जनता से ज्यादा सियासी नेताओं में बढ़ी परेशानी
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
देश
की अर्थव्यवस्था में सुधार के लिए अवैध संपत्ति पर शिकंजा कसने के लिए
मोदी सरकार के 500 व एक हजार के नोटों को बंद करके नए नोट जारी करने के
फैसले से आम जनता से ज्यादा नेताओं में ज्यादा बेचैनी और परेशानी बढ़ी है।
विशेषज्ञों की माने तो सियासी दलों का हलकान होना भी स्वाभाविक है, जिनकी
ऐसे धन के बल पर यूपी, पंजाब, उत्तराखंड समेत पांच राज्यों के विधानसभा
चुनावों में खर्च करने की पूरी हो चुकी तैयारियों को गहरा झटका लगा है।
सियासी गलियारों में सनसनी
प्रधानमंत्री
नरेन्द्र मोदी के इस फैसले के बाद से ही राजनीतिक गलियारों में इसलिए
सनसनी फैल गई है, क्योंकि उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, गोवा, मणिपुर जैसे पांच
राज्यों के चुनाव सिर पर हैं और सभी सियासी दल अपनी रणनीतियों को करीब
अंतिम रूप दे चुके हैं। ऐसे में विभिन्न राजनीतिक दलों और उनके नेताओं
द्वारा चुनाव में खर्च करने के लिए गुप्त रूप से एकत्र की गई बड़ी धनराशि एक
झटके में रद्दी हो गई है। दरअसल इतनी बड़ी राशि किसी भी दल या उनके नेताओं
द्वारा तय समय में निर्धारित की गई शर्तो के तहत बैंकों में जमा कराना
नामुमकिन ही नहीं, बल्कि अससंभव है। जाहिर सी बात है ऐसा धन को कालेधन के
रूप में माना जाएगा,जिसका उपयोग होने की पुष्टि लोकतांत्रिक प्रक्रिया में
पिछले चुनावों में होती रही है। चुनाव आयोग द्वारा आचार संहिता लगने के बाद
पैसों को एक जगह से दूसरी जगह ले जाना भी मुश्किल हो जाएगा। नेताओं द्वारा
वोटरों को नोट के वोटों की खरीद फरोख्त पर मंडराए खतरा 500-1000 के नोटों
पर लगा प्रतिबंध नेताओं के लिए किसी बड़े झटके से कम नहीं है। विशेषज्ञों की
माने तो केंद्र सरकार का यह फैसला आगामी चुनावी समर में चुनाव सुधार का
सबब बनेगा।
क्या कहते हैं विशेषज्ञ
अंतर्राष्ट्रीय
स्तर की संस्था ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल इंडिया में भारतीय शाखा के प्रमुख
एवं मुख्य कार्यकारी निदेशक रामनाथ झा ने केंद्र सरकार के इस फैसले को
सराहनीय और साहसिक करार देते हुए कहा कि पुराने नोट बंद होने से परेशान हुए
सियासी दल इसके बावजूद ज्यादा से ज्यादा पैसा ठिकाना लगाने का प्रयास
करेंगे। उन्होंने तर्क दिया कि इसे रोकने में शायद सरकार चूक कर गई है।
मसलन चार हजार रुपये के नोट बदलवाने के पैन कार्ड अथवा खाता अनिवार्य करना
जरूरी था, ताकि स्त्रीधन के बहाने कोई काली कमाई को सफेद में नहीं बदल
सकें। झा का तर्क है कि मतदाता पहचान पत्र दिखाकर पैसा जमा करवाने से
बैंकिंग प्रणाली से जुडे का सुराग लगना संभव नहीं है। अब राजनीतिक
पार्टियां अपना काला धन सफेद बनाने के लिए अपने ही कार्यकतार्ओं के खाते का
प्रयोग कर सकती हैं, इससे जैसे भी हो, गरीबों के खाते में काला धन का पैसा
तो आ ही जाएगा। इसलिए सरकार को सरकारी अधिकारियों और एजेंसियों को अभी कई
माह तक सतर्क रहने की हिदायत देनी चाहिए। वहीं सरकार को चाहिए कि राष्ट्रीय
स्तर पर एक सतर्कता लाइन शुरू की जाए।
इन्होंने भी कहा साहसिक फैसला
पुराने
नोट बंद करने के फैसले पर पीएम मोदी को ज्यादातर जनता परेशानी झेलने के
बावजूद इस फैसले का समर्थन करती दिख रही है और सोशल मीडिया पर तो मोदी
सरकार द्वारा कालेधन पर उठाए इस सख्त कदम की खूब तारीफों के पुल बांधे जा
रहे हैं। विदेशी मीडिया में भी मोदी का इस फैसले में दिखाया गया साहस
सुर्खिंयों में है। वहीं खेल जगत की हस्तियों में क्रिकेटर अनिल
कुम्बले,टर्बनेटर हरभजन सिंह और महिला मुक्केबाज एमसी मैरीकॉम ने भी जमकर
तारीफ की है। भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन चलाने वाले अण्णा हजारे ने इस
निर्णय को साहसिक और क्रांतिकारी कदम करार दे चुके हैं, जिन्होंने केंद्र
सरकार के इस साहसिक फैसले से काले धन, भ्रष्टाचार और आतंकवाद पर लगाम लगने
का भरोसा जताया है।
15nOV-2016
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