बुधवार, 10 फ़रवरी 2016

अदालतों में लंबित मामलों का निपटान चुनौती

ढाई करोड़ से ज्यादा मामलों का अंबार
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
सुप्रीम कोर्ट में हजारो और देश के उच्च न्यायालयों में लाखों मुकदमें लंबित हैं, तो निचली अदालतों में ऐसे लंबित मामलों की संख्या करोड़ो में पहुंच गई है, जो कानून सुधार की कवायद में जुटी केंद्र सरकार के लिए किसी चुनौती से कम नहीं है।
देश में न्यायिक सुधार के लिए पिछले साल मोदी सरकार की पहल पर उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों और मुख्यमंत्रियों के सम्मेलन के दौरान तत्कालीन भारत के मुख्य न्यायाधीश एचएल दत्तू ने सम्मेलन में आए सुझावों के बूते पर कहा था कि अगले पांच साल में अदालतों में कोई भी मामला लंबित नहीं रहेगा। लेकिन इसके विपरीत देश के शीर्ष अदालत से लेकर निचली अदालतों पर मुकदमों को बोझ लगातार बढ़ता जा रहा है। विधि एवं न्याय मंत्रालय के ताजा आंकड़ों के मुताबिक 31 दिसंबर तक देश के सभी राज्यों की जिला अदालतों में दो करोड़ 61 हजार मामलें लंबित हैं। चिंताजनक बात है कि इनमें करीब 21.73 लाख मुकदमें तो पिछले दस साल से निर्णय का इंतजार कर रहे हैं। जबकि 83 लाख 462 यानि 41.38 फीसदी मामले केवल पिछले दो वर्षों से कम समय से लंबित हैं। विधि विशेषज्ञों का कहना है कि यदि लंबित मामलों का अंबार ऐसे ही लगता रहा तो सैकड़ो साल में भी इनका निपटारा करना संभव नहीं हो सकता।
अगले सप्ताह होगा मंथन
देशभर में शीर्ष से लेकर निचली अदालतों में लंबित मामलों के लगते अंबार के निपटान पर केंद्रीय कानून मंत्रालय बजट सत्र से पहले संभव हुआ तो अगले सप्ताह ही "न्याय व्यवस्था और कानून सुधार" विषय पर एक उच्च स्तरीय बैठक आयोजित करेगा। मंत्रालय के अनुसार इस न्यायिक सम्मेलन के लिए तैयार किये गये नोट में कहा गया है कि हालांकि इन मौजूद आंकड़ों में स्पष्ट है कि इसमें देश की सभी अदालतों को शामिल नहीं किया गया है। मंत्रालय के अनुसार कानून मंत्रालय समय-समय पर सुप्रीम कोर्ट और 24 हाई कोर्टों से इस मुद्दे पर इन आंकड़ों का डाटा तैयार करता है।
दस्तावेज में जताई चिंता
मंत्रालय के अनुसार लंबित मामलों के निपटान के बारे में उच्च स्तरीय बैठक के लिए तैयार किये गये नोट में कहा गया है कि न्याय क्षेत्र में नीति निमार्ता की पैदा की जा रही समस्या चिंताजनक है, जिसमें कोई मानदंड तय नहीं है। इस दस्तावेज में तर्क दिया गया है कि यदि किसी मामले के शुरू होने के एक वर्ष के अंदर निपटारा नहीं होता है तो क्या इसे विलंबित समझा जाए? विलंब का मानदंड नहीं होने से मुद्दे के समाधान के लिए नीति बदलाव का निर्धारण करने में बाधा उत्पन्न करता है।
10Feb-2016

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