43 नामों का वापस कॉलेजियम का भेजा
हरिभूमि ब्यूरो. नई दिल्ली।
केंद्र
 सरकार ने उच्च न्यायालयों में नियुक्ति के लिए कॉलेजियम प्रणाली के जरिए 
आए 77 में से 34 जजों के नामों को मंजूरी दे दी हे,जबकि बागी 43 जजों के 
नामों को नामंजूर करते हुए पुनर्विचार हेतु सुप्रीम कोर्ट में कॉलेजियम को 
वापस भेज दिया गया है।
देश में उच्च न्यायालयों में जजों की 
नियुक्ति प्रक्रिया में कॉलेजियम प्रणाली के तहत केंद्र सरकार को मंजूरी के
 लिए 77 नाम भेजे गये थे। इनमें से शुक्रवार को केंद्र सरकार ने 34 जजों की
 नियुक्ति के लिए मंजूरी दे दी है, जिन्हें राष्टÑपति को भेजा जाएगा। जबकि 
सरकार ने बाकी 43 नामों को नामंजूर कर दिया गया है और फिर से विचार के लिए 
वापस भेज दिया है। केंद्र सरकार ने इन नामों की मंजूरी की जानकारी प्रधान 
न्यायाधीश टीएस ठाकुर, न्यायमूर्ति शिवकीर्ति सिंह और न्यायमूर्ति एल 
नागेश्वर राव की पीठ को देते हुए कहा है कि न्यायाधीशों की नियुक्ति की 
सिफारिश से संबंधित अब एक भी फाइल सरकार के पास लंबित नहीं है।
गौरतलब
 है कि केंद्र सरकार के राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग के गठन को 
असंवैधानिक करार देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट में जजों की नियुक्ति
 प्रक्रिया के लिए कॉलेजियम प्रणाली को बहाल कर दिया था। इसी कारण जजों की 
नियुक्ति प्रक्रिया को लेकर केंद्र सरकार और सुप्रीम कोर्ट में तकरार जारी 
है। इस माह के शुरू में ही जजों की नियुक्ति में हो रही देरी को लेकर 
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को फटकार लगाई थी, जिसके बाद कॉलेजियम 
प्रणाली के तहत सरकार को मिले नामों में से दिल्ली व गुहावटी हाई कोर्ट में
 पांच-पांच जजों की नियुक्ति के लिए दस जजों के नाम केंद्र सरकार ने 
राष्टपति को भेजे दिये थे। अब सरकार ने 34 और जजों के नामों को हरी झंडी 
दी है।
यह है कॉलेजियम प्रणाली
सुप्रीम कोर्ट 
द्वारा जजों की नियुक्ति के लिए केंद्र सरकार के प्रस्ताव को खारिज करके 
फिर से बहाल की गई पुरानी कॉलेजियम व्यवस्था के तहत हाई कोर्ट के मुख्य 
न्यायधीश दो सबसे वरिष्ठ जजों के साथ मिलकर केंद्रीय कानून मंत्री के पास 
जजों के नाम की सिफारिश भेजते हैं। कानून मंत्रालय प्रस्तावित नामों पर 
फैसला लेने से पहले इंटेलिजेंस ब्यूरो की रिपोर्ट लेता है। सभी जांच पूरी 
होने के बाद नामों की सिफारिश आगे देश के मुख्य न्यायधीश के पास नियुक्ति 
पर अंतिम मुहर के लिए भेजी जाती है। सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायधीश दो 
सबसे वरिष्ठ जजों के साथ मिलकर नाम पर विचार करते हैं और अंतिम मुहर लगाते 
हैं।
सरकार का तर्क
केंद्र की तरफ से अटॉर्नी 
जनरल मुकुल रोहतगी ने कहा कि केंद्र ने पहले ही इस साल तीन अगस्त को 
कॉलेजियम को विचार के लिए मेमोरेंडम आॅफ प्रोसीजर का नया मसौदा भेजा था, 
लेकिन अब तक सरकार को कोई जवाब नहीं मिला है। जहां तक जजो कीनियुक्तियों
 का सवाल है उस मामले में गत 28 अक्टूबर की पिछली सुनवाई में अटॉर्नी जनरल 
ने कोर्ट को जानकारी दी थी कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जजों की नियुक्ति के 
लिए 18 नाम भेजे हैं, लेकिन अब तक कोई कदम नहीं उठाया गया है। गौरतललब है 
पिछले दिनों ही सुप्रीम कोर्ट ने जजों की नियुक्ति में देरी पर सरकार को 
फटकार लगाते हुए कहा था, कि यदि कोलिजियम से भेजे गए नामों पर आपत्ति है तो
 कोर्ट को बताए, लेकिन जजों की नियुक्तियों को मंजूरी देने में देरी न की 
जाए।
सुप्रीम कोर्ट की दलील
सुप्रीम कोर्ट का 
तर्क है कि जजों की की कमी के कारण उच्च न्यायालयों की हालात बहुत ही खराब 
हैं और एमओपी मसौदा को अंतिम रूप नहीं दिए जाने की वजह से नियुक्ति 
प्रक्रिया को रोका नहीं जा सकता। अदालत ने न्यायाधीशों की नियुक्ति से 
संबंधित फाइलों पर विचार करने में धीमी प्रगति के लिए सरकार की आलोचना करते
 हुए चेतावनी दी थी कि वह प्रधानमंत्री कार्यालय और विधि एवं न्याय 
मंत्रालय के सचिवों को तथ्यात्मक स्थिति का पता लगाने के लिए तलब कर सकती 
है। जबकि अटॉर्नी जनरल ने कहा था कि एमओपी को अंतिम रूप नहीं दिया जाना 
नियुक्तियों में विलंब के कारणों में से एक है और पीठ को आश्वासन दिया था 
कि न्यायाधीशों की नियुक्ति पर निकट भविष्य में और प्रगति देखने को मिलेगी।
12Nov-2016 

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