नोटबंदी पर सपा का पक्ष मजबूत करने पर वापसी का मजबूर हुए मुलायम
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
समाजवादी
पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव ने पिछले महीने पार्टी से निकाले गए
प्रोफेसर रामगोपाल यादव का निष्कासन आज रद्द कर दिया, जो तकनीकी रूप से
पार्टी से निष्कासित नहीं थे। इसी तकनीकी खामियों का नतीजा था कि उन्होंने
नोटबंदी के मुद्दे पर राज्यसभा में हुई चर्चा के दौरान सपा नेता के रूप में
ही पार्टी का पक्ष रखा। माना जा रहा है कि सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव ने
सपा के प्रति समर्पित देख इस खामियों का अहसास करते हुए उन्हें पार्टी में
वापस लेने के लिए मजबूर होना पड़ा है।
बहरहाल समाजवादी पार्टी
प्रमुख मुलायम सिंह यादव की ओर से आज जारी बयान में कहा कि प्रो. रामगोपाल
का सपा से निष्कासन रद्द किया जाता है और वह पहले की ही तरह पार्टी के
राष्ट्रीय प्रवक्ता, महासचिव एवं संसदीय बोर्ड के सदस्य के रूप में काम
करते रहेंगे। उल्लेखनीय है कि रामगोपाल को पिछली 23 अक्टूबर को भाजपा के
साथ साठगांठ करने और पार्टी के साथ अनुशासनहीनता के आरोप में छह वर्ष के
लिए निष्कासित कर दिया गया था। उनके निष्कासन का पत्र सपा के प्रदेश
अध्यक्ष शिवपाल सिंह यादव ने जारी किया था। हालांकि बुधवार को राज्यसभा में
नोटबंदी के मुद्दे पर हुई चर्चा के दौरान प्रो. रामगोपाल को सपा सदस्य के
रूप में मौका मिला, जिसका कारण था कि सपा की ओर से राज्यसभा को उनके
निष्कासन के संबन्ध में कोई अधिकृत पत्र नहीं दिया गया था। इसी लिहाज से
गुरुवार को उनके निष्कासन के बाद सपा की पिछले दिनों चली अंदरूनी रार में
रामगोपाल यादव के निष्कासन का नाटकबाजी करार दिया जा रहा है।
सदन में झेलने पड़े ताने
राज्यसभा
में एक दिन पहले बुधवार को जब नोटबंदी पर चर्चा के दौरान रामगोपाल यादव ने
समाजवादी पार्टी का प्रतिनिधित्व किया और केंद्र सरकार की तैयारियों पर
सवाल उठाए, तो उस दौरान कुछ पार्टियों ने सवाल खड़े किये कि वह किस पार्टी
का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं, क्या समाजवादी पार्टी के पास फिलहाल ऐसा कोई
नेता नहीं है, जो सदन में पार्टी का प्रतिनिधित्व कर सके। दरअसल संसद का
मौजूदा सत्र शुरू होने से पहले समाजवादी पार्टी के मुखिया ने भी राज्यसभा
सचिवालय को इस बारे में औपचारिक तौर पर कोई सूचना नहीं दी थी, कि रामगोपाल
यादव को पार्टी से 25 दिन पहले निकाल दिया गया था। शायद ऐसे में मुलायम
सिंह यादव को संसद में विरोधियों के ताने से बचने के लिए रामगोपाल की
पार्टी में वापसी का फैसला तत्काल करने के लिए मजबूर होना पड़ा है।
सभी दल थे अचंभित
राज्यसभा
में एक दिन पहले सपा के नेता के तौर पर अपना पक्ष रखने वाले रामगोपाल के
भाषण से ही अटकले लगना शुरू हो गया था कि कि प्रो.रामगोपाल यादव के लिए सपा
में वापसी के दरवाजे बंद नहीं किये गये हैं। संसद के शीतकालीन सत्र के
दूसरे दिन ही इन अटकलों का पटाक्षेप हो गया, जब उनके छह साल के किये गये
निष्कासन को रद्द करने की सूचना खुद सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव के
हस्ताक्षरों से जारी की गई। जबकि उनके निष्कासन पत्र पर सपा के यूपी
अध्यक्ष शिवपाल यादव के हस्ताक्षर थे।
निष्कासन में थी तकनीकी खामियां
दरअसल
प्रो. रामगोपाल का जब 23 अक्टूबर को निष्कासन किया गया था, तो उन्हें
समाजवादी पार्टी से निकाले जाने का ऐलान शिवपाल यादव की ओर से किया गया और
निष्कासन पत्र भी लिखित में उन्होंने ही सपा प्रमुख मुलायम के निर्देशों का
हवाला देते हुए सौंपा, जबकि प्रो. रामगोपाल उस वक्त समाजवादी पार्टी के
राष्ट्रीय महासचिव थे, जबकि शिवपाल यादव समाजवादी पार्टी के उत्तर प्रदेश
अध्यक्ष थे। तकनीकी तौर पर देखा जाए, तो पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष ही
राष्ट्रीय महासचिव को बर्खास्त कर सकता है, पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष नहीं।
यही नहीं रामगोपाल को सपा से निकाले जाने का फरमान भी मुलायम के बजाए
शिवपाल यादव के लेटरहेड पर जारी हुआ था। ऐसे में इस मसले पर तकनीकी पेंच
फंसा हुआ था, कि रामगोपाल वाकई समाजवादी पार्टी से बाहर किए गए हैं या
नहीं।
शिवपाल को झटका
उत्तर प्रदेश के
मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के साथ खड़े रहे प्रो. रामगोपाल यादव को पार्टी
विरोधी गतिविधियों में लिप्त होने के आरोप लगाने वाले निष्कासन पत्र सौंपने
वाले यूपी में सपा प्रमुख शिवपाल यादव के लिए प्रो. रामगोपाल यादव की
वापसी को एक करारा झटका माना जा रहा है।
18Nov-2016
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