भारतीय अर्थव्यवस्था: मजबूत जमीन की उम्मीद
दो साल में विकास दर 8% से ज्यादा का अनुमान
सरकार के सामने चुनौतियों की भी कमी नहीं
ओ. पी. पाल. नई दिल्ली।
केंद्र
सरकार ने आर्थिक परिस्थितियों में भारतीय अर्थव्यवस्था को वृहद आर्थिक
स्थिरता, दृढता और उम्मीदों की जमीन करार देते हुए अनुमान लगाया है कि अगले
वित्त वर्ष में भारत की आर्थिक वृद्धि सात से 7.75 प्रतिशत के दायरे में
होगी। वहीं अगले दो साल में यह विकास दर आठ प्रतिशत से भी अधिक होने की
उम्मीद जताई गई है।
संसद में शुक्रवार को वर्ष 2015-16 की आर्थिक
समीक्षा पेश करते हुए वित्त मंत्री अरुण जेटली कहा कि प्रतिकूल वैश्विक
परिस्थितियों और लगातार कमजोर मानसून से कृषि क्षेत्र पर पड़े प्रभाव के
बावजूद चालू वित्त वर्ष में 7.6 प्रतिशत आर्थिक वृद्धि का अनुमान अच्छे
दिनों के संकेत है। आर्थिक समीक्षा के अनुसार देश में वैश्विक आर्थिक
स्थिरता में सुधारो के प्रयासों और देश में वृहत-आर्थिक स्थिरता का माहौल
को देखते हुए आर्थिक वृद्धि के अगले कुछ सालों में आठ प्रतिशत से भी ज्यादा
होने की उम्मीद है। हालांकि समीक्षा में उच्च आर्थिक वृद्धि की राह में
विश्व अर्थव्यवस्था में लगातार नरमी का रूख रहा तो भारतीय अर्थव्यवस्था को
बड़ी चुनौती का मुकाबला करना पड़ सकता है। वर्ष 2016-17 के परिदृश्य को ध्यान
में रखते हुये हमें समग्र मांग, निर्यात, खपत,निजी निवेश और सरकार से जुड़े
हर पहलू पर गौर करना होगा। समीक्षा में अनिश्चित वातावरण और कमजोर मांग से
वैश्विक अर्थव्यवस्था में विश्वास की कमी और दुनिया के उभरते बाजारों में
भी साफ तौर पर सुस्ती होने का जिक्र भी किया गया, जिसमें निवेश और खपत
गतिविधियों को नये सिरे से संतुलित किये जाने से ज्यादा चिंता दर्शाई गई
है। ऐसे माहौल में भारतीय अर्थव्यवस्था की स्थिरता को जुझारुपन और आशावाद
के नजरियों को देखें तो आने वाले सालों सकल घरेलू उत्पाद यानि जीडीपी में 7
से 7.75 प्रतिशत के दायरे में वृद्धि होने की उम्मीद जताई गई। समीक्षा के
मुताबिक वर्ष 2015 के दौरान दुनिया की कुछ विकसित अर्थव्यवस्थाओं में सुधार
आया है। लेकिन कुछ विकसित और विकासशील देश ऐसे भी रहे हैं जिनमें लगातार
पांचवे साल गिरावट रही है। कुल मिलाकर 2015 में वैश्विक आर्थिक गतिविधियां
कमजोर रही। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने 2015 में विश्व अर्थव्यवस्था की
वृद्धि 3.1 प्रतिशत से बढ़कर 2016 में 3.6 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया है।
इनमें विकसित देशों की वृद्धि 2016 में 2.1 प्रतिशत और 2017 में भी इसी दर
पर रहने का अनुमान व्यक्त किया है। समीक्षा के अनुसार यदि विश्व
अर्थव्यवस्था में लगातार नरमी बनी रहती है तो भारतीय अर्थव्यवस्था को बड़ी
चुनौती का मुकाबला करना पड़ सकता है। वर्ष 2016.17 के परिदृश्य को ध्यान में
रखते हुये हमें समग्र मांग, निर्यात, खपत, निजी निवेश और सरकार से जुड़े हर
पहलू पर गौर करना होगा।
ये होंगी प्रमुख चुनौतियां
भारतीय
अर्थव्यवस्था के समक्ष खतरों का जिक्र करते हुए कहा गया है कि तीन प्रमुख
चुनौतियां हैं। वैश्विक अर्थव्यवस्था में उठापटक से निर्यात और सख्त
वित्तीय स्थिति का परिदृश्य और बिगड़ेगा। दूसरा कच्चे तेल के दाम यदि अनुमान
से ज्यादा बढ़ जाते हैं, तो इसका खपत पर असर पड़ेगा। यह असर एक तो सीधे होगा
और दूसरे मौद्रिक नरमी की संभावनायें भी इससे कम होंगी। अंत में यदि दोनों
ही बातें हो जातीं हैं तो यह काफी गंभीर जोखिम होगा। तेल उत्पादक देश यदि
उत्पादन में कटौती का समझौता कर लेतीं हैं तो स्थिति बिगड़ सकती है।
जीएसटी बनेगा सुधार का आधार
वित्त
मंत्री जेटली द्वारा पेश समीक्षा में वस्तु एवं सेवाकर यानि जीएसटी को
आधुनिक वैश्विक कर इतिहास में असाधारण उपाय करार दिया गया। खासतौर से
जीएसटी दीर्घकाल में भारत की आर्थिक वृद्धि आठ से दस प्रतिशत तक बढ़ाने की
संभावनाओं का प्रबल करेगा। लेकिन अल्पकाल में वास्तविक आर्थिक वृद्धि
वैश्विक वृद्धि और मांग पर निर्भर करेगी। विनिर्मित वस्तु और सेवाओं का
भारत का निर्यात देश के जीडीपी का 18 प्रतिशत हिस्सा है, जो एक दशक पहले यह
करीब 11 प्रतिशत था।
7वें वेतन आयोग का होगा यह असर
केंद्रीय
वित्त मंत्री अरुण जेटली ने आर्थिक समीक्षा में आम आदमी को प्रभावित करने
वाले 7वें वेतन आयोग की सिफारिशों पर कहा कि इसके लागू करने से बाजार की
कीमतों से अस्थिरता नहीं आएगी, लेकिन वेतन वृद्धि लागू करने से महंगाई पर
थोड़ा असर पड़ेगा, लेकिन कीमतें अस्थिर होने की कोई संभावना नहीं है। मसलन
वेतन वृद्धि से कीमतों में अस्थिरता की संभावना नहीं है। आर्थिक समीक्षा के
अनुसार रेलवे सहित अनुमानित वेतन का बिल सातवें वेतन आयोग के तहत करीब 52
प्रतिशत बढ़ जाएगा, जबकि छठे वेतन आयोग में यह 70 प्रतिशत बढ़ा था। इससे कहा
गया है कि चूंकि सरकार राजकोषीय घाटे को कम करने को प्रतिबद्ध है इस लिए
वेतन में बढोतरी होने के बावजूद कीमतों का दबाव कम होगा।
राजकोष में सुधार

कृषि क्षेत्र में बदलाव की जरूरत
आर्थिक
समीक्षा में पिछले दो सालों में मानसून के कमजोर रहने से कृषि क्षेत्र की
वृद्धि सुस्त होने से बचत और निवेश दरों में भी सुधार की संभावना फिलहाल
नहीं हैं। इस कारण सरकारी वृद्धि और उत्पादन में प्रमुख फसलों के बुवाई
क्षेत्र को सरकार ने रेखांकित
किया है। इसका मकसद किसानों के लिए
स्थायी आजीविका और खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कृषि क्षेत्र में
व्यापक बदलाव की जरूरतों पर जोर दिया गया है। इसके लिए उपायों में उर्वरकों
पर दी जाने वाली सब्सिडी प्रत्यक्ष लाभ अतंरण के तहत करने पर बल दिया गया
है।
आर्थिक समीक्षा 2015-16 की खास बातें
-भारतीय अर्थव्यवस्था वृह्द आर्थिक स्थिरता, गतिशीलता और आशा के केंद्र के रुप में उभरी
-आगामी वर्ष में विकास दर 7.0 से 7.75 प्रतिशत तक रहने तथा अगले कुछ वर्षों में इसके आठ प्रतिशत से भी अधिक रहने का
अनुमान
- 2015-16 में राजकोषीय घाटा का लक्ष्य 3.9 प्रतिशत हासिल करना संभव
- राजकोषीय ध्ष्टिकोण से आगामी वर्ष के चुनौतीपूर्ण होने की आशंका
- समृद्ध वर्गों को मिल रही सबसिडी में एक लाख करोड़ की कटौती का सुझाव
- रियल एस्टेट और कृषि से आय का तर्कसंगत कराधान
- कर छूट राज की चरणबद्ध रुप से समाप्ति का प्रस्ताव
- 2015-16 में सेवा क्षेत्र का योगदान 66 प्रतिशत
- कृषि क्षेत्र में व्यापक बदलाव की जरुरत
- कृषि में उत्पादकता बढ़ाने पर बल
- उर्वरक सबसिडी को प्रत्यक्ष लाभ अंतरण लाने की जरुरत
- अप्रैल जनवरी 2015-16 में व्यापार घाटा घटकर 106.8 अरब डालर रहा
- मुक्त व्यापार करार से आयात निर्यात में बढ़ोतरी हुई
-.8.10 प्रतिशत की विकास दर हासिल करने के लिए निर्यात में तेज वृद्धि की जरुरत।
-मेक इन इंडिया, स्टार्टअप इंडिया, डिजिटल इंडिया, स्मार्ट सिटी जैसी पहलों एवं कारोबार में सुगमता की शुरूआत से देश के
औद्योगिक क्षेत्र को प्रोत्साहन मिलेगा।
27Feb-2016
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