मंगलवार, 21 अगस्त 2018

नहीं संभले तो बूंद-बूंद पानी से तरसेंगे हम



देश में लगातार गिर रहा है भूजल का स्तर
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
सरकार सरकार द्वारा देश में जल संरक्षण की दिशा में चलाई जा रही विभिन्न परियोजनाओं के बावजूद भूजल के गिरते स्तर में सुधार नहीं हैं और यदि यही हालत रही तो 2050 तक जल संकट इतना बढ़ जाएगा कि प्रति व्यक्ति जल उपलब्धता बेहद कम हो जाएगी।
भारत जैसे देश में आबादी बढ़ने के कारण प्रति व्यक्ति जल की उपलब्धता लगातार घट रही है। इसका कारण लगातार गिरते  भूजल स्तर और अति जल दोहन प्रमुख कारकों में शामिल हैं। केंद्र सरकार ने जल संकट से निपटने के लिए देशभर में अनेक मेगा योजनाओं को कार्यान्वित कराने के लिए कमर कसी हुई है और जनजागरूकता तथा विभिन्न सामाजिक व रचनात्मक तरीकों से भी जल संचयन और जल संरक्षण के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है। इसके बावजूद जिस दर से गिरते भूजल के अलावा नदियों, पोखरों व तालाबों और अन्य जल स्रोतों में जल सूखता जा रहा है वह सरकार की इन योजनाओं के सामने चिंता का विषय है। केंद्रीय जल संसाधन मंत्री नितिन गडकरी ने संसद के मानसून सत्र के दौरान जो आंकड़े दिये थे वे जल संकट की चिंता में इजाफा करने वाले हैं। सरकार का मानना है कि प्रति व्यक्ति जल उपलब्धता जहां वर्ष 2001 में 1820 घनमीटर और 2011 में घटकर 1545 घनमीटर आंकी गई है उसके मुताबिक 2025 में 1340 और 2050 में 1140 घनमीटर या उससे भी कम रह सकती है।  
क्या कहती है आयोग की रिपोर्ट
राष्ट्रीय एकीकृत जल संसाधन विकास आयोग की रिपोर्ट पर गौर की जाए तो भारत में अरसों से प्राप्त होने वाली प्रतिवर्ष कुल जल उपलब्धता करीब चार हजार बिलियन घनमीटर है, जो वाष्पीकरण के बाद प्राकृतिक तौर पर 1869 बीसीएम होती है। जबकि भूगर्भीय और अन्य कारकों के कारण उपयोग करने योग्य जल प्रति वर्ष 1137 बीसीएम तक ही सीमित है, जिसमें 690 बीसीएम सतही जल और 447 बीसीएम पुनर्भरणीय भूमि जल शामिल है। ऐसे में वर्ष 2010 में 710 बीसीएम के मुकाबले देश में कुल जल आवश्यककता वर्ष 2025 में 843 और 2050 में 1180 बीसीएम आंकी गई है। इसके अलावा पेयजल समेत घरेलू उपयोग के लिए देश की यह जल मांग वर्ष 2025 में 62 बीसीएम और 2050 में 111 बीसीएम तक आंकी गई है। जल संसाधन मंत्रालय के अनुसार राज्यों द्वारा ऑनलाइन एकीकृत प्रबंधन सूचना प्रणाली के जरिए एकत्र आंकड़ों के मुताबिक गत 26 जुलाई 2018 तक देश के 17.26 लाख ग्रामीण आवासों में से 79.48 फीसदी लोगां को प्रतिदिन न्यूनतम 40 लीटर पानी मिलता है। 
नदियों की जलगुणवत्ता चिंताजनक 
केंद्रीय जल आयोग देश में 11 प्रमुख नदी बेसिनों के 429 मुख्य स्थानों पर नदियों की जल गुणवत्ता की निगरानी करने के बाद जो रिपोर्ट देता है वह और भी ज्यादा चिंताजनक है। आयोग की रिपोर्ट में मई 2014 से अगस्त 2017 तक की अवधि के प्रदूषक पदार्थ और विषैली धातु संबन्धी आंकड़ों का विश्लेषण किया गया है। इस रिपोर्ट के अनुसार 414 नदी जल गुणवत्ता में से 136 जल गुणवत्ता क्षेत्रों में लिए गये जल नमूनों में लौह संकेद्रण मानकता से अधिक होने के कारण नदियों का पानी पीने योग्य नहीं है। नमूनों में नदी के जल में कैडियम की मात्रा भी पायी गई है। मसलन देश में ज्यादातर नदियों का पानी पीने योग्य नहीं है और स्नान करने लायक भी नहीं है। 
प्रदूषित हो रहा है नदियों का जल                           
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड जल (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम 1974 के तहत राज्य प्रदूषण बोर्डो एवं प्रदूषण नियंत्रण समितियों के सहयोग से सतही और भूमि जल समेत देश में 3500 स्थानों पर कार्यान्वित हो रहे एक राष्ट्रव्यापी जल गुणवत्ता कार्यक्रम के आकलन पर जारी 2015 की रिपोर्ट पर नजर डाली जाए तो 2008 से 2012 की अवधि के लिए 29 राज्यों में नदियों की जल गुणवत्ता के आकलन में 275 नदियों पर 302 प्रदूषित नदी क्षेत्र चिन्हित किये गये। इस आकलन के अनुसार  संबन्धित नदी क्षेत्रों के किनारे 650 शहरों को प्रदूषणकारी स्रोत के रूप में चिन्हित किया गया था जिनमें 35 महानगर  शामिल हैं।
20Aug-2018

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