सोमवार, 18 जून 2018

राग दरबार:लोकसभा चुनाव-2019 में एकजुटता

सवाल-जवाब की सियासत
देश में आगामी 2019 के लोकसभा चुनाव की तैयारियों में जुटे तमाम राजनीतिक दलों ने अपनी रणनीतियों का तानाबाना बुनना शुरू कर दिया है। इस तैयारी में विपक्षी दलों ने एकजुटता की रणनीति के जिरए भाजपा के मिथक को तोड़ने के लिए मोदी सरकार की आलोचना और मोदी सरकार की चार साल की योजनाओं पर सवाल खड़े करने की सियासत तेज कर दी है, लेकिन विपक्ष की इस रणनीति के तोड़ में भाजपा ने मोदी सरकार की चार साल की उपलब्धियों और दनादन इस अंतिम साल की योजनाओं का पिटारा खोलकर इस चुनौती का मुकाबला करने की रणनीति को अंजाम देना शुरू कर दिया है। मोदी सरकार के चार साल की उपलब्धियों का बखान करने के लिए हरेक मंत्रालय की विपक्षी रणनीति पर वार करने के इरादे से सरकार की योजनाओं से लाभार्थियों से डिजीटल प्रणाली के जरिए रूबरू होकर काम करने की दिशा को बदलना शुरू कर दिया है। वहीं सत्तारूढ़ दल भारतीय जनता पार्टी और उसकी रणनीति में साझीदार आरएसएस भी सक्रिय हो गया है। सियासी गलियारों और सोशल मीडिया पर राजग और विपक्ष की इस सियासी स्पर्धा में जिस प्रकार की टिप्पणियां सामने आ रही है, इसमें फर्क इतना ही है कि विपक्ष खासकर कांग्रेसनीत यूपीए अपनी उपलब्धियों के सवालों के जवाब देने में राजग का नेतृत्व करने वाली भाजपा के तर्को और जवाबों से कहीं तक भी मुकाबले में नजर नहीं आती। ऐसे में मोदी सरकार की आलोचना में समय गंवाने में जुटे विपक्षी दलों की एकजुटता पर भी राजनीतिकारों को संशय है कि भारतीय राजनीति के इतिहास में ऐसे महागठबंधन बनने से पहले टूटते रहे हैं, जिस राजनीति में चिर-प्रतिद्वंद्वी लोकसभा चुनाव-2019 में एकजुटता से भाजपा को मात देने का सपना संजोए हुए हैं।
केजरी का एयरकंडीशनर धरना
देश की राजनीति के बदलते इस युग में जब सरकार ही आंदोलन के रास्ते पर हो तो जनता के लोकतांत्रिक अधिकारों के मायने क्या होंगे। आजकल इस हकीकत को दिल्ली सरकार ने राजनिवास यानि उप राज्यपाल कार्यालय में पिछले पांच दिन से दिल्ली सरकार यानि मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल अपने तीन मंत्रियों के साथ धरने पर हैं, वो भी वातानुकूलित वातावरण में। धरने पर बैठी दिल्ली सरकार के सीएम का तर्क है कि वो जनता के लिए संघर्ष कर रहे हैं, लेकिन इस धरने का दिल्ली की अधिकांश जनता के बीच उलटा संदेश जा रहा है। केजरीवाल व उनके मंत्रियों के इस धरने को लेकर सोशल मीडया पर जिस तरह की टिप्पणियां प्रसारित हो रही है, जिसमें केजरीवाल सरकार की कामचोरी को लेकर भी सवाल उठाए हैं, यहां तक टिप्पणी हो रही है कि केजरी सरकार छुट्टी पर और अधिकारी डयूटी पर हैं क्या? राजनीतिकारों की माने तो धरना देने की नीयती रखने वाले केजरीवाल ऐसे पहले मुख्यमंत्री हैं जो जनता की आड़ में अपनी सियासी रणनीति के तहत धरना जैसे आंदोलन का सहारा लेते रहे हैं। यदि केजरीवाल को जनता के लिए संघर्ष के लिए धरने पर बैठना है तो उपराज्यपाल कार्यालय के बाहर खुले टैंट में बैठना था, लेकिन केजरीवाल सरकार तो एयरकंडीशनर ड्राइंग रूम में फुल आराम कर रहे हैं। हालांकि इस विपरीत संदेश को देख अपने ही बुने जाल में फंसते देख आम आदमी पार्टी ने सोशल मीडिया पर अपने समर्थकों से संदेश जारी करने का सिलसिला चलाया है, लेकिन गर्मी और पानी की किल्लत से जूझ रही जनता इस एयरकंडीशनर धरने को महज एक नाटक करार देने में भी पीछे नहीं है।
जीएसटी कोष का बंटवारा
केंद्र सरकार के जीएसटी कानून भले ही कारोबारियों को समझने में मशक्कत करनी पड़ रही हो, लेकिन केंद्र सरकार भी लागू किये गये इस कानून के प्रभाव की समीक्षा करने में जुटी है। इसी के तहत जीएसटी एंटीप्रोफिटीयरिंग नियमावली के तहत स्थापित किये गये उपभोक्ता कल्याण कोष में कारोबारियों द्वारा जुर्माने या अन्य मामलों में जमा होने वाली धनराशि पर केंद्र व राज्यों के बीच एक विवादित मुद्दा बनने लगा तो इसके लिए मंत्रालय में जीएसटी परिषद के परामर्श पर मंथन किया गया। इस विवाद को सुलझाने  के मकसद से वित्त मंत्रालय ने निर्देश जारी किया है कि जीएसटी एंटीप्रोफिटीयरिंग नियमावली के तहत आने वाली इस राशि को का केंद्र व संबन्धित राज्यों में 50-50 फीसदी बंटवारा किया जाएगा। आर्थिक विशेषज्ञों की माने तो जीएसटी कानून लागू होने के बाद सरकार ने कम हुए टैक्स का लाभ उपभोक्ताओं तक नहीं पहुंच पा रहा था तो सरकार ने इसके लिए कारोबार को दंडित करने के लिए एक राष्ट्रीय एंटीप्रोफिटीयरिंग प्राधिकरण का गठन किया था। इस कोष में ऐसे मामलों की की धनराशि जमा की जाती है, जिसमें उपभोक्ता की स्पष्ट पहचान संभव न हो।
और अंत में
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सरकार द्वारा केंद्र सरकार की योजनाओं का लाभ लेने वालों से संवाद करने के जारी सिलसिले से विपक्षी दलों के सामने भविष्य की सियासत का खतरा तो नहीं मंडरा रहा है। खासकर अगले पीएम का सपना देख रहे कांग्रेस प्रमुख राहुल गांधी की सियासी रणनीति में भी भाजपा की रणनीतियों का अनुसरण नजर आने लगा है, लेकिन भाजपा मोदी सरकार के उपलब्धियों का खाका ले रही है और राहुल गांधी अपनी पिछली सरकार के काम को जनता के बीच उतारने में समक्ष नहीं है, महज उनके पास मोदी सरकार की योजनाओं की आलोचना और उन्हें देश व जनहित के विरोधी करार देने के अलावा कुछ भी नहीं है।
-हरिभूमि ब्यूरो
17June-2018

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