रविवार, 7 जनवरी 2018

बीते साल संसद मे बने बदलाव के कई इतिहास!


आम बजट की नई परंपरा जीएसटी कानून पर लगी मुहर
.पी. पाल. नई दिल्ली।
देश की व्यवस्था में बदलाव लाने के इरादे से बीते साल 2017 में केंद्र की मोदी सरकार ने पुरानी परंपराओं को खत्म करते हुए कई महत्वपूर्ण पहलों को भी अंजाम दिया, जिसमें आजाद भारत में जीएसटी कानून को लागू करना भी सुर्खियों में रहा। सरकार की संसद में की गई कई कानूनी पहलों के कारण भारत की विश्व में देश की साख बढ़ी है। यह बात दिगर है कि संसद में विपक्ष के गतिरोध के कारण सरकार कई महत्वपूर्ण मोर्चो पर प्राथमिकता के बावजूद आगे नहीं बढ़ सकी है।
संसद के इतिहास में बीते साल मोदी सरकार ने सबसे पहले बजट सत्र के समय में परिवर्तन करते अंग्रेजी हुकूमत की परंपरा को तोड़ते हुए आम बजट को एक फरवरी को पेश करने की नई परंपरा शुरू की है। यही नहीं अलग से पेश होने वाले रेल बजट को समाप्त करके उसे आम बजट में ही समायोजित करने की करीब नौ दशक पुरानी परंपरा को खत्म करके एक नई अनूठी पहल की शुरूआत हुई। खास बात यह रही कि बीते साल बजट सत्र में हीएक देश-एक करप्रणाली के तहत जीएसटी कानून पर संसद में मुहर लगी, जिसे 30जून/एक जुलाई की मध्य रात्रि में संसद के केंद्रीय कक्ष में तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने लागू करने की घोषणा घंटा बजाकर की गई जिसे आजाद भारत में एक नया संसदीय इतिहास का सूत्रपात माना गया। नतीजन अब मोदी सरकार को आगामी आम बजट की प्रक्रिया जीएसटी कानून के तहत बदली प्रक्रिया के तहत शुरू करनी होगी और अब अनुदान की अनुपूरक मांगें संसद से तीन माह के लिए पारित कराने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी, बल्कि नये वित्त वर्ष में बजट पारित होने से सरकारी योजना को धन राशि का आवंटन भी समय से हो सकेगा। बीते साल संसद के मानसून सत्र में दोनों सदनों में भारत छोड़ो आंदोलनकी 75वीं वर्षगांठ मनाने के लिए 09 अगस्त को दोनों सदनों में एक विशेष चर्चा कराई गई, जिसके बाद सभी राजनीतिक दलों की व्यापक सहमति से वर्ष-2022 तक नया भारतबनाने हेतुसंकल्प से सिद्धिका संकल्प संसदीय इतिहास में पहली बार लिया गया।
44 विधेयकों पर लगी संसद की मुहर
संसद के बजट सत्र-2017 के दौरान संसद के दोनों सदनों द्वारा 18 बिल पारित किए गए। इनमें सबसे महत्वपूर्ण विधेयक समान और सेवा कर (जीएसटी) रहा, जिससे संबन्धित तीन विधेयकों पर दोनों सदनों की मुहर लगी। जबकि संसद के मानसून सत्र में ऐसे 13 विधेयक रहे जिन पर दोनों सदनों की मुहर लगी। इसी प्रकार हाल ही में संपन्न हुए शीतकालीन सत्र में भी 13 विधेयकों पर संसद ने मुहर लगाई। हालांकि बीते साल संसद के तीनों सत्रों पर नजर डाली जाए तो लोकसभा में ज्यादा विधेयक पारित किये गये, जिनमें मोटरयान जैसे कई सारे महत्वपूर्ण विधेयक विपक्ष के अड़ंगे के कारण अभी तक उच्च सदन में अटके हुए हैं।
इन मोर्चो पर अटकी सरकार
संसद में हर साल तीन सत्र होते हैं, जिसमें हाल ही में संपन्न हुए शीतकालीन सत्र में सरकार की प्राथमिकता वाले तीन तलाक और ओबीसी आयोग जैसे कई महत्वपूर्ण विधेयकों पर सरकार विपक्ष के विरोध के सामने भंवरजाल में फंसती नजर आई है। तीन तलाक को अवैध करार देने वाले  मुस्लिम महिला (विवाह के अधिकारों का संरक्षण) विधेयकको लोकसभा में बहुमत के कारण पारित करा लिया गया, लेकिन राज्यसभा में कांग्रेस के बदले पैंतरे के साथ एक जुट हुए 17 विपक्षी दलों के विरोध पर इसे पारित नहीं करा सकी। इस सत्र में तीन तलाक और ओबीसी आयोग विधेयक सरकार की प्राथमिकता में थे, लेकिन ओबीसी आयोग को संवैधानिक दर्जा देने संबन्धी संशोधन विधेयक को तो बहुमत के बावजूद सरकार लोकसभा में भी पारित नहीं करा सकी। इसी प्रकार देश की परिवहन व्यवस्था को दुरस्त करने वाला नया मोटर वाहन (संशोधन) विधेयक भी राज्यसभा में अंजाम तक नहीं पहुंचाया जा सका।
बदले राष्ट्रपति उपराष्ट्रपति
संसद के मानसून सत्र के दौरान ही 25 जुलाई को रामनाथ कोविंद को भारत के तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश जे एस खेहर ने भारत के 14वें राष्ट्रपति के रूप में शपथ दिलवायी, तो 11 अगस्त को एम वेंकैया नायडू ने उपराष्ट्रपति के तौर पर शपथ ली। यह सत्र 17 जुलाई से 11 अगस्त तक चला था।
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 तीन तलाक पर अटकी मोदी सरकार 

ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान मोदी सरकार तीन तलाक को अवैध करार देने वाले विधेयक ‘मुस्लिम महिला (विवाह के अधिकारों का संरक्षण) विधेयक’ और राष्‍ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग विधेयक  तथा नए मोटर वाहन विधेयक को विपक्ष के विरोध के कारण पारित न करा पायी हो, लेकिन इसके बावजूद 13 दिन की बैठकों में दोनों सदनों में महत्‍वपूर्ण कामकाज के साथ 13 विधेयकों पर मुहर लगी है।
संसद सत्र के दौरान लोकसभा की उत्‍पादकता 91.58 प्रतिशत और राज्‍यसभा की उत्‍पादकता 56.29 प्रतिशत रही है और संसद के दोनों सदनों द्वारा 13 विधेयक पारित किये। सरकार की माने तो संसद का शीतकालीन सत्र परिचालित विधायी कार्य तथा राष्‍ट्रीय महत्‍व के विविध मुद्दों पर विचार-विमर्श में सभी राजनीतिक दलों की व्‍यापक भागीदारी के लिहाज से एक सफल सत्र रहा है। शीतकालीन सत्र के दौरान 2017-18 के लिए पूरक अनुदान मांगों तथा संबंधित विनियोग विधेयकों का दूसरा एवं तीसरा बैच पेश हुआ और चर्चा के बाद इन्हें पारित किया गया। 

इन विधेयकों पर अटकी सरकार  
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार तीन तलाक को अवैध करार करने के लिए कानून बनाने के लिए 22 फरवरी तक का समय है, जिसके अनुपालन की प्रतिबद्धता प्रकट करते हुए सरकार ने लोकसभा में ‘मुस्लिम महिला (विवाह के अधिकारों का संरक्षण) विधेयक’ पेश कर उसे चर्चा के बाद पारित कराया, जहां कांग्रेस ने भी समर्थन किया, लेकिन इस विधेयक को राज्यसभा में पेश करने के बावजूद कांग्रेस के बदले पैंतरे के साथ इस विधेयक के विरोध में 17 दलों ने इसके प्रावधानों में खामिया बताते हुए इस विधेयक को प्रवर समिति के पास भेजने की जिद पकड़े रखी और राज्यसभा में सरकार के अल्पमत में होने के कारण इस विधेयक पर मुहर नहीं लग सकी है। अब इस विधेयक को सुप्रीम कोर्ट की डेड  लाइन से पहले बजट सत्र में पारित कराने का प्रयास होगा या फिर सरकार इस विधेयक पर अध्यादेश का सहारा लेकर कानून लागू करेगी। इसके अलावा केंद्र सरकार इस सत्र में नए सडक सुरक्षा कानून के तहत मोटर वाहन (संशोधन) विधेयक को भी प्रवर समिति की रिपोर्ट के बावजूद राज्यसभा में पेश नहीं कर सकी। इनके अलावा सरकार को
तीन अध्यादेश विधेयकों में बदले
संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान तीन अध्यादेशों को विधेयकों में बदलते हुए उन्हें पारित कराया गया। इनमें माल और सेवा कर (राज्यों के लिए मुआवजे) संशोधन अध्यादेश, भारतीय वन (संशोधन) अध्यादेश, और दिवाला और दिवालियापन संहिता (संशोधन) अध्यादेश शामिल हैं। केन्द्रीय सामान और सेवा कर नामक अध्‍यादेश की जगह लेने वाला (राज्यों के लिए मुआवजा) केवल एक विधेयक राज्यसभा में पेश नहीं किया जा सका, लेकिन धन विधेयक के कारण इसे दोनों सदनों से पारित मान लिया गया है। इनके अलावा लोकसभा में पेश किये गये दंत चिकित्सक (संशोधन) विधेयक, ग्रैच्युटी का भुगतान (संशोधन) विधेयक, जन प्रतिनिधित्व (संशोधन) विधेयक, विशेष राहत (संशोधन) विधेयक, राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग विधेयक, पराक्रम्य लिखत (संशोधन) विधेयक और उपभोक्ता संरक्षण विधेयक भी इस सत्र में अटके रह गये हैं।
लोक सभा पेश किए गए 17 विधेयक
संसद के शीतकालीन सत्र में लोकसभा में कुल सत्रह विधेयक पेश किये गये, जिनमें राष्ट्रीय शिक्षक शिक्षा परिषद (संशोधन) विधेयक, ग्रैच्युटी का भुगतान (संशोधन) विधेयक, दंत चिकित्सक (संशोधन) विधेयक, भारतीय वन (संशोधन) विधेयक, जन प्रतिनिधित्व (संशोधन) विधेयक, उच्च न्यायालय और सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश (वेतन और सेवा की शर्त) संशोधन विधेयक,    विशेष राहत (संशोधन) विधेयक,  केन्द्रीय वस्तु और सेवा कर (राज्यों को मुआवजा) विधेयक, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली कानून (विशेष प्रावधान) दूसरा (संशोधन) विधेयक, मुस्लिम महिला (विवाह के अधिकारों का संरक्षण) विधेयक, दिवाला और दिवालियापन संहिता (संशोधन) विधेयक, विनियोग (नं. 5) विधेयक, राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग विधेयक, पराक्रम्य लिखत (संशोधन) विधेयक, उपभोक्ता संरक्षण विधेयक, नई दिल्ली अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता केंद्र विधेयक, विनियोग (नं. 5) विधेयक और  विनियोग विधेयक शामिल है।   
लोकसभा में पास हुए विधेयक
संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान लोक सभा में 17 विधेयक पेश किये गये, जिनमें से 13 विधेयकों को पारित किया गया, इनमें तीन तलाक को अवैध करने वाले    मुस्लिम महिला (विवाह के अधिकारों का संरक्षण) विधेयक के अलावा केंद्रीय सड़क निधि (संशोधन) विधेयक, भारतीय वन (संशोधन) विधेयक, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली कानून (विशेष प्रावधान) दूसरा (संशोधन) विधेयक, स्थाई सम्पत्ति अधिग्रहण (संशोधन) विधेयक, दिवाला और दिवालियापन संहिता (संशोधन) विधेयक, उच्च न्यायालय और सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश (वेतन और सेवा की शर्त) संशोधन विधेयक, केन्द्रीय वस्तु और सेवा कर (राज्यों को मुआवजा) विधेयक, निरस्त और संशोधन विधेयक, निरस्त और संशोधन विधेयक (दूसरा) विधेयक, प्राचीन स्मारक और पुरातत्व स्थलों और अवशेष (संशोधन) विधेयक, विनियोग (नं. 5) विधेयक-2017 और विनियोग विधेयक-2018 शामिल हैं।
राज्य सभा द्वारा पारित विधेयक
उच्च सदन में सरकार के प्रयासों के बावजूद विपक्ष के विरोध के कारण वाले तीन तलाक को अवैध करार देने  वाले ‘मुस्लिम महिला (विवाह के अधिकारों का संरक्षण) विधेयक’ भले ही लटक गया हो, लेकिन राज्यसभा में हंगामें के बावजूद नौ विधेयक पारित किये गये। राज्यसभा में पारित किये गये विधेयकों में भारतीय पेट्रोलियम और ऊर्जा संस्थान (आईआईपीई) विधेयक, दिवाला और दिवालियापन संहिता (संशोधन) विधेयक, राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (संशोधन) विधेयक, भारतीय वन (संशोधन) विधेयक, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट विधेयक, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली कानून (विशेष प्रावधान) दूसरा (संशोधन) विधेयक, निरस्त और संशोधन विधेयक, निरस्त और संशोधन विधेयक (दूसरा) विधेयक और कंपनी (संशोधन) विधेयक शामिल रहे।
दोनों सदनों में पारित विधेयक
संसद के शीतकालीन सत्र में ऐसे विधेयक जिन्हें दोनों सदनों में पारित किया गया। इनमें कंपनी (संशोधन) विधेयक, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट विधेयक, भारतीय वन (संशोधन) विधेयक, भारतीय पेट्रोलियम और ऊर्जा संस्थान (आईआईपीई) विधेयक, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली कानून (विशेष प्रावधान) दूसरा (संशोधन) विधेयक, निरस्त और संशोधन विधेयक, निरस्त और संशोधन विधेयक (दूसरा) विधेयक, दिवाला और दिवालियापन संहिता (संशोधन) विधेयक, राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (संशोधन) विधेयक, कंपनी (संशोधन) विधेयक शामिल हैं। इसके अलावा लोकसभा में पारित उच्च न्यायालय और सुप्रीम कोर्ट न्यायाधीश (संशोधन और सेवा की शर्तें) संशोधन विधेयक, केंद्रीय वस्तु और सेवा कर (राज्यों को मुआवजा) विधेयक, विनियोग (नं. 5) विधेयक तथा विनियोग विधेयक धन विधेयकों के रूप में पारित किये गये हैं, जिसके कारण इनकी सूचना उच्च सदन को देते हुए इन्हें सदन के पटल पर रखा गया और नियम के अनुसार धन विधेयकों किसी एक सदन से पारित करके दोनों सदनों की मंजूरी मान लिया जाता है। इस सत्र के दौरान उपभोक्ता संरक्षण विधेयक को वापस लिया गया जिसके स्थान पर लोकसभा में नया विधेयक पेश कर दिया गया है।
07Jan-2018

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