रविवार, 6 नवंबर 2016

भाजपा के खिलाफ फिर महागठबंधन का मेगा शो!


यूपी चुनाव: सियासी अलाव पर काठ की हांडी चढ़ाने की तैयारी
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव में सियासी एवरेस्ट चढ़ने की मशक्कत में जुटी कांग्रेस, बसपा ही नहीं बल्कि सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी भी शायद पीएम मोदी के राजनीतिक ग्राफ बरकरार रहने से हलकान है। इसी वजह से समाजवादी पार्टी के सिल्वर जुबली समारोह में भाजपा के विजय रथ को रोकने की रणनीति के तहत जनता परिवार के सभी दल एकजुट होकर एक बार फिर से महागठबंधन के मेगा शो की तैयारी में हैं।
दरअसल यूपी के आगामी विधानसभा चुनाव की तैयारियों में जुटे सियासी दलों में भाजपा की रणनीति के सामने अन्य सभी दल इसलिए हलकान हैं कि सपा, बसपा, कांग्रेस और अन्य कई दलों के कद्दावर नेता भाजपा का दामन थामते नजर आ रहे हैं। ऐसे में भाजपा और पीएम मोदी के सियासी ग्राफ में कमी न आने से परेशान बाकी दल नए-नए पैंतरों की रणनीति बना रहे हैं। कांग्रेस ने तो पीके का सहारा लेकर अपनी नैया को पार लगाने की नीति का खाका खींचा है, हालांकि वह सूबे के कांग्रेस नेताओं को रास नहीं आ रहा है, जिसका परिणाम है कि कांग्रेस की दिग्गज रीता बहुगुणा जोशी तक भाजपा में शामिल हो गई है। जैसे जैसे चुनाव का समय नजदीक आता जा रहा है ऐसे ही सियासी परा चढ़ने के साथ गैर भाजपाई दलों की बेचैनी बढ़ती जा रही है। यही नहीं कांग्रेस के थिंक टैंक ने यूपी में मोदी और भाजपा पर नए तरीकों से सियासी वार की रणनीति बनाकर भी निशाने साधे, लेकिन कोई असर नहीं दिखा। इसका कारण यह भी है कि केंद्र सरकार ने यूपी में सड़क परियोजनाओं और अन्य विकास योजनाओं को एक साल पहले से ताबड़तोड़ तरीके से पटरी पर उतारने के सिलसिले को तेज कर रखा है, जिसका श्रेय लेने के लिए सपा ने विकास रथ यात्रा शुरू की है, जबकि इसके जवाब में सत्ता परिवर्तन के लिए भाजपा की शुरू हुई परिवर्तन यात्रा इन दलों की परेशानी का सबब बन सकती है। भाजपा के सूत्रों का दावा है कि यूपी सरकार के प्रदर्शन के मुकाबले प्रधानमंत्री का सियासी ग्राफ और केंद्र की जनहित की योजनाओं से लगातार ऊपर बढ़ने से विपक्षी दल हलकान हैं, जिसका सियासी संकेत साफ है कि मोदी के मुकाबले विपक्ष के मजबूत चेहरे को लेकर जनता में कोई स्पष्ट तस्वीर नहीं बन पा रही है।
आसान नहीं वैकल्पिक राह
उत्तर प्रदेश की सत्तारुढ़ समाजवादी पार्टी ने शनिवार को अपना रजत जयंती समारोह मनाया तो उसके मंच पर समाजवादी दिग्गजों का जमावड़ा नजर आया यानि बिहार चुनाव की तरह फिर से भाजपा के खिलाफ महागठबंधन का मेगा शो की सुगबुगहाट तेज नजर आई। दरअसल बिहार चुनाव के दौरान भी महागठबंधन बना था, लेकिन चुनाव के ऐन वक्त पर मुलायम सिंह ने ही खुद को गठबंधन से अलग कर लिया था। इसलिए पिछले सियासी गठबंधन वाले इतिहास को देखते हुए यूपी में फिर महागठबंधन के मेगा शो की राह आसान नहीं लगती। भले ही जनता परिवार को एक मंच पर लाने वाले सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव को अपना नेता मानने की दुहाई ही क्यों न देते दिखे हों। गौरतलब है कि लोकसभा में मोदी मैजिक के सामने धराशाही हुए गैर भाजपाई व गैर कांग्रेसी दलों सपा,राजद, जद-यू, जद-एस, इनेलो और सजपा जैसे छह पार्टियों ने जनता परिवार के बिछड़े कुनबे को एकजुट करने के नाम पर महागठबंधन की कवायद शुरू की थी, जिसे आज तक अंजाम नहीं दिया जा सका। ऐसे में सवाल है कि यूपी चुनाव में भाजपा के खिलाफ सियासी गरज से महागठबंधन का विकल्प तैयार करना क्या आसान होगा? ऐसा इसलिए भी नामुमकिन नजर आ रहा है कि अभी खुद सपा के कुनबे की रार पर विराम लगने की कोई पुष्टि नहीं हो पा रही है।
रालोद को भी तरजीह
भाजपा के खिलाफ यूपी चुनाव को लेकर जिस जनता परिवार ने पिछली कवायद में रालोद को चाहते हुए भी अपने से दूर रखा था, इसबार सपा खुद उसे गठबंधन में तरजीह दे रही है, जिसका परिणाम था कि सपा के रजत जयंती समारोह के मंच पर रालोद प्रमुख चौधरी अजित सिंह भी समाजवादियों के बीच नजर आए। महागठबंधन के प्रयोग में बार-बार फिसले इन दलों ने सपा के रजत जयंती के मौके पर फिर एकजुटता की दुहाई देते हुए धर्मनिरपेक्ष दलों से एक मंच पर आने का आव्हान करना इस बात का संकेत है कि यूपी के चुनाव में खुद सपा को भी अपनी सियासी जमीन कायम होने पर विश्वास नहीं है या फिर भाजपा की चुनावी रणनीति के चक्रव्यूह को समझना इन दलों के लिए मुश्किल हो रहा है। राजनीतिकारों की माने तो यूपी में भाजपा की रणनीतियों के मुकाबले पिछड़ते नजर आ रहे इन दलों को फिर से महागठबंधन की याद सताने लगी, जिसमें कांग्रेस व बसपा का साथ लेने में इन सक्युलर दलों को कोई ऐतराज नहीं है।
06Nov-2016

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