रविवार, 7 जुलाई 2019

रेड कॉरिडोर पर भारी पड़ने लगा बुनियादी विकास!

पिछले पांच साल नक्सली हिंसा में 43 फीसदी की कमी आने का दावा
2018 में 60 जिलों में हुई नक्सली हमले में 240 सुरक्षाकर्मी व लोगों की मौत
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।  
मोदी सरकार की नक्सलवाद जैसी आंतरिक सुरक्षा की चुनौती से निपटने के लिए बिछाई गई सुरक्षा और विकास की बिसात के कारण रेड कॉरिडोर का दायरा तेजी से घटने लगा है। वहीं पिछले पांच साल में नक्सली घटनाओं में भी तेजी से कमी आने का दावा किया गया है। मसलन सरकार की बुनियादी विकास जैसी योजनाओं के कारण नक्सली घटनाओं और हमले में हो रही मौतों में बेहताशा कमी आई है।
गृह मंत्रालय के अनुसार पिछले पांच साल यानि 2014-18 में दस राज्यों में 4969 नक्सली घटनाएं हुई है, जबकि वर्ष 2009-13 यानि पांच साल में हुई 8782 घटनाओं के मुकाबले 43.4 फीसदी की कमी आई है। यूपीए शासन काल के दौरान इन राज्यों की नक्सली हिंसा में 973 सुरक्षा बलों के जवानों समेत 3336 लोगों की मौतें हुई थी और 665 नक्सली मारे गये थे। जबकि वर्ष 2014-18 यानि राजग शासनकाल के पांच साल में हुई घटनाओं में 354 सुरक्षा बलों के जवानों समेत 1321 मौतें हुई और 735 नक्सलवादियों को मौते के घाट उतारा गया। मंत्रालय के अनुसार यूपीए के शासनकाल में शहीद हुए जवानों में 693.06 फीसदी और नागिरकों की मौतों में 59.10 फीसद कमी आई। वहीं इसकी तुलना में पिछले पांच साल में 10.5 फीसदी ज्यादा नक्सलवादी और उग्रवादियों को मौते के घाट उतारा गया है। यदि पिछले पांच साल में नक्सलवाद की स्थिति पर गौर करें तो लगातार घटनाओं में कमी के साथ सुरक्षा बलों व नागरिकों की मौतों में हर साल उतार चढ़ाव रहा है, जबकि वामपंथी उग्रवादियों की मौतों में 2017 को छोड़कर लगातार इजाफा हुआ है।
छत्तीसगढ़ में भी मिले योनजाओं के नतीजे
गृह मंत्रालय के अनुसार पिछले पांच साल के दौरान नक्सलप्रभावित दस राज्यों में सबसे ज्यादा नक्सल प्रभावित छत्तीसगढ़ राज्य में सररकार की योजनाओं और रणनीतियों का सकारात्मक असर देखा गया है। जहां वर्ष 2015 में 466 घटनाएं हुई थी, जिसमें सुरक्षाकर्मियों समेत 101 मौते हुई थी। वहीं 2018 में 392 घटनाएं हुई, जिसमें सर्वाधिक 153 मौते हुई और वर्ष 2019 में मई माह तक 129 घटनाओं में 36 मौते हो चुकी हैं। इस राज्य में वर्ष वर्ष 2016 में 395 घटनाओं में 107 और 2017 में 373 घटनाओं में 130 मौते हुई हैं। छत्तीसगढ़ के बाद झारखंड में 2015 के दौरान 310 नक्सली घटनाओं के बाद लगातार कमी दर्ज की गई है और 2018 में 205 के बाद इस साल पहले पांच माह में 70 घटनाएं सामने आई हैं। मंत्रालय का दावा है कि पिछले पांच सालों में नक्सलवाद प्रभावित सूची में शामिल पश्चिम बंगाल में वर्ष 2015 में 1089 और वर्ष 2017 में घटकर 908 घटनाओं के बाद कोई नक्सली घटना नहीं हुई है। जबकि एक दशक पहले वर्ष 2009 में 2258 नक्सली घटनाओं में सुरक्षाकर्मियों समेत 908 लोगों और वर्ष 2010 में हुई 2213 घटनाओं में सर्वाधिक 1005 मौते हुई थी।
सिकुड सकती है एसआरई योजना सूची
मोदी सरकार ने देश में उग्रवाद और नक्सलवाद को आंतरिक सुरक्षा के लिए चुनौती के रूप में लेते हुए जिस प्रकार की रणनीति तैयार करके सुरक्षा, विकास, स्थानीय समुदायों के हकों के लिए जिस प्रकार की योजनाएं लागू की है, उसमें नक्सल प्रभावित दस राज्यों के 126 जिलों को सुरक्षा संबन्धी खर्च यानि एसआरई योजना वाली सूची में शामिल करते हुए इन योजनाओं को लागू किया था, जिसके बाद आकलन के बाद 44 जिलों को इस सूची से बाहर करके 90 जिलों के लिए एसआरई योजना को अंजाम देना शुरू किया। इस संबन्ध में गृह मंत्रालय के अनुसार पिछले साल यानि वर्ष 2018 के दौरान केवल 60 जिलों में ही नक्सली घटनाएं हुई। मंत्रालय ने संकेत दिये हैं अब आकलन के बाद सरकार की सुरक्षा संबन्धी खर्च यानि एसआरई योजना वाली सूची से और जिलों को बाहर किया जा सकता है।
पिछले साल झारखंड में सर्वाधिक घटनाएं
मंत्रालय के अनुसार वर्ष 2018 के दौरान सुरक्षा संबन्धी खर्च यानि एसआरई योजना वाली सूची वाले 10 राज्यों के अत्यधिक नक्सल प्रभावित 90 जिलों में  से आठ राज्यों के 60 जिलों में नक्सलवादी घटनाएं हुई, जिनमें सर्वाधिक 18 जिले झारखंड के शामिल है, जबकि छत्तीसगढ़ और ओडिशा के 12-12 जिलों में नक्सलवादी हिंसाएं हुई। इसके अलावा बिहार के 10, आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और तेलंगाना के दो-दो जिलों में नक्सली घटनाएं हुई।
07July-2019

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