रविवार, 13 नवंबर 2016

राग दरबार: कालेधन की सर्जिकल स्ट्राइक

अवैध संपत्ति की सर्जिकल स्ट्राइक
देश की अर्थव्यवस्था सुधारने की दिशा में अब कालेधन के खिलाफ मोदी सरकार ने ऐसी सर्जिकल स्ट्राइक कर डाली, जिसमें एक तीर से देश की अर्थव्यवस्था खोखली करते कालेधन, भ्रष्टाचार, नकली मुद्रा और आतंकवाद जैसी नासूर बनती समस्या पर सटीक निशाना सधता नजर आया। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की 500 व एक हजार के नोटों को बैन करके देश के अंदर वाले पूरे कालेधन को रद्दी कर दिया। देश की राजनीति कैसी अजीबो गरीब है इसका नतीजा इस नोटबंदी से साफतौर से देखने को मिल रहा है। मसलन देशहित में कालेधन के खिलाफ कदम उठाने की मांग को लेकर मोदी सरकार की लगातार घेरबंदी करते आ रहे सियासी दलो के पैरो तले की जमीन इसलिए खिसकती नजर आई, क्योंकि ऐसे दल और उनके नेता एक झटके में गरीब हो गये और उनकी आगामी चुनावों की रणनीतियों की आर्थिक कमर टूट चुकी है। ऐसी कहावत भी परिचलित है कि पानी गड्ढे में ही भरता है, तो कांग्रेस,बसपा, सपा, आप जैसे दलो का आगबबूला होना स्वाभाविक ही है। इस कार्यवाई को यूं भी देखा जा सकता है कि कालेधन के खिलाफ सत्ता में आते ही सबसे पहले एसआईटी का गठन मोदी सरकार ने किया था,लेकिन विपक्षी दलो का मोदी सरकार पर तरह तरह के आरोप लगाकर लगातार दबाव बनाने का दावं उन्ही पर ऐसा उलटा पड़ता दिख रहा है कि कालेधन की जमाखोरी करने वाले नेताओं, काले कारोबारियों और उद्यमियों के सामने कुआं, तो दूसरी तरफ खाई नजर आ रकह है। यह दिगर बात है कि किसी भी तरह की व्यवस्था बदलने में कुछ असुविधाओं का सामना करना एक सतत प्रक्रिया है जिसके परिणाम सुखद और एक अच्छें भविष्य की संभावना के रुप में ज्यादा प्रबल हैं। आर्थिक मामलों के जानकारो की माने तो मोदी सरकार का यह देश के इतिहास में बहुत ही उचित समय पर लिया गया फैसला है, जो देश की अर्थव्यवस्था बदलने का सबब बनेगा। भले ही लोगो को हो रही असुविधा की आड में ही सियासी आलोचना हो रही हो?
छोटी चीजों की अहमियत
देश दुनिया में रहिमन बहुत पहले ही हमें समझा गए हैं-‘रहिमन देख बड़ेन को, लघु न दीजिये डारि। जहाँ काम आवै सुई, कहा करै तलवारि’..! यह कहावत पीएम मोदी द्वारा 500 और 1000 के नोट बंद करने की घोषणा के बाद पूरी तरह सटीक बैठ रही है जब देश में हर कोई 100 के नोट खोजता दिख रहा था। जाहिर है हम में से ज्यादातर लोग अपने आम जीवन में बड़ी बड़ी चीजों को इकट्ठा करने की आपाधापी में छोटी लेकिन महत्वपूर्ण चीजों को भूलने लगते हैं। बहुत सारे भारतीयों को 100 के नोट का महत्व नोटबंदी के बाद में समझ आया होगा। इसी तरह मेहनत की कमाई का भरोसा बढ़ने का एहसास भी होता दिखने लगा। आम तौर पर आप लोगों को ये कहते सुनते होंगे कि ये घोर कलियुग है, इसमें मेहनत करने वालों से ज्यादा सुखी हरामखोर,
घूसखोर और कालाबाजारी करने वाले रहते हैं। पीएम मोदी की ताजा घोषणा से सबसे ज्यादा खुशी उन लोगों के चेहरे पर दिख रही है जो ईमानदारी की रोटी खाते हैं। उन्हें इस बात की कोई चिंता नहीं कि उनके पास पड़े पैसे का क्या होगा। साथ ही वो आसपास हरामखोरों, घूसखोरों और कालाबाजारी करने वालों को परेशान देख रहे हैं। जाहिर है ऐसे लोगों का ईमानदारी पर यकीन अब थोड़ा बढ़ा होगा।

ये राजनीति हम नहीं छोड़ेंगे...
नेता चाहे किसी भी देश के हों राजनीति तो करते ही हैं। कर भी क्यों न, इनकी रोजी रोटी भी चलती इसी से ही है। कोई भी मसला कितना ही गंभीर क्यों न हो, नेता तो तभी सुध लेंगे जब सवाल राजनीति का हो। यहां देश में राजनीति और राजनेताआें से जुड़ा हुआ एक ताजा मामला दीवाली के बाद सामने आए प्रदूषण का है। इसमें त्यौहार के बाद तो कुछ दिनों तक कोई कुछ नहीं बोला। लेकिन जब मीडिया ने हो-हल्ला मचाना शुरू किया तो सबकी आंख खुली। कोई नेता दिल्ली से कहता कि प्रदूषण के स्तर को थामने के लिए ये उपाय करेंगे तो कोई केंद्र से कहता कि हम ये-ये जरूरी कदम उठाएंगे। आखिरकार नेताआें ने फिर से दोहरा ही दिया कि ये राजनीति हम नहीं छोड़ेंगे। क्योंकि सवाल तो राजनीति से ही जुड़ा हुआ था।
-ओ.पी. पाल, कविता जोशी व राहुल
13Nov-2016

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