शनिवार, 4 अगस्त 2018

एनआरसी में कोई भेदभाव नहीं होगा: राजनाथ



गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने राज्यसभा में दिया बयान
हरिभूमि ब्यूरो. नई दिल्ली।
राज्यसभा में केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने असम में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) के मसौदा जारी हाने के मुद्दे पर कहा कि एनआरसी प्रक्रिया में किसी के साथ भेदभाव नहीं हुआ और न ही होगा। इस आश्वासन के साथ उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े इस मुद्दे पर दुष्प्रचार करके भ्रम फैलाने का प्रयास राष्ट्र विरोधी है।
केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने सदन में एनआरसी को लेकर फिर स्प्ष्ट किया है कि यह एक मसौदा है और इसके अंतिम प्रकाशन से पहले सभी लोगों को कानूनी प्रावधानों के अनुरूप दावा करने का पर्याप्त मौका मिलेगा और नहीं किसी के खिलाफ कोई कानूनी कार्रवाही होगी। उन्होंने कहा कि एनआरसी में जिनके नाम नहीं है वे भारतीय नागरिकता के प्रमाण पत्र देकर अपने दावे कर सकते हैं, जिसमें किसी के साथ भेदभाव नहीं किया जाएगा। उन्होंने इस बात पर आश्चर्य जताया कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश की निगरानी में निष्पक्ष, पारदर्शी और वस्तुनिष्ठ प्रक्रिया के तहत तैयार की गई एनआरसी पर सवाल खड़े करना गैर जिम्मेदाराना और दुर्भाग्यपूर्ण है। उन्होंने राष्ट्रीय सुरक्षा का सवाल करते हुए कहा कि एनआरसी के खिलाफ दुष्प्रचार करना राष्ट्रद्रोही की श्रेणी में माना जाना चाहिए। सिंह ने कहा कि भारत तथा असम की सरकारें प्रतिबद्ध हैं कि समयबद्ध तरीके से सभी वास्तविक भारतीय नागरिकों के नाम एनआरसी में शामिल किए जाएं। राजनाथ ने कहा कि एनआरसी उन लोगों तथा उनके वंशजों के नाम शामिल हैं जिनके नाम 24 मार्च 1971 तक की मतदाता सूची या एनआरसी 1951 में दर्ज थे। उन्होंने कहा कि भूमि रिकार्ड, पासपोर्ट, जीवन बीमा पालिसी, सहित 12 दस्तावेजों को मंजूरी प्रदान की गयी है। गौरतलब है कि राज्यसभा में एनआसी मुद्दे पर गत मंगलवार को चर्चा हुई थी, जिसमें कुछ दलों के हंगामे के कारण चर्चा पूरी नहीं हो सकी थी और न ही सरकार का जवाब हो सका था।
असम के सभी दलों का समर्थन
राजनाथ सिंह ने सदन में कहा कि 30 जुलाई को एनआरसी का मसौदा जारी होने से पहले असम के मुख्यमंत्री सोनोवाल की अध्यक्षता में हुई बैठक में इस मसौदे पर राज्य के सभी दलों ने सहमति जताई है। उन्होंने यह भ्रम भी दूर किया है कि एनआरसी से बहार हुए 40 लाख लोग हैं न कि परिवार। उन्होंने एनआरसी से वंचित हुए लोगों को दावे और आपत्ति का विकल्प दिया है, जिसमें मार्च 1971 से पहले के कोई भी प्रमाण पत्र दिखाकर अपना नाम दर्ज करा सकते हैं। राजनाथ सिंह ने कहा कि इस मुद्दे पर राजनीति नहीं होनी चाहिए क्योंकि यह मुद्दा देश की सुरक्षा से जुड़ा हुआ है और इसके लिए 14 अगस्त 1985 को असम में हुए आंदोलनों के बाद कांग्रेस के ही तत्कालीन प्रधानमंत्री ने समझौता किया था, जिसमें एनआरसी तैयार करने का प्रावधान है। इसके लिए पूर्ववर्ती यूपीए सरकार के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने एनआरसी को अपडेट करने की एक बैठक में अनुमति भी दी थी, वहीं एनआरसी की पूरी प्रक्रिया उच्चतम न्यायालय के निर्देशों के अनुसार चलाई जा रही है और न्यायालय इसकी लगातार निगरानी कर रहा है। सिंह ने कहा कि भारत तथा असम की सरकारें प्रतिबद्ध हैं कि समयबद्ध तरीके से सभी वास्तविक भारतीय नागरिकों के नाम एनआरसी में शामिल किए जाएं।
इसलिए बना गतिरोध
उच्च सदन में गत मंगलवार को एनआरसी मुद्दे पर चर्चा के दौरान भाजपा के अध्यक्ष अमित शाह ने यह दावा किया कि पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार ने एनआरसी की प्रक्रिया को पूरा करने की हिम्मत नहीं दिखायी तथा वर्तमान नरेन्द्र मोदी सरकार ने इस मामले में हिम्मत दिखाते हुए इस काम को आगे बढ़ाया। उनकी इस टिप्पणी का कांग्रेस सहित विपक्ष के कई सदस्यों ने विरोध किया और सदन की कार्यवाही बाधित हुई। पिछले दो दिनों से उच्च सदन में इस मुद्दे को लेकर व्यवधान बना हुआ था, जिसके कारण सदन की कार्यवाही भी बाधित हुई।
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हरियाणा में किसानों की एसएपी का बकाया 693 करोड            
कुमारी सैलजा ने राज्यसभा में उठाया किसानों का मुद्दा 
हरिभूमि ब्यूरो. नई दिल्ली।
हरियाणा में केंद्र सरकार द्वारा तय एफआरपी के तहत किसानों का कोई बकाया नहीं है, लेकिन राज्य सरकार द्वारा तय किये जाने वाले एसएपी का अभी 693 करोड़ रुपया बकाया है।
दरअसल राज्यसभा में कांग्रेस सांसद कुमारी सैलजा के एक पूरक सवाल के जवाब में यह जानकारी केंद्रीय उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजिनक वितरण मंत्री राम विलास पासवान दे दी। कुमारी  सैलजा ने सदन में कहा कि हरियाणा में हजारों किसानों का बार-बार गन्ना की बकाया राशि के लिए धरने पर क्यों बैठना पड़ता है। उन्होंने केंद्रीय मंत्री से सवाल किया कि क्या वह यह बताएंगे कि हरियाणा में कितने किसानों का भुगतान और कितनी राशि अभी तक बकाया है? सैलजा ने सरकार से पूछा कि इस वर्ष सिर्फ 1540 करोड़ देंगे तो यह ऊंट के मुहं में जीरा होगा। उन्होंने सरकार से पूछा कि क्या 19 हजार करोड़ रुपये बकाया है खासकर अंबाला और यमुनानगर के किसानों समेत हरियाणा के किसानों के बकाया भुगतान की जानकारी मांगी।   
एफआरपी का नहीं बकाया
हरियाणा के किसानों के बकाया भुगतान की जानकारी देते हुए केंद्रीय मंत्री राम विलास पासवान ने कहा कि किसानों के गन्ने या अन्य फसलों के दाम दो प्रकार से तय किये जाते हैं, एक केंद्र सरकार एफआरपी तय करती है, जबकि दूसरा राज्य सरकारें एसएपी तय करती हैं। पासवान ने कहा कि जहां तक हरियाणा में वर्ष 2017-18 का सवाल है उसमें एफआरपी के तय दामों का बकाया        जीरो है। जबकि राज्य सरकार द्वारा तय की गई एसएपी के तहत हरियाणा में वर्ष 2016-17 का जो बकाया था उसका पूरा भुगतान किया जा चुका है, जबकि वर्ष 2017-18 में तय एसएपी के मुताबिक 693 करोड़ रुपये बकाया है।
उत्पादन बढ़ने पर चीनी का आयात क्यों
उच्च सदन में सपा के राम गोपाल यादव ने प्रश्नकाल के दौरान कहा कि पिछले कुछ वर्षो में देश में चीनी का जो उत्पादन खपत से भी कहीं ज्यादा हुआ है और देश में चीनी सरप्लस है, लेकिन इसके बावजूद सरकार ने चीनी का आयात क्यों किया है? जबकि चीनी मीलों की स्थिति खराब हुई है, जिसके कारण चीनी मिलें किसानों के बकाया 22 हजार करोड़ रुपये का भुगतान नहीं कर पा रही है। उन्होंने पूछा कि इस स्थिति को सुधारने के लिए सरकार क्या कर रही है? केंद्र सरकार की ओर से केंद्रीय मंत्री सीआर चौधरी ने कि यह सही है कि देश में चीनी का उत्पादन बढ़कर 322 लाख टन हो गया है, लेकिन यदि चीनी का आयात न किया जाए तो बाजार में चीनी महंगे दामों पर बिकेगी। 
04Aug-2018

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