सोमवार, 13 अगस्त 2018

राग दरबार: कमबैक के बजाए रसातल में कांग्रेस…


‘उस मोड़ से शुरू करें फिर से ये जिंदगी..’
देश की राजनीति में युवराज के नेतृत्व वाली कांग्रेस की मौजूदा हालत पर सुदर्शन फाकिर की लिखी एक गजल ‘उस मोड़ से शुरू करें फिर से ये जिंदगी..’ सटीक नजर आती है। दरअसल कांग्रेस के नेतृत्व की बागडौर जब युवराज ने संभाली तो पार्टी के कमबैक की बातें हो रही थी, लेकिन संसद और संसद के बाहर कांग्रेस रसातल की तरफ जाती दिख रही है। मसलन कांग्रेस के सामने पार्टी की नई शुरूआत की चुनौती कहीं पहले से भी ज्यादा बढ़ती दिख रही है। हाल में संपन्न हुए संसद के मानसून सत्र में ही पीएम मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के मैनेजमेंट ने जो मास्टर स्ट्रोक मारे हैं, उनके कारण कांग्रेस प्रमुख राहुल गांधी के सामने पार्टी को नई दिशा देने की चुनौती पहले से भी ज्यादा बढ़ गई। राजनीतिकारों की माने तो राज्यसभा में सत्तापक्ष से कहीं ज्यादा मजबूत विपक्ष को उपसभापति में जिस तरह मुहं की खानी पड़ी है, वह कांग्रेस युवराज को निश्चत रूप से यह सोचने को मजबूर करेगी, क्यों कि राज्यसभा से पहले संसद के निचले सदन में अविश्वास प्रस्ताव के दौरान कांग्रेस अध्यक्ष मोदी को झप्पी देने के चक्कर में देश की जनता के सामने मजाक बन चुके हैं और राज्यसभा में उपसभापति के चुनाव में युवराज की अहंकारी नीति के कारण विपक्ष की एकजुटता ऐनवक्त पर बिखरी है। सियासी गलियारों व सोशल मीडिया पर भी कांग्रेस को युवराज की कमजोरी पर दलीले देने वाली टिप्पणियों की भरमार रही। ऐसे में राजनीतक विशेषज्ञों का मानना है कि हर मोड़ पर मोदी या मोदी सरकार की आलोचना ही पार्टी के जनाधार को नहीं बढ़ा सकती, उसके लिए कांग्रेस युवराज को सरकारात्मक रणनीतियों का भी सहारा लेना जरूरी होना चाहिए। राजनीतकारों की सुर्खियों में रही टिप्पणियां साफ हैं कि पहले कांग्रेस के नेतृत्व में विपक्ष का मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव औंधे मुहं गिरना और उसके बाद राज्यसभा में अपना उपसभापति निर्वाचित कराकर सत्ताधारी भाजपा ने संकेत दे दिया है कि उसकी रणनीति के सामने युवराज के नेतृत्व वाली कांग्रेस का टिकना मुश्किल ही नहीं, बल्कि चुनौतीपूर्ण है। ऐसे में खासतौर से कांग्रेस के सामने आगामी लोकसभा चुनाव में भाजपा को रोकने के लिए महागबंधन को समेटने पर भी सवाल खड़े हो गये हैं?
राज्यसभा का बदला हाल
संसद के मानसून सत्र के समापन पर राज्यसभा की बैठक समाप्त होने से भाजपा सांसद सत्यनारायण की पढ़ी गई कविता ‘सभापति जी ने आज पूरा किया है एक साल-इस अवधि में उन्होंने बदल दिया है राज्य सभा का हाल..’ ने सदस्यों को संदेश दिया कि मानूसन सत्र में पिछले कुछ सत्रों के मुकाबले बेहतर कामकाज हुआ और कुछ अपवादों को छोड़कर विपक्ष को भी कई मुद्दों पर सकारात्मक सोच के लिए मजबूर किया। हालांकि इसके लिए खुद सभापति एम. वेंकैया नायडू ने कामकाज और सदन की कार्यवाही सुचारू रूप से चलाने के लिए तमाम दलों के सदस्यों का आभार जताया और सदन में संसदीय गरिमा बनाए रखने के लिए भविष्य में और सुधार की नसीहत दी। दरअसल संसद का मानसून सत्र शुरू होने से पहले विपक्षी दलों की लामबंदी के कारण जो कयास लगाए जा रहे थे, को इस सत्र की कार्यवाही के दौरान उसके उलट सकारात्मक और सार्थक कामकाज निपटाया गया है। जहां तक भाजपा सांसद जटिया की कविता की व्याख्या का सवाल है तो वह भी साबित होती नजर आई। मसलन एक साल के भीतर अपने कार्यकाल के दौरान सभापति नायडू ने उच्च सदन में कई नियम बदले हैं और सदस्यों को संसदीय गरिमा व नियमों के प्रति जागरूक तक करके सदन की कार्यवाही को एक हैडमास्टर की तर्ज पर पटरी पर लाने का प्रयास किया है। सदन में सदस्यों के नोटिस लेने की ऑलाइन व्यवस्था के अलावा 22 भाषाओं के इस्तेमाल को अनुमति देने का अनुसरण तो लोकसभा ने भी किया है।
तृणमूल को भाजपा फोबिया
देश की राजनीति में हालांकि किसी भी दल की दोस्ती व दुश्मनी कोई मायने नहीं रखती, लेकिन मोदी सरकार के कुछ फैसले और सत्तारूढ़ दल भाजपा की रणनीतियों से विपक्षी दलों में बेचैनी है। खासतौर से असम में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्ट्रर का मसौदा लागू होने से पश्चिम बंगाल में सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस के तो जैसे पैरो तले की जमीन ही खिसक गई हो? सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर लागू एनआरसी के जरिए अवैध घुसपैठियों की पहचान करना है, जिनकी संख्या पश्चिम बंगाल में भी कम नहीं है। ऐसे में इस संभावना से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि भविष्य में एनआरसी पश्चिम बंगाल में भी लागू हो जाए। शायद इसी कारण तृणमूल कांग्रेस ने एनआरसी का दोनों सदनों जमकर विरोध किया। राज्यसभा में तो इस मुद्दे पर चर्चा तक पूरी नहीं होने दी और खासकर भाजपा अध्यक्ष अमित शाह को तो इस मुद्दे पर ही नहीं, बल्कि कृषि व किसानों के मुद्दे पर भी नहीं बोलने दिया। हालांकि राजनीतिकार कहते हैं कि तृणमूल कांग्रेस को इसी बात का भय सता रहा है कि यदि एनआरसी को पश्चिम बंगाल में लागू किया गया तो उसके वोटबैंक पर सेंध होगी। वहीं दूसरी ओर भाजपा अध्यक्ष अमित शाह अपने राजनीतिक अभियान पर पश्चिम बंगाल में हैं, जो तृणमूल कांग्रेस के सियासी फोबिया में इजाफे का कारण बन सकते हैं। सियासी गलियारों में चर्चा हो रही है कि शाह पहले ही तृणमूल को चेतावनी दे चुके हैं कि सदन में भले ही न बोलने दिया गया हो, लेकिन वह पश्चिम बंगाल में उन्हें बोलने से रोककर दिखाएं। यही सियासी गम तृणमूल के फोबिया का कारण बना हुआ है।
और अंत में..
लोकसभा चुनाव में भाजपा के खिलाफ विपक्षी दलों की एकजुटता के धागा कमजोर हो रहा है, जिसमें सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव का यह बयान अहम माना जा रहा है कि सीटों के बंटवारे को लेकर कांग्रेस ज्यादा की उम्मीद न करे। बकौल अखिलेश यूपी में फिलहाल सपा, बसपा और रालोद एक साथ हैं। इसलिए बाकी बचने वाली सीटें ही कांग्रेस को दी जा सकेंगी। महागठबंधन को लेकर साफ संकेत हैं कि कांग्रेस की यूपी में दाल गलने वाली नहीं लगती। यही नहीं महागठबंधन के लिए अन्य दल भी कांग्रेस को नजरअंदाज करने में बयान दे रहे हैं।
-हरिभूमि ब्यूरो
12Aug-2018

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें