रविवार, 20 नवंबर 2016

राग दरबार: मन बेमन सपनो का भारत...

नोटबंदी का बेमन का विरोध
मोदी सरकार के नोटबंदी के फैसले के बाद देश की अर्थव्यवस्था के मौजूदा हालातों पर सवालों और समस्याओं की बहुत बात हो रही है। कमोबेश उन सवालों को उठा भी दिया जो नोटबंदी के कारण हो रही तकलीफों से जुड़े हैं। कुछ मन की बातें थीं, कुछ बेमन से। कुछ भय है, कुछ सच है कुछ आक्रोश है। इसे आगे भी आवाज देते रहेंगे। इस सबका परत-दर-परत आकलन होता रहेगा। पर मोटा-मोटी मेहनतकश और टैक्स भरने वाला तो खुश है और उसको तो अपने सपनों का भारत बनते हुए दिख रहा है। उसे लगता है कि सचमुच अच्छे दिन आ गए हैं। इसके विपरीत अब काला धन कमाने वाले लोगों मुँह नहीं चिढ़ा पाएंगे। वहीं वे लोग और उनके हितों को साधने या खुद के स्वार्थवश कुछ सियासी दल भी सरकार के इस फैसले का विरोध कर रहे हैं,लेकिन कालेधन, भ्रष्टाचार जैसे माामलों के खिलाफ आवाज बुलंद करते दलो का विरोध बेमन की बात लगता है, जिसमें उनका निजी या सियासी स्वार्थ हो सकता है। इस नोटबंदी पर दिग्गज अर्थशास्त्रियों की माने तो इस फैसले से कई तरह के बदलाव होंगे। बोरियों में पैसे रखने वाले लोग अब फरार्टे से अपनी चमचमाती आॅडी, या बीएमड्ब्ल्यू या मर्सिडीज लेकर मेरी मारुति के सामने से नहीं निकल पाएंगे। उसकी कोठियाँ और यूरोप की यात्राएं मुझे मुँह नहीं चिढ़ाएंगी। नहीं, ये नहीं कि मुझे उसके गाड़ी, बंगले और सुख सुविधाओं से कोई दिक्कत है। दिक्कत तो इसी बात से है कि वो मेरी ईमानदारी पर हंसता था। मेरे ईमानदारी से टैक्स भरने की खिल्ली उड़ाता था। मुझे बेवकूफ बताता था। तो मैं तो ऐश-अय्याशी कर रहा है तो फिर मुझे उससे बहुत दिक्कत है। दिक्कत तो इसी बात से है कि वो मेरी ईमानदारी पर हंसता था। मेरे ईमानदारी से टैक्स भरने की खिल्ली उड़ाता था। मुझे बेवकूफ बताता था। तो मैं यानि ईमानदारी तो खुश है।
संकेतों का हड़कंप
देश में मोदी सरकार द्वारा 500 और 1000 के नोटों का चलन बन्द करने एवं नए 2000 के नोटों को लाने के फैसले को बड़े आथ्र्किि सुधार के तौर पर देखा जा रहा है, जिसका चौतरफा कुछ दिक्कतों के बावजूद इस बदलाव वाले फैसले का समर्थन हो रहा है, तो ये फैसला मोदी सरकार की शुरूआत भर है और अब जो संकेत सामने आए हैं उनमें सरकार कालाधन और भ्रष्टाचार से हासिल की गई संपत्ति रखने वालों पर भी सख्त होगी। मसलन कालेधन के खिलाफ जंग में नोटबंदी को मिल रहे समर्थन के मद्देनजर अब सरकार भ्रष्टचारियों और संपत्तियों में निवेश कर कालेधन को सुरक्षित रखने वालों पर कार्रवाई करने के लिए जो कदम उठाने जा रही है उसमें बेनामी संपत्तियां निशाना होंगी यानि इस कार्यवाई में भी बेइमानों पर ही साधे चोट लगने जा रही है। बेनामी संपत्तियों का हिसाब किताब करने व्के लिए तो सरकार पहले कानून पास करा चुकी है। लिहाजा अकूत संपत्ति अर्जित करने वालों में हड़कंप मचना स्वाभाविक है।

आॅफिस में बैठे या फील्ड में जाए...
कांग्रेस पार्टी के पदाधिकारी इन दिनों एक उलझन के दौर से गुजर रहे है। हाईकमान से पार्टी से पदाधिकारियों को कहा गया है कि चाहे कुछ भी हो जाए,लेकिन सप्ताह में दो या तीन दिन तो नईदिल्ली के पार्टी कार्यालय में मौजूद रहना ही है। इस निर्देश वह नेता ज्यादा चिंतित नजर आ रहे जिन्हें अगले एक या दो वर्षों में होने वाले चुनावी राज्यों का जिम्मा दिया हुआ है। वे इस उलझन में पड़े है कि अगर पार्टी का आदेश नहीं माना तो कार्रवाई हो जाएगी। वहीं चुनावों की तैयारी आॅफिस में रहकर तो नहीं की जा सकती है। इसके लिए फील्ड में जाना तो जरूरी होगा। एक बार फिल्ड में जाते है तो एक सप्ताह तो लग ही जाता है। वहीं दूसरी ओर वह पदाधिकारी खुश भी है कि जिनके पास कोई आगामी चुनावी राज्यों का जिम्मा नहीं है। कम से कम उन्हें फील्ड में नहीं जाने से निजात तो मिली।
-ओ.पी. पाल व राहुल
20Nov-2016

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