लोकसभा चुनाव
में शायद इस बार पिछले आम चुनाव से भी कहीं ज्यादा महंगाई की मार पड़ने वाली है, जिसके
कारण आक्रमक सियासत को देखते हुए देश की आजादी में यह सबसे महंगा चुनाव खर्च का रिकार्ड
बना सकता है। विशेषज्ञों की माने तो इस बार 50 हजार करोड़ से भी कहीं ज्यादा चुनावी
खर्च हो सकता है।
यूपीए सरकार
के कार्यकाल में प्रत्याशियों के चुनाव खर्च में किये गये कई गुणा इजाफे के तहत ही
2014 का लोकसभा चुनाव हुआ था। चुनाव आयोग के समक्ष पेश किये जाने वाले सियासी दलों
और प्रत्याशियों के खर्च को वास्तविक खर्च नहीं माना जा सकता, यह तो चुनाव आयोग भी
मान चुका है। यदि चुनाव में निर्धारित धन को
खर्च किया जाए तो देश में लोकसभा की 543 में से 532 सीटों पर एक प्रत्याशी अधिकतम
70 लाख रुपये खर्च कर सकता है, जबकि 11 सीटें ऐसी हैं जहां अधिकतम चुनावी खर्च की सीमा
54 लाख रुपये तय की गई है। मसलन लोकसभा चुनाव में एक प्रत्याशी के हिसाब से करीब
378 करोड़ रुपये खर्च होते हैं, जबकि एक सीट पर औसतन 8-10 प्रत्याशी चुनावी जंग में
इसी खर्च के तहत सियासत करते हैं। राजनीतिक विशेषज्ञ मानते हैं कि चुनाव आयोग द्वारा
निर्धारित खर्च से कई गुणा धनराशि को प्रत्याशी खर्च करता आ रहा है।
प्रचार के नए स्रोतों का इस्तेमाल

चुनाव आयोग का शिकंजा
चुनाव
आयोग चुनाव में निर्धारित चुनावी खर्च से ज्यादा धन बहाने से रोकने की दिशा में हालांकि
शिकंजा कसने के लिए निगरानी टीमों को सक्रिय रखता है, लेकिन इसके बावजूद लोकसभा चुनावों
में इस महंगाई के दौर में परंपारिक तीज-त्यौहारों से ज्यादा लोकतांत्रिक त्योहार यानि
चुनावों पर साफ देखी जा सकती है। लोकसभा चुनाव के पहले चरण से पहले ही चुनाव आयोग की
टीमों द्वारा आज मंगलवार तक देशभर में 529 करोड़ रुपये की नकदी समेत करीब 1909 करोड़
रुपये की वह संपत्ति तो जब्त की जा चुकी है, जिनका इस्मेमाल इस चुनावी महापर्व में
होना था। विशेषज्ञ मानते हैं कि इसी जब्ती से अनुमान लगाया जा सकता है कि इस चुनाव
का खर्च भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में एक रिकार्ड पर जाकर खड़ा होगा।
यूपीए ने बढ़ाया था चुनावी खर्च
दरअसल तत्कालीन
यूपीए की केंद्र सरकार ने चुनाव आयोग की सिफारिश पर वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव की के
मुकाबले एक प्रत्याशी के चुनाव खर्च में करीब 180 प्रतिशत राशि का इजाफा किया था। जिसमें
प्रत्याशी के 25 लाख के चुनावी खर्च को बढ़ाकर 70 लाख रुपये तक की सीमा की गई थी। राजनीतिकारों
का मानना है कि इस बढ़ती महंगाई में इस हिसाब से पिछले चुनावों के खर्च में इस बार ज्यादा
खर्च होने का अनुमान लगाया जा सकता है। चुनाव में आने वाले खर्च पर अनुसंधान करने वाली
संस्था सेंटर फॉर मीडिया के प्रवक्ता की माने तो इस बार आक्रमकता की सियासत का जो माहौल
नजर आ रहा है उससे चुनावी खर्च के पिछले सभी रिकार्ड ध्वस्त होना तय है। पिछले लोकसभा
चुनाव के खर्च का अनुमान करीब 30 हजार करोड़ रुपये लगाया गया है, जिसमें एक रिपोर्ट
के अनुसार लोकसभा 2014 एवं कुछ राज्य विधानसभा चुनावों में ही भाजपा 714 करोड़ रुपये
और कांग्रेस ने 516 करोड़ रुपये खर्च करने का ब्यौरा केंद्रीय चुनाव आयोग को दिया था।
क्या कहती है आयोग की रिपोर्ट
यदि केंद्रीय
चुनाव आयोग में लोकसभा चुनाव के प्रत्याशियों व दलों द्वारा दिये गये चुनाव खर्च की
बात की जाए तो उसमें वर्ष 2014 में 3870.34 करोड़ रुपये का खर्च बताया गया है, जो वर्ष
2009 के आम चुनाव में खर्च हुए 1114.38 करोड़ रुपये से तीन गुणा से भी ज्यादा है। इस
हिसाब से राजनीतिकार और विशेषज्ञों को अनुमान है कि इस बार आयोग के चुनावी आंकड़ो का
ग्राफ भी इससे ज्यादा गुणा की छलांग लगा सकता है।
10Apr-2019
10Apr-2019
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