संदीप गोयल ने अतिथियों का आभार जताया।
बुजुर्गो को छोड़ने पर चिंता
नायडू ने अपने बुजुर्ग माता-पिता को छोड़ने वाले बच्चों के मामलों की संख्या में हो रही वृद्धि पर चिंता व्यक्त करते हुए इस प्रवृत्ति को एक सामाजिक बुराई बताया। यह प्रवृत्ति पूरी तरह से अस्वीकार्य है। उन्होंने कहा कि कई बुजुर्ग व्यक्ति उपेक्षा और शारीरिक, मौखिक और भावनात्मक शोषण का सामना कर रहे हैं इसलिए वे बुजुर्गों के इलाज में समाज और विशेषकर युवा लोगों की मानसिकता और दृष्टिकोण में बदलाव लाने का आव्हान करते हैं। यही नहीं उन्होंने बच्चों को बड़ों की देखभाल को अपना कर्तव्य समझने की सीख भी दी। उपराष्ट्रपति ने कहा कि नई शिक्षा नीति में युवा पीढ़ी और राष्ट्र के बेहतर भविष्य को स्वरूप प्रदान करने के लिए भारतीय परंपरा, संस्कृति, विरासत और इतिहास से जुड़े पहलुओं को शामिल किया जाना चाहिए।
21Oct-2019

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें