शनिवार, 6 जनवरी 2018

राज्यसभा में फिर उठा महाराष्ट्र हिंसा का मुद्दा




समूचे सदन ने की घटना की निंदा, विपक्ष ने की उच्च स्तरीय जांच की मांग
हरिभूमि ब्यूरो. नई दिल्ली।
राज्यसभा में महाराष्ट्र की हिंसा के मुद्दे पर सियासी घमासान हुआ, जहां सत्ता पक्ष समेत विभिन्न दलों ने महाराष्ट्र में हिंसा की घटना की एक स्वर में निंदा की। वहीं कुछ विपक्षी दलों ने इस मामले की उच्चतम न्यायालय के किसी न्यायाधीश से जांच कराने की मांग की है।
उच्च सदन की गुरुवार को बैठक शुरू होने पर आवश्यक दस्तावेज सदन के पटल पर रखवाने के बाद शून्यकाल में उठाए गये इस मुद्दे पर सभापति एम. वेंकैया नायडू ने सदस्यों को अपनी बात कहने की अनुमति दी। कांग्रेस की सांसद रजनी पाटिल ने महाराराष्ट्र के भीमा-कोरेगांव गांव की घटना का जिक्र करते हुए कहा कि 200 साल पहले महार रेजिमेंट ने पेशवाओं को हराया था और उसकी याद में हर साल समारोह मनाया जाता है। उन्होंने आरोप लगाया कि राज्य सरकार ने कार्यक्रम की जानकारी होने के बाद भी सुरक्षा के लिए कोई भी उपाय नहीं किया। जबकि राकांपा नेता तथा महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री शरद पवार ने कहा कि वहां का एक इतिहास रहा है और वहां पिछले 50 साल से ऐसी कोई घटना नहीं हुई। उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र सरकार ने इस घटना के संबंध में मामला दर्ज किया है और न्यायिक जांच की भी घोषणा की है। शिवसेना के संजय राउत ने कहा कि इस पूरे मामले में महाराष्ट्र सरकार की भूमिका संयमित रही और उसकी भूमिका सही रही है, वरना स्थिति और बिगड़ सकती थी। उन्होंने कहा कि घटना के लिए हिन्दूवादी संगठनों पर आरोप लगाना उचित नहीं है। केंद्रीय मंत्री रामदास अठावले ने इस घटना की निंदा करते हुए कहा कि इस मामले को अलग चश्मे से नहीं देखना चाहिए। किसी भी पार्टी की सरकार हो, वह नहीं कहती कि अत्याचार हो। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार ने न्यायिक जांच की घोषणा की है और सरकार सख्त कार्रवाई करेगी। भाजपा के अमर शंकर सांवले ने कहा कि इस घटना के संबंध में भडकाऊ भाषण दिए गए जिससे महाराष्ट्र का माहौल बिगड़ा। भाजपा के ही संभाजी छत्रपति ने दो समुदायों के बीच तनाव को बेहद दुखद बताया। वहीं सपा के नरेश अग्रवाल ने इस घटना के लिए राज्य सरकार को जिम्मेदार ठहराया। अन्नाद्रमुक के नवनीत कृष्णन व तृणमूल कांग्रेस के नदीमुल हक ने इसे गंभीर मुद्दा बताते हुए घटना की जांच के लिए एक आयोग गठित करने तथा दोषी लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई किए जाने की मांग की। बीजद के दिलीप तिर्की, बसपा के वीर सिंह, द्रमुक की कनिमोझी, शिरोमणि अकाली दल के बलविंदर सिंह भुंडर आदि सदस्यों ने इस घटना की उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश से जांच कराने की मांग की है।
जब आनंद में बदली नोंक-झोंक
राज्यसभा में प्रश्नकाल के दौरान सवाल पूछने का लेकर गुरुवार को सभापति एम. वेंकैया नायडू और सदन में कांग्रेस के उपनेता आनंद शर्मा के बीच तीखी नोक-झोंक हुई, लेकिन सभापति के अंदाज के बाद यह नोंक-झोंक आनंद में बदलती नजर आई। दरअसल प्रश्नकाल के दौरान बसपा सांसद सतीश चंद्र मिश्रा ने दिल्ली में चार दृष्टिहीन छात्रों का आवास तोड़े जाने के संबंध में सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता राज्य मंत्री कृष्णपाल गुर्जर से पूरक प्रश्न पूछा तो उन्होंने कहा कि उन्हें इसकी जानकारी नहीं है। लेकिन सदन में मौजूद आवास एवं शहरी कार्य मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने इसकी जानकारी दी और कहा कि इन छात्रों की आड़ में कुछ लोग सरकारी जमीन पर कब्जा जमाए हुए थे, जिसे हटाया गया है और जल्द ही छात्रों को आवास उपलब्ध करा दिये जाएंगे। इस पर कांग्रेस के उप नेता आनंद शर्मा भी खड़े हुए और बिना अनुमति के बोलने लगे तो उन्होंने उनकी बात रिकार्ड न करने के निर्देश दिये, जिससे आनंद शर्मा नाराज हो गये। इस पर आनंद शर्मा व सभापति नायडू के बीच नोंक-झोंक शुरू हुई तो नायडू ने अपने ही अंदाज में उन्हें समझाया कि इस तरह से सवाल पूछने की व्यवस्था नहीं है तथा पीठासीन अधिकारी लिए टिप्पणी करना ठीक नहीं है। नायडू ने माहौल हल्का करने की कोशिश करते हुए शर्मा से कहा कि आपका नाम तो‘आनंद’है, इसलिए सदन में भी ‘आनंद’ होना चाहिए। इस पर सदन में हंसी के ठहाके लगने शुरू हो गये।  गौरतलब है की राज्यसभा में सभापति सदन की बैठक के दौरान अनुशासन कायम करने की दिशा में नियमों, प्रावधानों और परंपराओं का कड़ाई से पालन कराने का प्रयास कर रहे हैं।
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राज्यसभा में लटक सकता है तीन तलाक बिल
गुरूवार को भारी शोर शराबे के बाद कार्यवाही स्थगित
हरिभूमि ब्यूरो. नई दिल्ली। 
राज्यसभा में तीन तलाक बिल पर बहस के दौरान कांग्रेस इसे प्रवर समिति में भेजने पर अड़ी रही और भारी शोर शराबे के बाद सदन की कार्यवाही शुक्रवार तक स्थगित कर दी गई। उच्च सदन में पांच बजे बाद जैसे ही अल्पकालिक चर्चा के बाद तीन तलाक पर बहस करने का ऐलान किया तो इसे प्रवर समिति के पास भेजने पर अड़ी कांग्रेस पार्टी और अन्य दलों ने शोर शराबा कर हंगामा शुरू कर दिया और आज भी इस पर चर्चा अटक गई।
राज्यसभा में दोपहर बाद दो बजे की कार्यवाही के दौरान भी तीन तलाक पर हंगामे के बाद देष में अर्थव्यवस्था, निवेश का माहौला और नौकरी सृजन की स्थिति और बढ़ती हुई बेरोजगारी की चुनौती का समाधान करने की आवश्यकता पर हुई अल्पकालिक चर्चा का जवाब वित्तमंत्री अरुण जेटली ने दिया। कार्यसूची के तहत इसके बाद बुधवार को पेश किये गये तीन तलाक विधेयक पर चर्चा कराने का ऐलान किया गया, लेकिन राज्यसभा में इस दौरान यह सवाल उठाते हुए पूछा कि अगर पति जेल के अंदर होगा तो फिर परिवार का भरण पोषण कौन करेगा। कांग्रेस ने कहा कि हम बिल के साथ हैं लेकिन जेल के खिलाफ हैं। सदन में इस भारी शराबे के बाद राज्यसभा को शुक्रवार तक के लिए स्थगित कर दिया गया है। गौरतलब है कि लोकसभा में यह बिल पास हो चुका है, तब प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस भी सरकार का साथ दिया, लेकिन राज्यसभा में इस विधेयक के आते ही कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने अपना पैंतरा बदलते हुए इसे सदन की प्रवर समिति को भेजने की जिद पकड़ ली है। विपक्ष इस विधेयक में तमाम खामियां बताते हुए इसे प्रवर समिति को भेजने पर अडिग है। जबकि सरकार तीन तलाक को अवैध करार देने वाले इस विधेयक को किसी भी हालत पर संसद से पारित कराना चाहती है। अब सरकार के पास केवल शुक्रवार को संसद सत्र का अंतिम दिन बचा हुआ है और ऐसी संभावना है कि सरकार और विपक्ष के बीच इस विधेयक के बीच इस तकरार के चलते यह विधेयक संसद में अटका रह सकता है। क्योंकि संसद का शीतकालीन सत्र 5 जनवरी शुक्रवार को समाप्त हो रहा है। उससे पहले सरकार को जरूरी जीएसटी संशोधन बिल भी पास कराना है, जो लोकसभा में पास हो चुका है।

सरकार की उम्मीदों पर फिरा पानी
इससे पहले उम्मीद जताई जा रही थी कि उच्च सदन में गुरुवार को साढ़े चार बजे बाद तीन तलाक विधेयक पर चर्चा शुरू हो जाएगी और यह भी संभावना थी कि सदन में तीन तलाक पर विपक्ष की सहमति नहीं बनने पर केंद्र सरकार इस विधेयक को समीक्षा के लिए प्रवर समिति को भेज सकती है, ताकि सुप्रीम कोर्ट के छह माह के भीतर कानून बनाने के आदेश के तहत इसी माह के अंत में शुरू होने वाले संसद के बजट सत्र में इसे पारित करा लिया जाएगा। विपक्ष के अपने रूख पर अडिग होने के मद्देनजर अब ऐसी संभावनाएं प्रबल होती नजर आ रही है और कल शुक्रवार को अंतिम दिन सरकार एक ओर प्रयास कर सकती है, वरना यह विधेयक संसद के बजट सत्र तक अटके रहेने की संभावनाओं से इंकार नहीं किया जा सकता। इ
क्या है प्रवर समिति
संसद अपने कामकाज निपटाने के लिए कई तरह की समितियों का गठन करती है। संसदीय समितियां दो तरह की होती हैं, प्रवर और स्थायी। प्रवर समिति का गठन किसी खास मामले या उद्देश्य के लिए किया जाता है। रिपोर्ट सदन में प्रस्तुत कर दिए जाने के बाद उसका अस्तित्व समाप्त हो जाता है। स्थायी समिति का काम निश्चित होता है। दरअसल उच्च सदन में सत्तापक्ष के पास पर्याप्त आंकडा नहीं है, जिसमें इस विधेयक को पारित कराने के लिए सरकार को कम से कम तीन दर्जन सदस्यों के समर्थन की जरूरत है। 245 सदस्य उच्च सदन में फिलहाल 238 सदस्य हैं, जिनमें राजग के पास केवल 88 सदस्य हैं, जबकि कांग्रेस समेत 17 विपक्षी दल इस विधेयक को प्रवर समिति को भेजने के लिए सभापति को लिखित में मांग पत्र सौंप चुके हैं।
क्या राज्यसभा में दलगत स्थिति
राज्यसभा में 12 मनोनीत व 6 निर्दलीयों के अलावा कुल 28 दलों के 245 सदस्य हैं, जिनमें भाजपा के 57, कांग्रेस के 57 के अलावा सपा के 18, अन्नाद्रमुक के 13, तृणमूल कांग्रेस के 12, बीजद के 8 सीपीएम व जदयू के 7-7, तेदपा के 6, एनसीपी व बसपा के 5-5, द्रमुक के 4, अकाली दल, शिवसेना,  टीआरएस व राजद के 3-3, पीडीपी के दो, सीपीआई, इनोलो, आरपीआई, एसडीएफ, बीपीएफ, एनपीएफ, केरला कांग्रेस, मुस्लिम लीग, जद-एस, झामुमो व वाईएसआर का एक-एक सदस्य है। मनोनीत सदस्यों में हालांकि सात राजग सरकार के कार्यकाल में नामनिर्देशित किये गये हैं।  
05Jan-2018


 


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