रविवार, 6 नवंबर 2016

राग दरबार: आत्महत्या की खुशी का खेल

राहुल और केजरीवाल की घिनौनी सियासत
देश की राजनीति का स्तर कितना गिरता जा रहा है, इसका ताजा मामला एक पूर्व सैनिक की आत्महत्या के बाद कांग्रेस और आप जैसे दलों के डिजाइनर नेताओं की अज्ञानतायुक्त और घिनौनी सियासत से सार्वजनिक हो चुका है। कांग्रेस युवराज राहुल गांधी और झूठ के पुलिंदे में लिपटे आप के अरविंद केजरीवाल की एक पूर्व सैनिक की आत्महत्या को अपनी सियासत की खुशी में तब्दील करने की बेहद घिनोनी राजनीति ने लोकतंत्र को भी शर्मसार किया है। आत्महत्या को कायरता का पर्याय कहा गया है, लेकिन ये नेता अपनी सियासत में इसे शहीद का दर्जा देने पर तुले हैं, जिन्हें मौजूदा सीमा पर तनाव के बीच दुश्मनों का मुकाबला करते शहीद हो रहे सैनिकों की कोई फिक्र नहीं और न ही ऐसे नेताओं तिरंगे में लिपटकरआ रहे शहीदों के परिजनों की सुध लेने का कोई प्रयास किया। इस आत्महत्या के मामले में राहुल व केजरीवाल में खुशी बांटने की होड़ में उस केजरीवाल ने तो आत्महत्या करने वाले पूर्व सैनिक के परिजनों को एक करोड़ रुपये का मुआवजा देने का भी ऐलान कर दिया, जो उप राज्यपाल पर काम न करने का आरोप लगाकर यह कह चुके हैं कि दिल्ली का मुख्यमंत्री होने के बावजूद उसमें पांच रुपये का पेन खरीदने की ताकत नहीं है। राजनीतिक गलियारों में ऐसे मे ऐसे सियासतबाजों पर सवाल उठना स्वाभाविक ही है, जिसमेें कहा जा रहा है कि केजरीवाल मुआवजा देना चाहते हैं तो सीमा पर शहीद हो रहे सैनिकों की ओर से क्यों मुहं छुपा रहे हैं। ऐसे में यही लगता है कि पीएम मोदी की लोकप्रियता से बौखलाए ये डिजाइनर नेता पागलनपन पर उतर आए हैं, जिन्हें यह भी ज्ञान नहीं है कि शहीद किसको कहा जाता है। यह भी दिगर है कि अब जब इस पूर्व सैनिक की आत्महत्या करने का कारण सामने आ रहा है तो ऐसे में इन डिजाइनर नेताओं को मुहं छिपाने की भी जगह मिलना मुश्किल है, जिन्होंने इस आत्महत्या को अपनी सियासी खुशी मनाने का खेल शुरू किया, जिसे पागलपन की राजनीति के अलावा और कुछ कहना मुमकिन नहीं है।
सियासी रणनीति मेें अपशकुन
उत्तर प्रदेश के आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर जिस प्रकार की रणनीति के ताने-बाने बुने जा रहे हैं, उसमें कांग्रेस के अभियानों की तरह ही सत्तारूढ सपा के विकास रथ अभियान में भी अपशगुन सामने आया। मसलन यूपी के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव करोड़ो रुपये से हाईटेक रूप से तैयार किये गये विकास रथ का खराब होना ठीक वैसा ही वाक्या है, जैसा मोटा कमीशन देकर ठेकेदार द्वारा बनायी गयी सड़क का बनते ही उधड़ने लगना। खैर रथ खराब होना अपशकुन है। इससे पूर्व कांग्रेस पार्टी की ओर से मुख्यमंत्री पद की घोषित प्रत्याशी शीला दीक्षित भी लखनऊ में अपने रथ से रपट चुकी हैं। खुद सानिया बीमार हो चुकी है और राहुल गांधी की खाट सभा भी टूटी खाटों में बदलकर ऐसे अपशकुन के संकेत दे चुकी है। अब कांग्रेस के रणनीतिकार पीके सपा से गठबंधन करने को कुलबुला रहे हैं पर कांग्रेस नेता यह नहीं समझ पा रहे कि 27 साल यूपी बेहाल मुहिम का जनता को क्या हाल बताएंगे। राजनीतिकारों की माने तो यूपी मिशन में जुटे दलों में भाजपा ही अभी तक ऐसे अपशकुन से दूर है, बहरहाल यूपी की सियासत का सेहरा किसके सिर बंधेगा यह तो भविष्य के गर्भ में छिपा है, लेकिन चुनावी रणनीतियां गिरगिट की तरह रंग बदलती नजर आ रही हैं।
मंच पर एक साथ कुनबे की सियासत
उत्तर-प्रदेश की राजनीति की कद्दावर राजनीतिक पार्टियों में से एक समाजवादी पार्टी (सपा) में बीते कुछ समय से जारी आतंरिक कलह के बादल फिलहाल छंटते हुए नजर आ रहे हैं या फिर सूबे में कुछ महीनों के बाद होने वाले विधानसभा चुनावों में जनता को सबकुछ दुरुस्त दिखाने की कवायद चल रही है, इसके बारे में स्पष्ट रूप से तो कुछ भी कहना मुश्किल है। लेकिन बेमन से ही सही दिग्गज सपाईयों ने राजनीतिक मंच तो साझा कर ही लिया है। अब इसे लेकर विरोधियों के अलावा आमजनता में भी उत्सुक्ता नजर आ रही है कि भला ऐसा हुआ कैसे। खैर जो भी चमत्कार हुआ हो सपा के वरिष्ठ नेता शिवपाल यादव और मुख्यमंत्री अखिलेख यादव ने पार्टी के चुनावी रथ अभियान से पहले सजाए गए राजनीतिक मंच को न केवल साझा किया। बल्कि इसमें सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव ने भी पहुंचकर बेटे को आर्शीवाद दे दिया। इसे कहेंगे घरेलू लड़ाई अपनी जगह और सपाईयों की एकता अपनी जगह।
-ओ.पी. पाल व कविता जोशी
06Nov-2016

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