हिंदी
भाषा की बाध्यता को लेकर खड़ा हुआ विवाद
राज्यसभा
में सदन को दी केंद्र सरकार ने जानकारी
हरिभूमि ब्यूरो. नई दिल्ली।
देश
में शिक्षा की गुणवत्ता और उसमें बेहतर सुधार के लिए प्रस्तावित नई शिक्षा नीति
में हिंदी की बाध्यता को नकारते हुए केंद्र सरकार ने कहा कि इसके लिए सभी पक्षों
के सुझाव के लिए गठित समिति की रिपोर्ट आने के बाद ही मसौदे को अंतिम रूप दिया
जाएगा।
राज्यसभा
में गुरुवार को प्रश्नकाल के दौरान यह जानकारी केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश
पोखरियाल ‘निशंक’ ने सांसदों द्वारा उठाए गये सवालों के जवाब में दी। नई शिक्षा नीति
के मसौदे के बारे में सांसद टी.जी. वेंकटेश द्वारा पूछे गये इस सवाल कि क्या सरकार
नई शिक्षा नीति के मसौदे में हिन्दी को तीसरी भाषा के रूप में शामिल कर हिन्दी भाषा
सीखने के लिए बाध्य करने पर विचार कर रही है? के जबाब में निशंक ने कहा सरकार सभी भारतीय
भाषाओं के समान विकास और संवर्धन के लिए प्रतिबद्ध है, लेकिन किसी भी राज्य में किसी
भी भाषा को जबरन नहीं थोंपा जाएगा। उन्होंने कहा कि सरकार ने सभी पक्षों के सुझाव
लेने के लिए नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति का मसौदे को डॉ. के कस्तूरीरंगन की अध्यक्षता
में गठित समिति के सुपुर्द कर दिया,जिसे सभी पक्षों के सुझाव लेने के लिए एक माह
का अतिरिक्त समय दिया गया है। उन्होंने कहा कि सभी सुझावों के अध्ययन के बाद ही
मसौदे को अंतिम रूप दिया जाएगा।
पांच साल में बढ़ी बच्चों की
संख्या
उच्च
सदन में सभी को नि:शुल्क एवं अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार कानून के तहत निजी स्कूलों
में आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) के लिये आरक्षित 25 प्रतिशत सीटों के
बारे में सांसद नारायण लाल पंचारिया के एक सवाल के जवाब में केंद्रीय मंत्री निशंक
ने जानकारी दी कि पिछले पांच साल में आरक्षित सीटों पर इस कानून के तहत दाखिला पाने
वाले बच्चों की संख्या 18 लाख से बढ़कर 41 लाख तक पहुंची है। उन्होंने कहा कि
मंत्रालय ने वर्ष 2018-19 से समग्र शिक्षा-एकीकृत स्कूंल शिक्षा योजना शुरू की है,
जिसमें तत्कालीन केंद्रीय प्रायोजित योजनाओं सर्व शिक्षा अभियान, राष्ट्रीय माध्यिमिक
शिक्षा अभियान, और अध्यापक शिक्षा का समायोजन किया है। इसका मकसद समग्र शिक्षा के मुख्य
उद्देश्यों में गुणवत्तायुक्त शिक्षा का प्रावधान
करना और स्कू्ली शिक्षा में सामाजिक और महिला-पुरूष संबंधी अंतरों को कम करना, स्कूल
शिक्षा के सभी स्तरों पर समानता और समावेशिता को सुनिश्चित करना, स्कू्ल शिक्षा में
न्यूनतम मानकों को सुनिश्चितत करना, शिक्षा के व्यावसायीकरण को प्रोत्साहित करना
भी है। सरकार नि:शुल्क एवं अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम के कार्यान्वरयन
हेतु राज्यों की हरसंभव सहायता कर रही है।
सभी को समान स्कूली शिक्षा
मकसद
उन्होंने कहा कि केंद्रीय प्रायोजित योजनाओं के
एकीकृत करके इसमें समाज के कमजोर वर्ग के बच्चों समेत अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति
और अल्पसंख्यक समुदाय के बच्चों, प्रवास से प्रभावित शहरी वंचित बच्चों, बेघर तथा बेसहारा
बच्चों, वामपंथ चरमपंथ से प्रभावित बच्चों, हिंसा प्रभावित बच्चों के लिए शिक्षा के
सभी स्तरों पर समावेशी और समान स्कूली शिक्षा के लिए विशेष प्रावधान शामिल किये
गये हैं। इसी दिशा में शैक्षिक रूप से पिछड़े ब्लॉकों, वामपंथ चरमपंथ से प्रभावित जिलों,
विशेष फोकस वाले जिले और 115 आकांक्षी जिलों को विभिन्न अंत:क्षेपों हेतु प्राथमिकता
के दायरे में रखा गया है। 28June-2019
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