कुछ राज्यों के कार्यकाल में कटौती, तो कुछ में विस्तार से होगा संभव
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
प्रधानमंत्री
नरेन्द्र मोदी और चुनाव आयोग के साथ नीति आयोग ने भी देश में लोकसभा और
विधानसभा चुनाव कराने की कवायद का समर्थन किया है। यह मुहिम देश के कम से
कम आधे राज्यों के कार्यकाल में कटौती कर उन्हें छोटा करने के बाद ही संभव
हो सकती है। नीति आयोग तो मानता है कि ऐसे राज्यों की सरकारों का कार्यकाल
तीन से 15 महीने तक छोटा करना पड़ सकता है।
नीति आयोग का देश में
लोकसभा और विधानसभा चुनावों को एक साथ कराने का समर्थन उसके जारी एक
रिपोर्ट 'एनालिसिस आॅफ साइमल्टेनीअस इलेक्शंस: द व्हाट, व्हाई एंड हाऊ' में
किया गया है। इसके लिए आयोग ने कहा कि देश में लोकसभा और विधानसभा चुनावों
को एक साथ आयोजित कराने के लिए आधे राज्यों की सरकारों का कार्यकाल तीन से
15 महीने तक छोटा करना होगा। वहीं बाकी राज्यों की विधानसभाओं का कार्यकाल
एक साल तक बढ़ाना होगा।
ऐसे हो कटौती और विस्तार
रिपोर्ट
के अनुसार, पहले चरण में चुनाव कराने पर छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, राजस्थान
की विधानसभा का कार्यकाल 5 महीने, मिजोरम 6 महीने और कर्नाटक का 12 महीने
बढ़ाना होगा। तो वहीं हरियाणा व महाराष्ट्र विधानसभा का कार्यकाल 5 महीने,
झारखंड का 7 महीने और दिल्ली विधानसभा का कार्यकाल 8 महीने कम करना होगा।
वहीं दूसरे चरण में एक साथ चुनाव कराने पर तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल,
पुदुचेरी, असम और केरल विधानसभा का कार्यकाल 6 महीने, जम्मू कश्मीर का 9
महीने और बिहार का 13 महीने कार्यकाल बढ़ाना होगा। जबकि गोवा, मणिपुर,
पंजाब, उत्तराखंड का 3 महीने, उत्तर प्रदेश का 5 महीने, हिमाचल प्रदेश व
गुजरात का 13 महीने और मेघालय, त्रिपुरा व नागालैंड का कार्यकाल 15 महीने
का कार्यकाल कम करने की जरूरत होगी।
आयोग ने तैयार की रिपोर्ट
केंद्र
सरकार के थिंक टैंक नीति आयोग की ओर से तैयार की गई रिपोर्ट में यह बात
कही गई है। नीति आयोग के पेपर रुपी इस रिपोर्ट को तैयार करने वाले बिबेक
देबरॉय और किशोर देसाई ने माना है कि लगातार चुनाव होते रहने से नीति
निर्माण में बदलाव करने होते हैं, क्योंकि देश में संरचनात्मक सुधारों के
बजाय अदूरदर्शी लोकलुभावन और राजनीतिक सुरक्षा के उपायों को ज्यादा
प्राथमिकता दी जाती है। गौरतलब है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कई मौकों
पर लोकसभा व विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने की वकालत कर चुके हैं, जिसका
समर्थन चुनाव आयोग भी कर चुका है और इसके लिए सर्वदलीय बैठक में राय लेने
के पक्ष में रहा है। इसका कारण है कि इस पहल को आगे बढ़ाने के लिए सभी दलों
की आमसहमति बनाना भी जरूरी है।
नीति
आयोग की इस रिपोर्ट में दो चरणों में चुनाव कराने का सुझाव दिया गया है।
इस सुझाव के तहत दो चुनावों के बीच 30 महीने या ढाई साल का अंतर होना
चाहिए। पहले चरण में अप्रैल-मई 2016 में लोकसभा के साथ ही 14 राज्यों के
चुनाव कराए जा सकते हैं, तो वहीं दूसरे चरण में अक्टूबर-नवंबर 2021 में
बाकी के राज्यों में मतदान कराना संभव है। रिपोर्ट में राज्यवार विधानसभाओं
का बंटवारा भी किया गया है।
28Nov-2016
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