रविवार, 3 जून 2018

राग दरबार: संसदीय मर्यादा का सवाल

संसदीय मर्यादा का सवाल
संसद में पिछले कुछ सत्रों के दौरान मोदी सरकार के खिलाफ विपक्षी दलों की विभिन्न मुद्दों को लेकर लामबंदी के बीच अधिकांश कामकाज ठप रहा और सरकार देश व जनहित के महत्वपूर्ण कामकाज को आगे नहीं बढ़ा सकी। संसद सत्र के दौरान विभिन्न दलों के सदस्यों के संसद की कार्यवाही को बाधित करने की सभी सीमाएं लांघने की तेज हुई परंपरा के तिस्मिल को तोड़ने के मकसद से राज्यसभा के सभापति एम. वेंकैया नायडू ने कवायद तेज कर दी है, ताकि संसदीय मर्यादा कायम रखी जा सके। राज्यसभा सचिवालय के उच्चपदस्त सूत्रों की माने तो सभापति नायडू ने राज्यसभा की प्रक्रियाओं से संबंधित नियमों तथा कार्यवाहियों की समीक्षा के लिए एक समिति का गठन किया है जिसकी रिपोर्ट जल्द आने वाली है। इस रिपोर्ट में आने वाली सिफारिशों पर ऐसे सख्त नियमों का संसद सदस्यों को सामना करना पड़ सकता है, जिसमें उच्च सदन की कार्यवाही को बिना वजह बाधित करना महंगा पड़ सकता है और इन सिफारिशों में काम नहीं तो वेतन-भत्ता नहीं जैसे नियमों को सख्ती से लागू किया जा सकता है। संसद में कार्यवाही बाधित होने जैसे विषय पर कांग्रेस के राज्यसभा सांसद अभिषेक मनु सिंघवी द्वारा लिखी गई पुस्तक ‘स्ट्रेट टॉक’ में भी ऐसा सुझाव दिया है कि सदन में व्यवधान होने की स्थिति में सदस्यों के भत्ते प्रतिदिन प्रति घण्टे के हिसाब से स्वत: रद्द होने चाहिए। दिलचस्प बात है कि सिंघवी की इस पुस्तक का विमोचन उपराष्ट्रपति नायडू ने ही किया, जिसमें उन्होंने भारतीय संसदीय लोकतंत्र में राजनैतिक दलों को महत्वपूर्ण भूमिका निभाने की नसीहत दी और अपना मत दिया कि सभी राजनीतिक गतिविधियों का एकमात्र उद्देश्य राजनीति नहीं होनी चाहिए, बल्कि नये और बेहतर भारत के निर्माण के लिए आवश्यक परिवर्तनों का माध्यम बनना चाहिए। इस पुस्तक में ‘कम विभेद और अधिक तालमेल’ पर आधारित नये राजनीतिक दृष्टिकोण अपनाने और संसद तथा विधान सभाओं में अर्थपूर्ण बहस का समर्थन किया गया है। समिति का मकसद यही है कि संसदीय मर्यादा और गरिमा पर सवाल न खड़े हो पाएं और देश व जनहित के मुद्दों पर सार्थक चर्चा हो सके।
कर्नाटक सरकार का झोल
देश की राजनीति में न दोस्ती और न दुश्मनी कोई मायने नहीं रखती। इसका अंदाजा हाल ही में हुए कर्नाटक चुनावों व उपचुनावों में भाजपा के खिलाफ कट्टर से कट्टर प्रतिद्वंद्वी दलों के गठजोड़ से जाहिर हो गया है। हालांकि यह गठजोड़ उपचुनावों में सफल नजर आया है, लेकिन कर्नाटक में सबसे बड़े दल के रूप में आई भाजपा को सरकार बनाने से रोकने के लिए तमाम विपक्षी दल एकजुट नजर आए, हालांकि सरकार में जदएस व कांग्रेस को जिस प्रकार भाजपा की रणनीति को तोड़ने के लिए उतार-चढ़ाव का सामना करना पड़ रहा है, उससे नहीं लगता कि कर्नाटक में जेडीएस-कांग्रेस गठबंधन की सरकार अपना पूरा कार्यकाल पूरा करेगी? ऐसा राजनीतिकार भी मानकर चल रहे हैं कि जिस प्रकार कर्नाटक मंत्रिमंडल के गठन को लेकर इन दोनों दलों में तकरार और असमंजस की स्थिति नजर आ रही है उसे देखते हुए कुमारस्वामी सरकार को अपने प्रतिद्वंदी दल को भी कमजोर नहीं समझना चाहिए। मसलन भाजपा जदएस-कांग्रेस की कमजोर कड़ी को तोड़ने की रणनीति बना सकती है, जिसके लिए बदलते सियासी माहौल में हर दल स्वतंत्र है। सोशल मीडिया पर भी कर्नाटक चुनाव के बाद भाजपा के खिलाफ जिस प्रकार से तमाम विपक्षी दल एक मंच पर श्रृंखला बनाते दिखे कि सभी भाजपा व पीएम मोदी फोबिया के शिकार हैं और इस भय से वे अलग-थलग चलने से बचने का प्रयास कर रहे हैं। 
फायरब्रांड का बदला स्वरूप
भारतीय राजनीतिक दलों की सियासत में कुछ नेताओं के ब्रांड होना आम बात है। सत्ताधारी भाजपा में सुश्री उमा भारती फायर ब्रांड महिला नेता के रूप में मानी जाती रही हैं, लेकिन जब केंद्र की सत्ता में आई मोदी सरकार ने केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय का कार्यभार सौंपा तो उनके इस स्वरूप में बदलाव आता नजर आया, इसके लिए कई बार वह खुद भी स्वीकारती नजर आई कि पीएम मोदी ने उन्हें जल के मुद्दे से जोड़कर जल की तरह निर्मल बना दिया है। ऐसा भी नहीं है कि उमा के स्वभाव में आए इस बदलाव के बाद यह कहना भी ठीक नहीं होगा कि भाजपा में अब कोई फायरब्रांड महिला नहीं है। भाजपा में शायद उनके स्वरूप को केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने अपना लिया है, जिन्हें कई बार संसद सत्रों के दौरान विपक्ष पर फायर होते भी देखा गया है और आजकल भाजपा में ईरानी को फायरब्रांड महिला के रूप में देखा जा रहा है, जिनके सूचना एवं प्रसारण मंत्री रहते हुए कई ऐसे ही फायर करने वाले आदेश भी सामने आए, भले ही पीएमओ स्तर से उन आदेशों पर ब्रेक ही नहीं लगा, बल्कि ऐसे आदेशों के कारण उन्हें इस मंत्रालय से अलग भी करना पड़ा। सियासी गलियारों में भी अब भाजपा में स्मृति ईरानी को ही फायर ब्रांड महिला नेता के रूप में देखा जा रहा है।
और अंत में
केंद्र की मोदी सरकार ने देश की व्यवस्था बदलने के लिए कालेधन और बेनामी संपत्ति तथा विभिन्न करों की चोरी पर अंकुश लगाने के लिए कानूनों में संशोधन करके सख्त प्रावधान करने के अलावा ऐसी गतिविधियों में शामिल लोगों तक पहुंचने के लिए योजना बनाई है। हाल ही में नई योजना के तहत आम जनता के के जरिए कालेधन, बेनामी संपत्ति रखने और करों की चोरी करने वालों तक पहुंचने के मकसद इस योजना में ईनामी राशि देने का ऐलान किया है, जिसमें सरकार को ऐसे लोगों पर शिकंजा कसने में मदद मिलना तय है।
-हरिभूमि ब्यूरो
03June-2018

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