अन्नदाताओं की नई जीवन रेखा
भारत
जैसे कृषि प्रधान देश में अन्नदाता यानि किसानों की दुदर्शा को पटरी पर
उतारने के लिए मोदी सरकार ने एक सौगात देते हुए बड़ा फैसला लिया है,जिसमें
देश में लगातार दो साल से सूखे और कम बारिश जैसी मौसम की मार के कारण
किसानों की फसले चौपट होती रही हैं और उन्हें आर्थिक तंगी के दौर से गुजरना
पड़ रहा है। किसानों की आत्महत्या की कहानी भी उनकी इसी बदहाली के पन्नों
में जुड रही है। यह भी नहीं है कि देश की सरकार किसानों के लिए फसल बीमा
योजना नहीं चला रही है, लेकिन उनके प्रीमियम को लेकर किसानों की झोली में
नुकसान की भरपाई होना संभव नहीं था।
इसलिए किसानों की जीवन रेखा
को आर्थिक रूप से सुदृढ़ करने की दिशा में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की
केंद्र सरकार ने एक नई बीमा योजना के रूप में‘प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना’
को मंजूरी देकर देश के अन्नदाताओं की झोली भरने का प्रयास किया है।
इस
बहु-प्रतीक्षित नई फसल बीमा योजना में खासबात यह भी है कि इसमें किसानों
की अनाज एवं तिलहनी फसलों के बीमा संरक्षण के लिए अधिकतम दो प्रतिशत और
उद्यानिकी तथा कपास की फसलों के लिए अधिकतम पांच प्रतिशत तक प्रीमियम रखा
गया है। इतना कम प्रीमियम आजाद भारत में इससे पहले कभी नहीं रखा गया।
किसानों को तत्काल राहत देने की दिशा में मोदी सरकार ने प्रधानमंत्री फसल
बीमा योजना को इस साल खरीफ सत्र से लागू कर दिया है।दरअसल मोदी सरकार को इस
नई फसल बीमा योजना पटरी पर लाने के लिए इससे पहले चल रही राष्ट्रीय कृषि
बीमा योजना में आमूल-चूल परिवर्तन करना पड़ा है, जिसमें कहीं ज्यादा ही
अंतर्निहित खामियां थी। किसानों को राहत देने के लिए केंद्रीय कृषि एवं
किसान कल्याण मंत्री राधामोहन सिंह ने अभी तक चली आ रही योजना की समीक्षा
के बाद कृषि विशेषज्ञों द्वारा कराये गये अध्ययन के बाद नई बीमा योजना के
प्रस्ताव को मंजूरी दिलाई है। मोदी सरकार ने अगले तीन वर्षों में देश की 50
फीसदी फसलों को बीमे का सुरक्षा कवच देने का लक्ष्य तय किया है। नई फसल
बीमा योजना में इस बात का भी ध्यान रखा जाएगा कि किसानों को बर्बाद हुई फसल
के बीमे की रकम देने में कंपनियां अपनी तरफ से कोई अड़चन पैदा न करें। इसके
लिए सरकार ने तय किया है कि कैमरा, स्मार्टफोन्स और टैबलेट कंप्यूटर में
रिकॉर्ड किए गए वीडियो और तस्वीरें क्लेम लेने के लिए मान्य होंगे। इसके
अलावा नई योजना में दावों का निपटारा नुकसान के आकलन के 30 से 45 दिनों के
अंदर किये जाने को जरूरी बनाया गया है। मौजूदा फसल बीमा योजना में क्लेम का
33 फीसदी हिस्सा बीमा कंपनी देती है लेकिन नई बीमा योजना के तहत किसानों
को खराब हुई फसल की 50 फीसदी रकम बीमे के तौर पर देने का प्रावधान है।
कैसा होगा बीमा का दायरा
मोदी
सरकार ने किसानों के लिए रबी के अनाज और तिलहनी फसलों के लिए 1.5 और खरीफ
के अनाज तथा तिलहनों के लिए दो प्रतिशत प्रीमियम देना होगा। जबकि उद्यानिकी
तथा कपास की फसलों के बीमा के लिए पांच प्रतिशत तक प्रीमियम रखे जाने का
प्रावधान किया है। उद्यानिकी और कपास की फसल के लिए दोनों सत्रों मौसम में
पांच प्रतिशत तक प्रीमियम तय किया गया है। मसलन इस नई बीमा योजना के तहत
धान-मक्का और बाजरे जैसी खरीफ फसलों का बीमा कराने के लिए ढाई फीसदी
प्रीमियम देना होगा। गेहूं छोड़कर बाकी सभी रबी फसलों का बीमा करवाने के लिए
दो फीसदी का प्रीमियम देना होगा। गेहूं और दालों की फसलों के लिए डेढ़ से
दो फीसदी प्रीमियम पर बीमा हो जाएगा। जबकि फल-सब्जियों और अन्य फसलों का
बीमा करवाने के लिए 5 फीसदी प्रीमियम देना होगा। इससे पहले किसानों को
फसलों का बीमा करवाने के लिए बीमे की रकम का पांच से 15 फीसदी तक का हिस्सा
बतौर प्रीमियम भरना पड़ता था। यही नहीं कुछ मामलों में तो फसल बीमे का
प्रीमियम 25 फीसदी तक देना होता था, जो किसानों के लिए मुमकिन नहीं हो
सकता। इस नई योजना के तहत बाकी का प्रीमियम सरकार अपनी तरफ से भरेगी, जिसके
लिए सरकार ने 7500 करोड़ रुपये का बजट भी तैयार किया है। कृषि मंत्रालय के
अनुसार प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना से फसल बीमा संरक्षण का दायरा कुल
19.44 करोड़ हेक्टेयर फसल क्षेत्र के 50 प्रतिशत तक पहुंच जाएगा, जो फिलहाल
इसके 25-27 प्रतिशत रकबे तक ही है। इससे इस योजना पर व्यय बढ़कर करीब 9,500
करोड़ रुपए तक पहुंचने का अनुमान है। इस योजना में प्रीमियम पर काई सीमा
नहीं होगी और बीमित राशि में भी कमी नहीं की जाएगी। वहीं संभावित दावे के
25 प्रतिशत के बराबर राशि का भुगतान सीधे किसानों के खाते में किया जाएगा
और पूरे राज्य के लिए एक बीमा कंपनी होगी।
प्रीमियम सब्सिडी से भरपाई
भारतीय
कृषि बीमा कंपनी लिमिटेड के साथ निजी बीमा कंपनियां इस योजना का
कार्यान्वयन करेंगी। दावों से जुड़ा सारा उत्तरदायित्व बीमाकर्ता का होगा और
सरकार शुरू में ही प्रीमियम सब्सिडी देगी। यही कंपनी स्थानीय जोखिम के लिए
कृषि पर नुकसान और फसल के बाद नुकसान का आकलन भी करेगी। मोदी सरकार की
लागू की जा रही यह नई फसल बीमा योजना इसलिए भी महत्वपूर्ण मानी जा रही है,
क्योंकि देश मानसूनी बारिश में कमी के कारण लगातार दूसरे साल सूखे का सामना
कर रहा है और किसान आर्थिक तंगी के दौर से गुजरने को मजबूर है। इसलिए
केंद्र सरकार चाहती है कि बीमा के दायरे में कुछ और फसलों को भी शामिल किया
जाए, ताकि किसानों को मानसून की अनिश्चितता से बचाया जा सके।
मोदी सरकार ने ली सुध
इस
आजाद भारत में कृषि दर्शन पर नजर डाली जाए तो प्राकृतिक आपदा जैसे बेमौसम
बारिश ओलावृष्टि, बाढ़ और सूखे की स्थिति में देश के अन्नदाताओं को फसल बीमा
का कोई लाभ नहीं मिल पाता था। एक अध्ययन के मुताबिक बीमा नहीं कराने वाले
45 फीसदी किसान फसल बीमा की जानकारी रखते हैं, लेकिन उनकी बीमा के प्रति
कोई रुचि नहीं रही। जबकि 11 फीसदी किसान बीमा का प्रीमियम देने में खुद को
असमर्थ नजर आए और 24 फीसदी किसानों को फसल बीमा की जानकारी ही नहीं है।
यानी फसल बीमा की जानकारी के अभाव के अलावा एक वजह बीमा प्रीमियम की ऊंची
दर भी छोटे किसानों की झोली भरने के लिए नाकाफी साबित हुई। किसानों की इस
बदहाली पर गौर करते हुए अब मोदी सरकार की नई राष्ट्रीय फसल बीमा योजना शायद
उनकी झोली को हरी-भरी रख सके। नई योजना में किसी भी श्रेणी के किसानों को
इतना कम प्रीमियम की राशि देने में ज्यादा दिक्कत नहीं होगी।
विदेशी तर्ज पर सरकार का दावं
मोदी
सरकार ने अर्जेटिना जैसे देश की नीति पर दांव लगाया है। मसलन अमेरिका में
फसल बीमा योजना चलाने का जिम्मा प्राइवेट कंपनियों के पास है लेकिन किसानों
को फसल बीमा के प्रीमियम पर सरकारी सब्सिडी दी जाती है। अर्जेंटीना में 25
फीसदी किसान अपनी फसलों का बीमा करवाते हैं। अर्जेंटीना में 25 से ज्यादा
बीमा कंपनियां किसानों को ये सुविधा देती हैं। मॉरीशस के किसान फसलों का
बीमा करवाने में बेहद दिलचस्पी रखते हैं, वहां कई इलाकों में 100 फीसदी
फसलों का बीमा होता है। फिलिपींस में बड़े स्तर पर खेती करने वाले किसानों
को फसलों का बीमा करवाना अनिवार्य है। वहां फसल बीमे का प्रीमियम 7 से 8
फीसदी है जिसपर किसानों को सरकार की तरफ से सब्सिडी भी मिलती है।
दर्द भरा है किसान समुदाय
भारतीय
किसानों के दर्दभरे आंकडों पर नजर डाली जाए तो भारत के किसानों की जिंदगी
के दुख-दर्द ऐसा बंया करता नजर आ रहा है जैसे भारत में किसान होना एक बड़ा
अभिशाप हो। देश के लोगों की भूख मिटाने के लिए देश के अन्नदाता कितने दुख
दर्द सहकर भी भारत को कृषि प्रधान देश की हकीकत में रखना चाहते हैं, लेकिन
किसानों की समस्याओं को देश की सरकारें भी उतनी गंभीरता से हल करती नहीं
दिखी, जितनी प्राथमिकता से उन्हें सुखी रखा जा सकता हो। देश की सरकार के
आंकड़े ही इस बात की गवाही देते हैं कि देश के अन्नदाता किसान कितने बुरे
दौर से गुजर रहे हैं। यही कारण है कि हर वर्ष हजारों किसानों के लिए खेती
से ज्यादा आसान है मौत को गले लगाना। राष्ट्रीय अपराध ब्यूरो के आंकड़ों पर
गौर करें तो वर्ष 1995 से 2013 तक देश में 2 लाख 96 हजार 438 किसानों ने
आत्महत्या कर ली और वर्ष 2014 में 5650 किसानों ने खुदकुशी की थी। मसलन
भारत में औसतन करीब हर दो घंटे में तीन किसान आत्महत्या कर लेते हैं। जबकि
इन सरकारी आंकडों से परे देश के अन्नदाताओं की असली तस्वीर इससे कई गुना
ज्यादा भयानक हो सकती है लेकिन इससे भी भयानक वो वजहें हैं जो किसानों को
खुदकुशी करने के लिए उकसा रही हैं। दिसंबर 2014 में जारी हुई एनएसएसओ की
रिपोर्ट बताती है कि देश के किसान परिवारों पर औसतन 47 हजार रुपये का कर्ज़
है। पिछले 10 वर्षों में कर्ज़ के बोझ से दबे किसान परिवारों की संख्या
48.6 फीसदी से बढ़कर 51.9 फीसदी हो गई है। देश में आज भी 40 फीसदी किसानों
को कर्ज़ के लिए सेठों और साहूकारों के पास जाना पड़ता है। इंटेलिजेंस
ब्यूरो की रिपोर्ट में दावा किया गया है कि साहूकार, किसान परिवारों से 24
से 50 फीसदी की दर से ब्याज वसूलते हैं।
कुदरत की कहर का बोझ
देश
के किसानों की जिंदगी में कुदरत के कहर से बर्बाद हुईं फसलों से जुड़े
आंकड़े भी दिखाते हैं। सेंटर फॉर साइंस एंड इन्वायरमेंट यानी सीएसई की
रिपोर्ट के मुताबिक फरवरी-अप्रैल 2015 के दौरान बेमौसम बरसात और ओलावृष्टि
की वजह से 182 लाख 38 हजार हेक्टेयर भूमि पर खड़ी फसल को नुकसान हुआ। इस वजह
से खेतों में उगाई गई 100 लाख टन फसल बर्बाद हो गई। सीएसई के अनुमानों के
मुताबिक फरवरी-अप्रैल 2015 में गेहूं की 40 फीसदी, दालों की 14 फीसदी और
मोटे अनाजों की चार फीसदी बुआई को बेमौसम बरसात और ओलावृष्टि ने प्रभावित
किया। जिसकी वजह से देश को हुए कुल आर्थिक नुकसान की कीमत करीब 20 हजार 453
करोड़ रुपये है। हमारा सिस्टम फसलों की बबार्दी से हुए आर्थिक नुकसान का
आंकलन करने में तो बहुत तेज है लेकिन फसलों की बबार्दी से किसानों की
जिंदगी को हुए नुकसान के सटीक आंकड़े जुटा पाने में, ये सिस्टम अक्सर विफल
रहा है। यदि एक आंकड़े पर गौर करें तो पिछले 10 सालों में कृषि की आधुनिक
तकनीकों से अनजान किसानों की संख्या 60 फीसदी तक सीमित है।
-ओम प्रकाश पाल
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