मंगलवार, 22 नवंबर 2016

अब ऐसे होगा ड्राइविंग लाइसेंस का टेस्ट!

विकसित हुई तकनीक में कार नहीं, सड़क चलेगी
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
देश में सड़क सुरक्षा की दिशा में चलाई जा रही सड़क परियोजनाओं और यातायात व्यवस्था बदलने की जारी कवायद के बीच ही एक ऐसी तकनीक विकसित की गई है, जिसमें वाहन चालकों की क्षमता का आकलन किया जा सकेगा। मसलन ड्राइविंग लाइसेंस हासिल करने वाले दक्षता के लिए होने वाले टेस्ट का स्वरूप ही बदल जाएगा और टेस्ट में कार नहीं, बल्कि सड़क चलती नजर
आएगी।
दुनियाभर के देशों के मुकाबले भारत में हो रहे सर्वाधिक सड़क हादसों से चिंतित सरकार को केंद्रीय सड़क अनुसंधान के वैज्ञानिकों ने एक ऐसी तकनीक की सौगात दी है, जिसमें वाहन चलाने वाले वाले लोगों की चालक दक्षता को आंकना आसान होगा। सूत्रों के
अनुसार जल्द ही सीआरआरआई के वैज्ञानिकों द्वारा विकसित तकनीक में ऐसा कार सिम्युलेटर तैयार किया गया है, जिसमें ड्राइविंग लाइसेंस के लिए होने वाले टेस्ट में सामने स्क्रीन होगी। जिसमें इस कार में बैठे व्यक्ति के सामने वाली स्क्रीन पर सड़क चलती नजर आएगी और उसे महसूस होगा कि वह सड़क पर कार चला रहा है। जबकि टेस्ट के दौरान वास्तव में कार स्थिर होगी और स्क्रीन पर सड़क चलेगी। वैज्ञानिकों का दावा है कि इस कार सिम्युलेटर का इस्तेमाल ड्राइविंग ट्रेनिंग के लिए भी किया जा सकेगा। सड़क सुरक्षा से संबन्धित परियोजना पर काम कर रहे संस्थान की वैज्ञानिक डॉ. कामिनी गुप्ता की माने तो उनकी यह परियोजना लगभग पूरी हो चुकी है तथा अगले साल फरवरी तक प्रौद्योगिकी हस्तांतरण होने की उम्मीद है।
चार साल में पूरी हुई परियोजना
सूत्रों के अनुसार देश में सड़क हादसों को रोकने की दिशा में उच्चतम न्यायालय भी समय-समय पर दिशानिर्देश देता रहा है और सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर सड़क सुरक्षा पर बनाई गई समिति ने भी नई दिल्ली स्थित सीआरआरआई का दौरा करके आरटीओ कार्यालयों में ड्राइविंग टेस्ट के लिए ऐसी तकनीक विकसित करने पर बल दिया था, ताकि चालकों की दक्षता का आकलन होने के बाद ही उन्हें ड्राइविंग लाइसेंस जारी किये जा सकें। इस कार सिम्युलेटर तैयार करने में सीआरआरआई ने वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद् (सीएसआईआर) की अन्य प्रयोगशालाओं नेशनल एयरोस्पेस लैबोरेटरी तथा सेंट्रल साइंटिफिक इंस्ट्रूमेंट आॅगेर्नाइजेशन की भी मदद ली है। इस तकनीक को लाने के लिए वर्ष 2012 में परियोजना पर काम शुरू किया गया था, जिसे पूरा करने में चार साल का समय लगा।
साइकोमोटर टेस्ट भी संभव
संस्स्थान की वैज्ञानिक डॉ. गुप्ता के अनुसार इस सिम्युलेटर से ड्राइविंग टेस्ट के साथ ही साइकोमोटर टेस्ट भी किया जा सकेगा, जिसके लिए टेस्ट के दौरान ही चालक का प्रतिक्रिया समय, गति और दूरी को पहचानने की उसकी क्षमता, दबाव झेलने की क्षमता,सिग्नलों तथा नियमों के बारे में जानकारी तथा कलर ब्लाइंडनेस के आंकड़े एकत्र किए जाते हैं। आम तौर पर आरटीओ में जगह सीमित होती है तथा इसमें टेस्टिंग लेन की परिस्थितियां वास्तविक सड़क की परिस्थितियों से अलग होती हैं। लेकिन सिम्यूलेटर पर पांच तरह की सड़कों के विकल्प होंगे।
सड़क चयन का विकल्प
वैज्ञानिकों का दावा है कि ड्राइविंग टेस्ट लेने वाला या सिखाने वाला इंस्ट्रक्टर एक्सप्रेस वे, राष्ट्रीय राजमार्ग, राजकीय राजमार्ग और ग्रामीण सड़कों के साथ आरटीओ ट्रायल में से कोई एक विकल्प चुन सकता है। यह सिम्यूलेटर एक कार तथा उसके सामने लगे बड़े स्क्रीन से पूरा होता है। कार के गियर, क्लच, ब्रेक, एक्स्लेरेटर तथा सभी लाइटें एक सॉμटवेयर के माध्यम से स्क्रीन से जुड़ी होती है। एक्स्लेरेटर ज्यादा देने पर स्क्रीन पर चल रही सड़क पर चालक की गति बढ़ जाती है, जबकि ब्रेक लगाने पर उसे उसी प्रकार कार के धीमी होने तथा रुकने का एहसास होता है, जैसा वास्तविक सड़क पर होता है।
22Nov-2016


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें